For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-89

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 89वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब जिगर मुरादाबादी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे "

221       2121      1221       212

मफऊलु फाइलातु मफाईलु फाइलुन

(बह्र: मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ)

रदीफ़ :- रहे 
काफिया :- ईं (नहीं, हसीं, जबीं, हमनशीं, हमीं, तुम्हीं, कहीं, आस्तीं, ज़मीं, आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 नवम्बर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 नवम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 नवम्बर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 11585

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जनाब महेन्द्र कुमार साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत औऱ हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
वाह जनाब तस्दीक साहिब.. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारक़बाद वह कुबूल फरमाएं... 2 बार मुबारक़बाद बाद लिख चुका हूं पर दिखता नहीं है....
आया हूँ लेके इस लिए महफ़िल में आइना

अहले सुखन में कोई नहीं नुक्ताचीं रहे |
जनाब सलीम रज़ा साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया

आ० तस्दीक भाई , शिल्प के बारे में गुनीजन जानें  मुझे आपकी गजल अच्छी लगी , हिंदी में  तो तुहीं शब्द का प्रयोग  नहीं होता . सादर .

मुहतरम जनाब गोपाल नारायण साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।उर्दू डिक्शनरी फिरोज़ुल लुगात में तुहीं के अलावा सारे क़ाफिये मौजूद हैं जो मैं ने ग़ज़ल में लिए हैं ,अब कोई अगर नहीं माने तो क्या किया जा सकता है । हाथ कंगन को आरसी क्या ,मैं तो ओ बी ओ के सभी मेंबर को कहता हूं वो इस डिक्शनरी को ज़रूर देखें ,में सही हूँ या गलत ,पता चल जाएगा

हार्दिक बधाई ।

जनाब लक्ष्मण धामी साहिब ,हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
माँगा था साथ रब से कोई हमनशीं रहे
पहलू में आप सा मेरे इक महजबीं रहे

पूजा नमाज़ अब मेरी तू ही तो है सनम
चौखट पे आपकी मेरा पैहम जबीं रहे

करना मुराद पूरी ऐ परवरदीगार तू
आये जो मौत मेरी तो कातिल हसीं रहे

लूटा है आपने मेरा चैनो-करार जो
ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे काबिल नहीं रहे

तेरे लिए ही वार गये जिस्मो-जान वो
गुलशन सी महकती मेरी ये सरज़मीं रहे

फूलों की डार नोच दी काँटों ने मिल सभी
चाहत ये दिल में पाले हैं बस हम हमीं रहे

फैला है दौर नफरतेअहले जहां में जो
आपस में प्यार हो दिलों कायम यकीं रहे

खुशबू चमन को बाँट के फिर डाल से गिरा
कर जाओ काम ऐसा कि चर्चे ज़मीं रहे

तू 'मीत' है सखा मेरा ग़मख्वारं भी तू ही
नज़रे-नियायतें तेरी इस कमतरीं रहे।

(मौलिक और अप्रकाशित ग़ज़ल)

बधाई स्वीकार करें जी 

अच्छा कहा.... लेकिन, शे'र की पहली पंक्ति में "तू" और दूसरी पंक्ति में "आप" का प्रयोग अशुद्ध है.... साथ ही] व्याकरण सम्बन्घी सावधानियाँ अपेक्षित और आवश्यक हैं !!!

आदरणीय मनजीत जी ने आदाब,
ग़ज़ल का अच्छा प्रयास । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
मनजीत कौर जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।

व्याकरण के हिसाब से आपकी ग़ज़ल का मतला यूँ होना चाहिए:-
'माँगा था रब से,साथ कोई हमनशीं रहे
पहलू में मेरे आप सी इक महजबीं रहे'
सानी मिसरे में 'महजबीं' शब्द स्त्रीलिंग है ।

'चौखट पे आपकी मेरा पैहम जबीं रहे'
इस मिसरे में 'जबीं'शब्द स्त्रीलिंग है, इस लिए ये मिसरा यूँ होना चाहिए :-
'चौखट पे आपकी मेरी पैहम जबीं रहे'
गिरह का मिसरा चस्पां नहीं हुआ ।

'तेरे लिए ही वार गए जिस्मो जान वो
गुलशन सी महकती मेरी ये सरज़मीं रहे'
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,और सानी मिसरे में लय बाधित हो रही है,इस शैर को यूँ किया जा सकता है:-
'इसके लिए ही वार गए जिस्म-ओ-जान हम
गुलशन सी अपनी महकी हुई सरज़मीं रहे'
छटा शैर मुहमिल है, भाव स्पष्ट नहीं हुए ।
सातवां शैर भी मुहमिल है ।
आठवां शैर भी मुहमिल है ।
मक़्ता भी मुहमिल और क़ाफ़िया भी सही नहीं है ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service