परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 88वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब मुज़फ्फर हनफी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"पहले ये बतला दो उस ने छुप कर तीर चलाए तो "
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फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फा
(बह्र: मुतदारिक मुसम्मन् मक्तुअ मुदायफ महजूफ)
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 अक्टूबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 अक्तूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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नाम हमारा काम है उसका वो आज आजाये तो। कहते है हम आज है आशिक कल दुश्मन बनजाए तो । अपना अपना सुख है ंसबको यदि वो इसे अजमाएतो । कहा है वह कही का देखा जान पे यदि बनआए तो । आपका जिस्म है यदि तांबा तो दुजा सोना हो जाए तो । कहना है ये आज हमारा दुख तुमको मिल जाए तो । कहते है हम आज ये खुलकर मातम तुझको होजाए तो । नहीं हो अगर कहने वाले हार गये तो शर्माओ तुम । कहते हैं हम सीख लो आज तुम मौत अ गर हो जाएतो । काम कौन आयेगा सोचा मिलता है कुछ भी तुमको । नींद मौत की आये गी भी दुनिया यदि टल जाये तो । सुना नहीं नाद जो तुमने हमसे यह शिकायत क्यों । पहले ये बतला दो उसने छुप कर तीर चलाये तों । मौलिक और अप्रकाशित
आ. indravidyavachaspatitiwari जी,
.
मतले से काफ़िया नदारद है ...
ग़ज़ल को ठीक फॉर्म में भेजिए
सादर
बहुत अच्छा प्रयास निस्संदेह .
आ. लक्ष्मण जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
सावन की रातों सी काली हो जाएँगी शीत की रातें..यहाँ एक फेलुन बढ़ रहा है ..मात्राएँ गिन लीजियेगा
.
पत्थर क्या हो जब पड़ जाए तो या
क्या हो जब पत्थर पड़ जाए तो??
ग़ज़ल के लिए बधाई
सादर
आ. लक्ष्मण जी ..
ख़ुद ही के ..कर लीजिये
सादर
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