आदरणीय साथिओ,
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आदरणीया अर्चना जी हार्दिक बधाई आपको इस सुंदर लघुकथा के लिए |
कथा कुछ ज्यादा ही संक्षिप्त हो गई आ० अर्चना दीदी। अभी कुछ और भी कहना था तब जो अनकहा था वो निकल कर आता, आप फिर से देखिए! पापा के किस गुण/दोष की बात हो रही है? यदि उसको बताएंगी तब समझ आएगा अनकहा। ज़रा सा फेरबदल कथा को स्पष्टता देगा। आप देखिए। सादर।
आदरणीया अर्चना जी हार्दिक बधाई आपको इस सहभागिता के लिए. लेकिन व्यक्तिगत रुपसे मुझे कथा में कुछ ज्यादा ही अनकहा लगा
कुछ और स्पष्ट करने की जरूरत थी, बहरहाल बधाई इस रचना के लिए आ
//फिर प्रत्येक लेक्चरर पापा के पदचिन्हों का अनुसरणकर्ता तो नही होता।"// यहाँ रचना को और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है| रचना पर थोड़ा विचार करने के बाद मुझे ऐसा लग रहा है कि शायद उसके पिता ने अपनी किसी महिला विद्यार्थी के साथ कुकृत्य किया होगा या प्रयास किया होगा|यह भी हो सकता है कि पढ़ाते-पढ़ाते विवाह कर लिया हो| यदि इनमें से कोई बात है या फिर कुछ और भी, तो भी अंत में एकाध पंक्ति जोड़कर इस रचना को बहुत प्रभावी बनाया जा सकता है| विषय बहुत अच्छा चुना है आपने आदरणीया अर्चना जी, सादर बधाई स्वीकार करें इस सृजन हेतु|
अनकहा को सार्थकता से परिभाषित कर रही है । बधाई । केवल भाषा को लेकर थोड़ी हिचकिचाहट । 'पदचिन्हाें का अनुसरणकर्ता' कुछ किताबी सी भाषा लगती है यदि इसके स्थान पर आम बोल के शब्दों को इस्तेमाल किया जाता तो लघुकथा में सहजता बनी रहती । वैसे लघुकथा बढ़ीया है, शुभकामनाएं स्वीकारें ।
कथा में क्या कहा गया है और क्या अनकहा है स्पष्ट नहीं हो पाया
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