परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 84वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब जिगर मुरादाबादी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"अपना सा क्यूँ न मुझ को बना कर चले गए"
221 2121 1221 212
मफऊलु फाइलातु मुफाईलु फाइलुन
(बह्र: मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 जून दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24 जून दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय लक्ष्मण जी,, बहुत अच्छे भावों के साथ बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आपने
आदरणीय भाई आरिफ जी उत्साहवर्धन के लि हार्दिक आभार ।
आदरणीय भाईतस्दीक अहमद जी उपस्थिति से मान बढाने और सलाह के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आद० लक्ष्मण धामी भैया ,सुदर गजल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूलें
आदरणीया राजेश दी उपस्थिति से मान बढाने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय भाई गजेंद्रजी उत्साहवर्धन के लि हार्दिक आभार ।
बहुत खूब आदर्णीय शतीश जी , अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें
आदरणीय भाई अमित जी जी उत्साहवर्धन के लि हार्दिक धन्यवाद ।
बढ़िया ग़ज़ल है आ. लक्ष्मण जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. चौथे शेर का उला मिसरा बह्र में नहीं है देख लीजिएगा. सादर.
या दों ने उन की ख्वा ब भी सज ने न हीं दि या
2 2 1 2 1 2 1 1 2 2 1 2 1 2
आदरणीय भाईभाई महेंद्र जी उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार । चैथे शेर के उला मिसरे की बह्र उपरोक्त प्रकार से है। मुझे बताने की कृपा करे कि किस प्रकार बेबहर है । आभारी रहूंगा ।
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