आदरणीय साथिओ,
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//भोजन कक्ष मे रहो। सबको भोजन कराके फिर स्वयं करना । उनके पैर दबाना , सुबह जल्दी उठकर.... दर-दर भटकता रहा।"// वाह आदरणीया नयना जी , कितना कठिन सबक है ये पुरुष के लिए , और स्त्री तो घुट्टी में ही पी कर आती है I कथा कहने का निराला ढंग बहुत अच्छा लगा ...हार्दिक बधाई आपको
आदरणीया नयना जी, आयोजन का श्रीगणेश करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. मेरी अल्प समझ से कथा थोड़ी सी स्पष्टता और मांग रही है. इस हेतु रचना में सम्पादन की आवश्यकता है. सादर.
आदरणीय ताई । दिए गए विषय को परिभाषित करने का अच्छा प्रयास किया है आपने। यहां प्रधान संपादक जी की टिप्पणी से सहमत । सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय नयना जी।अच्छी लघुकथा।दिये गये विषय को उजागर करती रचना।
आ. सुनील जी कन्या भ्रुण के बचाव में बात कहने का नया तरिका एकदम सटीक लगा. आपके प्र्स्तुती करण से बहूत कुछ सीखने को मिलता है. बधाई आपको
एक बार किस्मत आजमाने की गरज़ से=आज़माने
दरवाजे़ पर अतिरिक्त जोर लगाकर आवाज दी=आवाज़
एक आवाज़ बाहर आयी "रूक.."=रुक
सामने खड़े पुरूष को आहत कर गया |=पुरुष
बूढ़े के घर का जिक्र किया|=ज़िक्र
आ रही तेज आवाजें=तेज़
गल्तियों पर सबक जरूर सिखाती है=सबक़ ज़रूर
महिलाओं के बीच से गरदन ऊँची=गर्दन
बंद दरवाजे की तरफ देखा=दरबाज़े
(रचना पर बात कल करूंगा)
ज़िंदगी विद Z
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