आदरणीय साथिओ,
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बहुत ही बढ़िया विषय के साथ सृजित इस रचना हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीया अपराजिता जी| भारतीय संस्कृति में पति को परमेश्वर और पत्नी को देवी की संज्ञा पुरातन साहित्य में दी गयी है, लेकिन पुरुष प्रधानता के कारण स्त्री देवी से दासी रूप भी देखने को मिला| उत्तम सन्देशप्रद इस रचना में कहीं-कहीं अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया गया है, उन स्थानों पर मेरे अनुसार हिंदी शब्द प्रयोग में लेने पर रचना के प्रवाह और सन्देश में कोई अंतर नहीं पड़ेगा|
(1) वैराग्य
बहुत ही घने जंगल में पहॅुंचकर मंत्री ने रथ रोक दिया और म्यान से तलवार निकालकर बोला,
‘‘ वत्स ! मरने के लिए तैयार हो जाओ, मुझे राजाज्ञा का पालन करना है ‘‘
बालक को आश्चर्य तो हुआ परन्तु सोचते हुए कि राजाराम को वनवास , राजाबलि का बंधन, पान्डुपुत्रों का वनवास, कृष्ण के वंशजों की मृत्यु , यह सभी तो कालवश ही हुआ है इसलिए बोला,
‘‘ मंत्री ! यदि राजाज्ञा यही है तो आप उसका पालन कीजिए ‘‘
मंत्री ने बालक से पूछा,
‘‘ लेकिन वह राजा ही नहीं तुम्हारे चाचा भी हैं, अतः यदि मरने के पूर्व उनसे कुछ कहना चाहते हो तो बताओ मैं अवश्य ही उन्हें वैसा कह दूंगा‘‘
बालक ने अपने अंगूठे के खून से भोजपत्र पर लिखा, और मंत्री के हाथ में देते हुए अपनी गर्दन उनके सामने झुकाकर कहा
‘‘ राजाज्ञा का पालन करो मंत्री !‘‘
मंत्री ने पत्र पढ़कर विचार बदला। उसने बालक को ले जाकर अपने महल में छिपा दिया । बकरे की आॅंखो को सबूत के तौर पर राजा को दिखाते हुए मंत्री ने कहा
‘‘ राजन ! आदेश का पालन हो चुका ‘‘
राजा ने पूछा ‘‘ क्यों मंत्री ! मरने से पहले उसने कुछ कहा या नहीं ?‘‘
मंत्री ने वह खून से लिखा पत्र दिखाया। पत्र में लिखा था ‘‘ सतयुग के अलंकार मान्धाता, दसमुख रावण का अन्त करनेवाले राम, और युधिष्ठिर जैसे सत्यवादी सम्राट भी धरती पर आए और चले गए, परन्तु यह धरती किसी के साथ नहीं गई। लगता है मुंज! कि यह तुम्हारे साथ अवश्य जाएगी। ‘‘
पढ़ते ही राजा के होश उड़ गए, वे जोर से रोने लगे, और मंत्री से कहने लगे ‘‘ मुझे मेरा भोज चाहिए, मुझे मेरा भोज वापस चाहिए ।‘‘
मुंज के पर्याप्त विलाप कर चुकने के बाद मंत्री बोला ,
‘‘ राजन ! मैं जानता था कि भोज साधारण बालक नहीं है, वह मेरे घर पर सुरक्षित है‘‘
अगले ही क्षण मुंज, बालक भोज का राज्याभिषेक करते हुए बोले ‘‘ भोज ! आज तुमने मुझे इस मुकुट के भार से ही नहीं अज्ञान के बोझ से भी मुक्त कर दिया‘‘ और वन की ओर प्रस्थान कर गए ।
मौलिक व अप्रकाशित
(2) जानकार दुर्लभ
‘‘ अरे ठाकुर ! घर में ही घुसे रहते हो, रिटायर होने के बाद, एक बार भी नहीं दिखे , क्या बात है ?‘‘
‘‘ अरे, आओ पंडितजी ! क्या बताएं सभी दुर्भाग्य है ‘‘
‘‘ भाग्य को दोष देते हो ठाकुर ! वह तो अपने ही पिछले संस्कारों का क्षयकाल होता है । ‘‘
‘‘ पता नहीं क्या सच है, मित्रों, रिश्तेदारों से मिलने में अपार ग्लानी होती है, देशविदेश में जाकर खूब इलाज कराया, पानी की तरह पैसा बहाया लेकिन मर्ज घटने के स्थान पर बढ़ता ही जा रहा है। ये देखो .. .. ‘‘
