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कटाक्षिकाएँ
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(1) बोला खेत एक दिन खलिहान से
" कैसे हैं इन दिनों किसानों के हाल ?"
तपाक से बोला खेत -
" कर्ज़ की अर्थी उठा रहा है ,
अरमानों को कफ़न से सजा रहा है ।"
(2) खेत और खलिहान में
कभी मनमुटाव
नहीं होता है
क्योंकि दोनों का
मिट्टी से जुड़ाव होता है ।
(3) सीमेण्ट-कांक्रीट
का अजगर
खेत और खलिहान को
ज़िंदा निगल गया
और देखते ही देखते
पॉश कॉलोनी में बदल गया ।
(4) दिन-ब-दिन किसान
अपना अस्तित्व खो रहा है
यह देखकर
खेत और खलिहान का
लहू खौल रहा है ।
(5) अगर ऐसे ही होती रही
किसानों की आत्महत्याएँ
तो एक समय ऐसा भी आएगा ,
जब खेतों में बीज नहीं
किसानों की चिताओं को
बोया जाएगा ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
बहुत खूब लघुकाव्य।
विभिन्न विषयों को छूते बेहतरीन और सटीक शब्द।
आदरणीय अजय गुप्ता जी रचना की सराहना और हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत आभार ।
यह लघुकाव्य नहीं कटाक्षिकाएँ हैं जैसा कि शीर्षक से भी स्पष्ट है ।
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब ,प्रदत्त विषय पर किसानों के हालात बयान करती सुन्दर कटा क्षिकाएँ हुई हैं ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
रचना की सराहना और हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी ।
आ. भाई आरिफ जी, एक अच्छी रचना से मंच का आगाज करने के लिए बहुत बहुत बधाई ।
बहुत-बहुत आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।
वाह आ0 मोहम्मद आरिफ जी बहुत ही चुभती कताक्षिकाएँ।
खेत और खलिहान में
कभी मनमुटाव
नहीं होता है
क्योंकि दोनों का
मिट्टी से जुड़ाव होता है । बहुत खूब।
रचना पर निरपेक्ष टिप्पपणी और हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय वासुदेव अग्रवाल जी ।
वाह, खेत और खलिहान का मानवीकरण मन को छू गया। नाविक के नन्हें तीरों की चुभन, क्षणिकाओं में उतर आई हैं।
रचनि पर उत्साहजनक टिप्पणी और हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत हार्दिक आभार आदरणीय अरुण निगम जी । लेखन सार्थक हो गया ।
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,आयोजन का आग़ाज़ बहतरीन क्षणिकाओं से किया आपने,हर क्षणिका उत्तम और प्रभावशाली हुई है,वाह मज़ा आ गया,इस प्रस्तुति पर दिल से देरों बधाई स्वीकार करें ।
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