आदरणीय साथिओ,
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जनाब विनय कुमार साहिब , लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
वाह, बहुत खूब। बहुत ही मासूम सी लेकिन साथक सन्देश देती हुई लघुकथा कही है आ० तस्दीक़ अहमद खान साहिब। मेरी दिली मुबारकबाद स्वीकार करें।
मुहतरम जनाब योगराज साहिब , लघुकथा पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया मिल गई मेरा लिखना सार्थक हो गया |आपकी हौसला अफज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,प्रदत्त विषय को परिभाषित करती बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
मुहतरम जनाब समर साहिब आ दाब, लघुकथा मेंआपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
बचपन में मिले संस्कारों से ही आगे की मानसिकता विकसित होती है ।सही समय पर बेटी को कमतर मानने की प्रवृति को बचपन से ही समूल नष्ट कर देना उचित है ।सारगर्भित कथा के लिये बधाई आद० तस्दीक़ अहमद खान जी ।
मुह तरमा नीता साहिबा , लघुकथा पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
सरल, सुन्दर और संदेशप्रद लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान जी। सादर।
जनाब महेंद्र कुमार साहिब , लघुकथा पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
बच्चो में भेद भाव के विषय को मुखरता से दिखाती और विषय को सार्थक करती सुंदर रचना के लिये अनुज की ओर से हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद जी। सादर।
आदाब जनाब तस्दीक साहब,
//सलमा को मायूस देख कर खान साहिब बोले "क्या बात है बेटी, आज ख़ुशी का दिन है, चहरे पर उदासी अच्छी नहीं"// इस वाकय में पिता ने क्या पूछा है? समझ नहीं पायी हूँ|
और एक बात मुझे लगती है, बच्चों की शिकायत पर कोई भी पति पत्नी उनके सामने एक दुसरे को यूँ डांट कर बात करें क्या यह ठीक होगा? हो सकता है मेरी कोई भूल हुई हो इस कथा के मर्म को समझने में , पर ठीक ठाक ही लगी आपकी यह लघुकथा| सादर |
ऊँचे लोग – लघुकथा –
पुजारी जी अपनी पत्नी की बात सुनकर सन्न हो गये। एक बार तो यकीन ही नहीं हुआ। चौधरी राम जीत और उसकी झूठी प्रतिष्ठा से विश्वास ही उठ गया। जितने बड़े लोग, उतने ही घटिया काम| गाँव का सबसे नामी और धनवान खानदान और ऐसे गिरे कारनामे। पुजारी जी माथा पकड़ कर भोलेनाथ की मूर्ति के समक्ष औंधे मुँह गिर पड़े| जैसे किसी बात का प्रायश्चित कर रहे हों|
पुजारी जी की आँखों के सामने एक महीने पहले की घटना चल चित्र की तरह घूम गयी।
पूर्णमासी की सुबह लगभग पांच बजे चौधरी राम जीत ने मंदिर का दरवाजा खटखटाया। पुजारी जी ने द्वार खोला। चौधरी एक नवजात शिशु को गोद में लिये खड़ा था। चौधरी ने बताया कि, वह टहलने निकला था तो देखा कि यह बच्चा मंदिर के प्राँगण में मुख्य दरवाजे पर रेशमी वस्त्र में लिपटा रो रहा था ।
आनन फ़ानन में पुजारी ने गाँव के प्रधान जी को बुला लिया। गाँव में खबर आग की तरह फ़ैल गयी। मंदिर में लोगों का जमघट लग गया। कानाफ़ूसी होने लगी। छोटा सा गाँव था। हर पहलू पर विचार किया लेकिन कोई हल नहीं निकला।
अंततः चौधरी जी ने सुझाव दिया कि चूँकि दो साल पहले उनके इकलौते बेटे की सड़क दुर्घटना में मौत होने से उनका कोई वारिस नहीं है। उनकी विधवा पुत्र वधू को भी समय बिताने का एक जरिया मिल जायेगा। इसलिये वे यह बच्चा गोद लेना चाहते हैं।
पंचायत ने सलाह मशविरा कर, सर्व सम्मति से फ़ैसला कर बच्चा चौधरी को सोंप दिया।
बच्चे की देखभाल और मालिश बगैरह के लिये चौधरी ने पुजारी जी की अनुभवी घरवाली को इस काम पर रख लिया।
आज पुजारी की पत्नी ने पुजारी को बताया, “चौधरी के बेटे की विधवा उस बच्चे को स्तन पान करा रही थी। मुझे अचानक आया देखकर सकपका गयी। बोली कि रो रहा था तो ऐसे ही बहला रही थी जबकि बच्चे के मुँह में माँ का ताज़ा दूध लगा हुआ था”।
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