आदरणीय साथिओ,
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मुहतरम जनाब तेजवीर साहिब ,लघुकथा में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
अच्छी लघुकथा है आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब |
मुहतरम लक्ष्मण लड़ी वाला साहिब ,लघुकथा में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
विषयांतर्गत बहुत बढ़िया पेशकश के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब। सुधीजन के सुझावों पर ग़ौर फ़रमाइयेगा।
गुनाहों का हिसाब
जिस दिन का वह क़ब्र में पड़े-पड़े बरसों से इन्तज़ार कर रहा था आखि़र वो आ ही गया। मुर्दे जी उठे। लोगों से ठसाठस भरे मैदान में पाॅल ने अपनी नज़रें दौड़ायीं। हर तरफ़ बस एक ही सवाल तैर रहा था, ‘‘किसे जन्नत नसीब होगी और किसे दोज़ख़?’’ हालांकि यह सवाल पाॅल के लिए, जिसने जीवन में एक मच्छर भी नहीं मारा, उतना कठिन नहीं था।
धोख़ेबाज़ विक्टर पुल के पास खड़े हो कर सिगरेट के कश लगा रहा था। विक्टर ने अनगिनत अपराध किये थे उन्हीं में से एक पाॅल की सम्पत्ति और उसकी प्रेमिका जेसिका को धोख़े से हथियाना भी था। ‘‘तुम्हें मैंने अपने भाई की तरह माना विक्टर और तुम्हीं ने मुझसे...’’ हमेशा की तरह अपनी कुटिल मुस्कान बिखेर कर विक्टर ख़ामोश था। ‘‘मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था जेसिका कि तुम मेरे साथ ऐसा करोगी।’’ पाॅल को जेसिका से, जिसने विक्टर की तरह ही पॉल को धोख़ा दिया था, बेपनाह मुहब्बत थी।
धीरे-धीरे लोगों ने न्याय के पुल पर चढ़ना शुरु किया। इससे पहले कि विक्टर की सिगरेट ख़त्म होती जेसिका उसके पास थी। उसने विक्टर के होठों से सिगरेट को ले कर अपने होठों से लगाया और फिर पाॅल की तरफ़ देखा। अब तक विक्टर के हाथों में जेसिका का हाथ आ चुका था। दोनों न्याय के पुल की तरफ़ चल दिये। आजीवन सबकुछ चुपचाप सहने वाला पाॅल आशान्वित था, ‘आज तो इनके गुनाहों का हिसाब होगा ही।’
मगर विक्टर और जेसिका, जिन्हें पुल के बीच में ही गिर कर नर्क पहुँच जाना था, पुल पार कर चुके थे। पाॅल हैरान था। ‘ये पापी स्वर्ग कैसे पहुँच सकते हैं?’
थोड़ी ही देर में देश के प्रसिद्द लुटेरे, बलात्कारी, बड़े-बड़े भ्रष्टाचारी और सामूहिक हत्यारे, सभी के सभी पुल के पार थे। ‘‘असम्भव! ये कैसे हो सकता है?’’ पाॅल ने अपना पसीना पोछते हुए कहा।
मैदान में खड़े बाकी लोग भी हतप्रभ थे। वे डर के मारे पुल से दूर भागने लगे। तभी कुछ अजीब से लोग वहाँ आये और लोगों को पकड़-पकड़ कर पुल पर ले जाने लगे। पसीने से तर-ब-तर पाॅल सोच रहा था कि जब उसने कोई गलत काम किया ही नहीं तो वो दोज़ख़ में कैसे जाएगा।
फरिश्तों ने पाॅल को उठाया और पुल के बीच ले जा कर छोड़ दिया। पाॅल ने जैसे ही पहला कदम बढ़ाया वो पुल के नीचे था। इससे पहले कि नर्क की आग उसे पूरी तरह झुलसाती वह ज़ोर से चीख़ा, ‘‘ये दुनिया ईश्वर ने नहीं बल्कि शैतान ने बनायी है।’’
(मौलिक व अप्रकाशित)
आदरणीय महेंद्र कुमार जी बहुत दिव्य कल्पना की है आप ने. बधाई
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय ओमप्रकाश जी. सादर.
जनाब महेन्द्र कयमर जी आदाब,आपकी लघुकथाएं हमेशा मुतास्सिर करती हैं,ये लघुकथा भी प्रदत्त विषय से पूरा न्याय कर रही है,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
सादर आदाब आदरणीय समर कबीर सर. बस आप लोगों का स्नेह है. लघुकथा को पसन्द करने के लिए हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
आदरणीय महेंद्र कूमार जी आदाब,
बेहतरीन , लाजवाब , अनूठी और विषय प्रदत्त लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए ।
सादर आदाब आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी. हौसला अफज़ाई के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ. सादर धन्यवाद.
वाह, इस अनूठी कल्पना के लिए साधुवाद. एक अलग सा कथानक लेकर बहुत बढ़िया लिखा है आपने, बहुत बहुत बधाई आ महेंद्र कुमार जी
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