आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
यह कथानक बरसों से मेरे जेहन में था, लेकिन पकड़ में नहीं आ रहा था. लेकिन आज इसे काबू कर ही लिया. आपको कथा पसंद आई, यह देखकर मन प्रफुल्लित है. बहुत बहुत शुक्रिया भाई विनय कुमार सिंह जी.
आदरणीय सर, आपकी हर रचना तारीफ़ से बहुत ऊपर होती हैं, हम सभी को बहुत कुछ सिखाते हुए| सादर नमन आपको इस एक और बेहतरीन रचना से परिचय कराने हेतु|
बहुत बहुत शुक्रिया भाई डॉ चन्द्रेश कुमार जी..
काल-बोध
********
वर्तमान और भविष्य का वार्तालाप
"देखिए आप अपने कार्यकलापों को नियंत्रित कीजिये। क्यों मुझे बर्बाद करने पर तुले हैं।"
"देखो, तुम्हें सुनहरे रंग में रंगने के लिए ये सब हो रहा है। मेरी मेहनत का नतीजा तुम बनोगे। तुम्हारे लिए ही मैं खुद को आग में झोंक रहा हूँ"
"आप ऐसा कर ही क्या रहे हैं! बल्कि आप की वजह से मुझे अभी से कितनी समस्याएं होने लगी हैं इसका आभास भी नहीं आपको।"
"अच्छा! ये चमचमाती दुनिया, ये रिसर्च, ये नित नए अविष्कार, अंतरिक्ष की खोज, ये दवाईयां....ये किस के लिए हैं। बताओ?"
"और ये प्रदूषण, ये नित नई बीमारियां, आपसी फूट, वैश्विक आतंकवाद, अंतरिक्ष कचरा...इनसे किसे जूझना होगा। है जवाब आपके पास!"
"देखो, कल तुम्हें वहीं खड़ा होना है जहां मैं आज हूँ। मुझ से सीख कर अपने आगे वालों को और बेहतर दुनिया दे सकोगे।"
"पता नहीं। पर जहां मैं आज हूँ, कल आप भी वही खड़े थे।"
कोने में खड़े इतिहास के होंठों पर तभी एक अर्थपूर्ण मुस्कान और आंखों में अबूझ वीरानी तैरने लगी।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
भाई अजय गुप्ता अजेय जी, वाह! बहुत ही सुंदर लघुकथा कही है. सधा हुआ शिल्प, कसी हुई प्रस्तुति और सार्थक सन्देश. मेरी बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें. एक सुझाव है:
लघुकथा के प्रारंभ में "वर्तमान और भविष्य का वार्तालाप" लिखकर आपने रचना में से एलीमेंट ऑफ़ सरप्राइज़ खत्म कर दिया. ये वार्तालाप कौन कर रहा है इसका खुलासा अंत में होता तो रचना में रोचकता का तत्व और भी बाद जाता. अंतिम पंक्ति यदि यूँ लिखी जाए तो क्या रचना और प्रभावशाली नहीं हो जाएगी?
//वर्तमान और भविष्य का वार्तालाप सुनकर कोने में खड़े इतिहास के होंठों पर तभी एक अर्थपूर्ण मुस्कान और आंखों में अबूझ वीरानी तैरने लगी।//
वाह। एक ही पंक्ति में आपने निचोड़ भर दिया आ. योगराज जी।
मैं समझ नहीं पा रहा था कि इस वार्तालाप को अंत मे जोड़ूँ कैसे तो पशोपेश में पड़कर प्रारम्भ में लिख दिया।
अमूल्य सुझाव और उत्साहवर्धन हेतू अति आभार। आपके दिए सुझाव पर अवश्य अमल करूँगा।
पुनः आभार
बहुत अच्छा सुझाव दिया सर आपने. सादर.
शुक्रिया सतविंदर भाई।
सभी सुझावों पर ध्यान रहेगा।
वाह साहिब। आप सुधीजन इतनी बेहतरीन परिकल्पना कैसे कर पाते हैं!! बहुत ही अनुपम और दिलचस्प, किंतु उतनी ही संवेदनशील, विचारोत्तेजक और संदेश वाहक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय' जी। आदरणीय सर श्री योगराज प्रभाकर साहिब का सुझाव और मार्गदर्शन हमें बहुत कुछ सिखा रहा है।
शुक्रिया उस्मानी जी।
आपका कथन सत्य है कि योगराज जी और हम सब आपस मे भी इस विचार विमर्श से अपने लेखन में सुधार ला रहे हैं
आद0 अजय जी एक बेहतरीन लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ। भाई योगराज जी के सुझाव से और बेह्तर हो जाएगा।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |