आदरणीय साथिओ,
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जी।
आभार एवं अभिनंदन
उम्दा लघुकथा है आ. अजय जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
शुक्रिया महेंद्र जी।
बहुत खूब ..प्रदत्त विषय पर सारगर्भित कसी हुई लघु कथा हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता जी
हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता जी।बेहतरीन संदेश प्रद लघुकथा।
बेहतरीन लघुकथा आदरणीय अजय गुप्ता जी । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
दुहराव—
कम से कम अपनी एकलौती बेटी से उनको यह उम्मीद नहीं थी, आखिर उनके इस समृद्द राजनीति की वह अकेली
वारिस थी. जिस चीज को लेकर उन्होने यह इमारत खड़ी की थी, उसी को नेस्तनाबूत करने की बेटी की हरकत
उनको अंदर ही अंदर साल रही थी.
“बात की गहराई को समझो बेटी, आखिर इस जिद्द से तुमको क्या मिलेगा. तुम यह अच्छी तरह से जानती हो कि
यही मेरी राजनीति का आधार है और तुम इसके खिलाफ ही जाकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जा रही हो”,
उनके स्वर मे क्रोध का पुट आ गया.
“पापा, जरूरी नहीं कि मैं भी उसी ढर्रे पर चलूँ जिसपर आप चलते रहे हैं. मेरा सोचने का नज़रिया आपसे अलग है
और मैं इन चीजों को अपनी जाती जिंदगी से अलग रखना चाहती हूँ”.
“जाती जिंदगी और कैरियर को अलग सोचने की भूल मत ही करो तो बेहतर होगा. तुमको पता नहीं यहाँ कितनी
छोटी छोटी चीजों पर लोगों का कैरियर खत्म हो जाता है”, उसने अपनी बात को ज़ोर देते हुआ कहा.
“मुझे पूरा यकीन है कि इस चीज से मेरे भविष्य पर कोई असर नहीं पड़ने वाला, आप निश्चिंत रहिए".
"आखिर तुमको उसी लड़के मे क्या दिख गया जो अपने मज़हब के लड़कों मे नहीं दिखा. क्या लड़कों की कमी है
अपने यहाँ?, उन्होने चिल्लाते हुए कहा.
बेटी ने उनको खामोशी से देखा और बोली "आपको भी तो अपने मज़हब की कोई लड़की नहीं मिली थी पापा".
"मेरा समय और था, आज की बात और है", वह कहना चाहते थे लेकिन शब्द उनके हलक मे ही फंसे रह गए. बेटी
ने माँ की टंगी हुई तस्वीर को प्यार से देखा और अपने कमरे मे चली गयी.
मौलिक एवम अप्रकाशित
आद0 विनय जी सादर अभिवादन। बढिया प्रदत्त विषयानुकूल लघुकथा, /उनके शब्द हलक में फंस गए/ अच्छा व्यंग। बधाई इस प्रस्तुति पर
इतिहास अक्सर अपने आप को दोहराता है. इस बात को दर्शाती हुई अच्छी लघुकथा कही है आपने आ. विनय जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
विषयांतर्गत बहुत बढ़िया भावपूर्ण व विचारोत्तेजक रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी। //लेकिन शब्द उनके हलक मे ही फंसे रह गए// यहां अनकहे में बहुत कुछ है।
शीर्षक बेहतरीन भी सोचा जा सकता है आम शीर्षक के स्थान पर। सादर।
इतिहास के दुहराव को केन्द्रित कर बहुत सुदर कथा कही है आदरणीय विनय जी .. हार्दिक बधाई आपको
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