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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-29 (विषय: अनकहा)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले 28 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, वह सच में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उनपर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-29
विषय: "अनकहा"
अवधि : 30-08-2017 से 31-08-2017 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि भी लिखे/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
10. गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI    
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

मोहतरमा मनीषा जी आदाब,आयोजन में सहभागिता के लिए आपका धन्यवाद ।

अच्छी प्रस्तुति बाकी गुरुजनों की बातों पर मनन कीजियेगा | हार्दिक बधाई आपको |

आदरणीया मनीषा सक्सेना जी आदाब, अच्छा प्रयास । आयोजन में सहभागिता हेतु बधाई स्वीकार करें ।

बच्चों की परवरिश को लेकर आधुनिक और पुरानी सोच पर अच्छी रचना   हार्दिक बधाई स्वीकार करें  आदरणीया मनीषा जी 

आ.मनिषा जी सहभागिता हेतु बधाई. रचना अभी बहुत सारा समय माँ रही.

मुहतर्मा मनीषा साहिबा , लघुकथा का अच्छा प्रयास हुआ है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ

आदरणीया मनीषा जी बेहतरीन प्रयास जी।सादर नमन जी।

बढ़िया विषय है रचना का लेकिन लघुकथा के दायरे से बाहर निकल गयी| बधाई इस प्रयास के लिए  

गुरुवे नमः

 

बारिश शुरू होते ही, रिटायर्ड मास्टर जोशी जी  के घर की छत और दीवारें बिलखने लगीं, हर साल की तरह I

‘’  कहीं से पैसे का इंतजाम करके पुताई मरम्मत करवा लेते बारिश के पहले, तो कुछ तो रहने लायक होता घर I पर आप तो ..I’’ आवाज को संयत रखने की कोशिश में पत्नी का चेहरा तन गया I

“ उस समय का बना बहुत पक्का मकान है, मेरी तुम्हारी तरह I इतनी आसानी से ठहेगा नहीं I”  बेबसी को मुस्कान के पीछे साफ़ छिपा गए मास्टर साहब, हर बार की तरह I

“ अग्रवाल कोचिंग सेंटर को मना क्यों कर दिया ? दो घंटे के अच्छे पैसे दे रहा था I”

“ वो बच्चों और अभिभावकों को लूट रहा है, बेवकूफ बना रहा है और तुम चाहती हो मै उसे जॉइन कर लूं!!  चलो छोड़ो, ये देखो I” मास्टर साहब ने एक लिफाफा पत्नी की तरफ बढ़ा दिया I

“ क्या है ये ?’’

“ देखो खोलकर I मेरे एक पुराने स्टूडेंट ने भेजा है,  दिल्ली मे डॉक्टर है वो  I”

लिफ़ाफ़े के अन्दर एक खूबसूरत कार्ड और चिट्ठी थी I एक शिक्षक और व्यक्ति के रूप में, जोशी साहब की शख्सियत का बखान था चिट्ठी में I अंग्रेजी में छपे कार्ड के अंत में, हिंदी में हाथ से लिखा था ‘ शिक्षक दिवस पर देव तुल्य गुरूजी के चरणों में’I

“ अच्छा है I“ चिट्ठी और कार्ड को लिफ़ाफ़े के हवाले करते हुए, पत्नी ने होंठ भींच रखे थे I

“ देखा !  चलो एक कप चाय पिला दो अब  I ढूध नहीं है तो काली चलेगी I” पत्नी से आँख चुराते हुए, लिफ़ाफ़े को बैग में रख दिया मास्टर साहब ने I

झटके से उठकर रसोई में जाती हुई पत्नी के पैर की ठोकर से स्टील का ग्लास, टन्न करके चीख उठा I

 

मौलिक व् अप्रकाशित 

बहुत ही मार्मिक और अनकहा छुपाये बेहतरीन रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये आ.प्रतिभा जी।

हार्दिक आभार आदरणीया जानकी वाही जी 

क्या कहने हैं आ० प्रतिभा पाण्डेय जी, लाजवाब लघुकथा हुई है. बिना दूध की चाय, स्टील के गिलास का टन्न से बजना - वाह! बहुत कुछ कहकर भी अनकहा इतनी अच्छी तरह से उभरा है, यह वाकई कमाल की बात है. मेरी ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करें.

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