‘‘ अच्छा ! तो यह बात है, ये तो सचमुच घातक चर्मरोग है । कोई बात नहीं जब संस्कार उदय हुआ है तो उसका अन्त भी होगा, हमें अपने प्रयास जारी रखना चाहिए‘‘
‘‘ शायद मरने के बाद ही संभव हो ‘‘
‘‘ लेकिन, आपने देशी जड़ीबूटी का उपयोग करके देखा कि नहीं ?‘‘
‘‘ अरे महाराज ! सब प्रकार से थक चुका हॅूं ‘‘
‘‘ अच्छा , वो जो हलके पीले फूलोंवाला छोटासा पौधा वहाॅं घूरे पर लगा है उसकी जड़, पत्ते, तना, फल, फूल सबको पीसकर लगा कर देखो ‘‘
‘‘ अरे पंडितजी ! क्यों हंसी उड़ाते हो, चलो यह भी कर लेते हैं । ए धन्ना ! जा वह पौधा उखाड़ ला जो घूरे पर लगा है ‘‘
‘‘ ऐसे नहीं ठाकुर साब ! गहराई से खोदना पड़ेगा उसकी जड़ें बहुत मजबूत और गहरी होती हैं। इस रोग की यही दवा है ।
‘‘ हः हः हः हः .... ‘‘
‘‘हंस रहे हो! कोई भी अक्षर ऐसा नहीं जो मंत्र न हो, कोई भी वनस्पति ऐसी नहीं जो औाषधि न हो और कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं जिसमें योग्यता न हो , कमी रहती है तो केवल परख करने वाले की । जैसा बताया है वैसे लगाओ कुछ माह में इस कष्ट से मुक्त हो जाओगे। ‘‘
मौलिक और अप्रकाशित
पहली लघुकथा "वैराग्य" तो राजकुमार भोज को राजा मुंज द्वारा मरवा डालने हेतु वत्सराज के साथ जंगल भेजने की एक बहुत ही पुरानी ऐतिहासिक कथा है जिसे हम बचपन से ही पढ़ते सुनते आ रहे हैंI आपने तो उसे लगभग बिलकुल वैसे ही पुनरुत्पाद कर दिया है आ० डॉ टी आर सुकुल जीI इसे मौलिक लघुकथा नहीं माना जा सकता, अत: इसे आयोजन से हटाया जाएगाI दूसरी लघुकथा अच्छी है जिस हेतु अभिनन्दन स्वीकार करेंI
धन्यवाद आदरणीय योगराज प्रभाकर जी। पिछले आयोजनों में एतिहासिक घटनाओं पर आधारित कथाओं पर आपकी सकारात्मक टिप्पणियों से प्रभावित होकर ही "वैराग्य " पर लिखने का प्रयास किया था , यदि यह कथा मंच के विधान के अनुकूल नहीं है तो इसे विलोपित माना जाय।
दूसरी कथा "जानकार दुर्लभ" के अनुमोदन हेतु सादर आभार।
आ० शुक्ल जी , मैंने ऐतिहासिक पात्रों को लेकर खासकर राना बेनी माधव बख्श को लेकर कुछ लघु कथाएँ अवश्य लिखी है परन्तु उसमे किसी ऐतिहसिक घटना का दुहराव नहीं किया गया चूंकि राना मेरे शोध का विषय थे अतः उनके बारे में मुझे अनेक ऐसी जानकारियाँ है जो लिखित इतिहास में नहीं है फिर भी मैंने लघु कथा में उनका उपयोग नहीं किया . हाँ ऐतिहस्सिक पृष्ठ भूमि पर काल्पनिक कथानक लेकर कथा को स्वरुप दिया है ऐतिहस्सिक पृष्ठ भूमि पर लघु कथा
लिखने हेतु इस सूक्ष्मता को स्वीकार करना होगा . सादर
कथाओं के अनुमोदन हेतु सादर आभार आदरणीय समर कबीर जी।
दोनों कथाओं के लिए हार्दिक बधाई आ डॉ टी आर सुकुल जी |
कथााओं के अनुमोदन हेतु सादर आभार आदरणीया कल्पना भट्ट जी।
आपकी पहली लघु कथा दिलचस्प लगी पर जैसा आदरणीय योगराज जी ने कहा ये मौलिक नहीं है तो इसपर कुछ कहना व्यर्थ है आपकी दूसरी कथा आयुर्वेद की महत्व बता रही है ,पर आदरणीय ये भी सही है कि आयुर्वेद के नाम पर बहुत नीम हकीम भी आज इर्द गिर्द हैं ...हार्दिक बधाई इस विषय के चयन के लिए आदरणीय डॉ सुकुल जी
कथाा/ओं के अनुमोदन हेतु सादर आभार आदरणीया प्रतिभा पांडे जी। आदरणीया, इसीलिए दूसरी कथा का शीर्षक " जानकार दुर्लभ " लिखा गया है, सादर।
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