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दोहे- खेत खलिहान ( दूसरी प्रस्तुति )
फसलें सूखी खेत की, फाँसी चढ़ा किसान
रोकर भी अब क्या करे, यह टूटा खलिहान।१।
किल्लत खेतों को रही, उद्योगों को नीर
ऐसे में खलिहान को, कौन बँधाए धीर।२।
पड़ीं दरारें खेत में, तकता नभ खलिहान
रूठा बादल अब भला, सुनता कहाँ अजान।३।
फसल नहीं खलिहान में, इत उत सूखे खेत
अब के सावन दे गया, कहकर रिश्वत रेत।४।
खून पसीना एक कर, बोता बीज किसान
और फुहारें देख के, हँसे खेत खलिहान।५।
सूखे से मिल बाढ़ दे,खेतों को नित दंश
ऐसे में कैसे बढ़े, खलिहानों का वंश।६।
भले खेत खलिहान हैं, भारत की पहचान
सरकारों से पर मिला, कब इनको सम्मान।७।
रहे खेत खलिहान ही, सकल देश काे पोष
लगे भुखमरी का कहो, फिर क्यों माथे दोष।८।
सुविधाओं की नित कमी, सहे खेत खलिहान
तब क्यों कहते फिर रहे, देश खेती प्रधान।९।
अगर चाहते भूख से, बचा रहे यह देश
मिले खेत खलिहान को, तो अच्छा परिवेश।१०।
मौलिक अप्रकाशित
जनाब लक्ष्मण धामी साहिब ,प्रदत्त विषय पर सुन्दर और आकर्षित दोहे हुए हैं ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
आ. भाई तस्दीक अहमद जी, हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय धामी जी विषयानुकूल बेहतरीन सृजन के लिए दिल से बधाई
आ. भाई छोटेलाल जी, उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद ।
इस दोहावली के माध्यम से खेत-खलिहान और किसान की व्यथा बहुत ही सटीक ढंग से उजागर हुई है आ० लक्ष्मण धामी जी. हार्दिक बधाई प्रेषित है.
आ. भाई योगराज जी, सादर अभिवादन । आपकी उपस्थिति से लेखन सफल हुआ । स्नेह के लिए आभार ।
महाउत्सव में विषयांतर्गत एक और शानदार सारगर्भित दोहावली सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब।
आ. भाई शेख शहजाद जी, स्नेह के लिए आभार ।
सुंदर दोहे,बधाई आदरणीय।हाँ, टूटा खलिहान?
आ. भाई मनन जी, हार्दिक धन्यवाद ।
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,प्रदत्त विषय पर आपकी दूसरी प्रस्तुति भी बहुत उम्दा हुई,इन बढ़िया दोहों के लिए बधाई स्वीकार करें ।
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