आदरणीय साथिओ,
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अच्छी प्रस्तुति बाकी गुरुजनों की बातों पर मनन कीजियेगा | हार्दिक बधाई आपको |
बच्चों की परवरिश को लेकर आधुनिक और पुरानी सोच पर अच्छी रचना हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया मनीषा जी
आ.मनिषा जी सहभागिता हेतु बधाई. रचना अभी बहुत सारा समय माँ रही.
मुहतर्मा मनीषा साहिबा , लघुकथा का अच्छा प्रयास हुआ है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ
बढ़िया विषय है रचना का लेकिन लघुकथा के दायरे से बाहर निकल गयी| बधाई इस प्रयास के लिए
गुरुवे नमः
बारिश शुरू होते ही, रिटायर्ड मास्टर जोशी जी के घर की छत और दीवारें बिलखने लगीं, हर साल की तरह I
‘’ कहीं से पैसे का इंतजाम करके पुताई मरम्मत करवा लेते बारिश के पहले, तो कुछ तो रहने लायक होता घर I पर आप तो ..I’’ आवाज को संयत रखने की कोशिश में पत्नी का चेहरा तन गया I
“ उस समय का बना बहुत पक्का मकान है, मेरी तुम्हारी तरह I इतनी आसानी से ठहेगा नहीं I” बेबसी को मुस्कान के पीछे साफ़ छिपा गए मास्टर साहब, हर बार की तरह I
“ अग्रवाल कोचिंग सेंटर को मना क्यों कर दिया ? दो घंटे के अच्छे पैसे दे रहा था I”
“ वो बच्चों और अभिभावकों को लूट रहा है, बेवकूफ बना रहा है और तुम चाहती हो मै उसे जॉइन कर लूं!! चलो छोड़ो, ये देखो I” मास्टर साहब ने एक लिफाफा पत्नी की तरफ बढ़ा दिया I
“ क्या है ये ?’’
“ देखो खोलकर I मेरे एक पुराने स्टूडेंट ने भेजा है, दिल्ली मे डॉक्टर है वो I”
लिफ़ाफ़े के अन्दर एक खूबसूरत कार्ड और चिट्ठी थी I एक शिक्षक और व्यक्ति के रूप में, जोशी साहब की शख्सियत का बखान था चिट्ठी में I अंग्रेजी में छपे कार्ड के अंत में, हिंदी में हाथ से लिखा था ‘ शिक्षक दिवस पर देव तुल्य गुरूजी के चरणों में’I
“ अच्छा है I“ चिट्ठी और कार्ड को लिफ़ाफ़े के हवाले करते हुए, पत्नी ने होंठ भींच रखे थे I
“ देखा ! चलो एक कप चाय पिला दो अब I ढूध नहीं है तो काली चलेगी I” पत्नी से आँख चुराते हुए, लिफ़ाफ़े को बैग में रख दिया मास्टर साहब ने I
झटके से उठकर रसोई में जाती हुई पत्नी के पैर की ठोकर से स्टील का ग्लास, टन्न करके चीख उठा I
मौलिक व् अप्रकाशित
हार्दिक आभार आदरणीया जानकी वाही जी
क्या कहने हैं आ० प्रतिभा पाण्डेय जी, लाजवाब लघुकथा हुई है. बिना दूध की चाय, स्टील के गिलास का टन्न से बजना - वाह! बहुत कुछ कहकर भी अनकहा इतनी अच्छी तरह से उभरा है, यह वाकई कमाल की बात है. मेरी ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करें.
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