आदरणीय साथिओ,
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सत्ता के समीकरण पर आधारित कथा केलियेधाई आद० मननकुमार सिंह जी ।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया नीता जी।
आदरणीय आपकी लघुकथा में अतुकांत कविता पढ़ने का भी आनंद मिला। आपसे निवेदन है कि यदि समय मिले तो हमारे द्वारा प्रेषित लघुकथा पर भी अपने सुधारात्मक विचार अथवा आलोचनात्मक टिप्पणी करने की कृपा कीजिएगा ताकि लघुकथा को और भी प्रभावी बनाया जा सके। धन्यवाद
बहुत बहुत आभार आदरणीय।
//तीर तो घाव ही देगा न; चाहे लालटेन को,या फूल को।// इस पंक्ति में आपने प्रतीकों के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया है आदरणीय मनन जी। बढ़िया लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
आपका बेहद आभार आदरणीय।
सांकेतिक शैली में अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीय मनन कुमार सिंह जी| बढ़िया लघुकथा हुई है जिसके लिए बधाई स्वीकारें|
पका आम
‘‘वैसे ही इस साल आम कम फले हैं और ये तोते, गिलहरियाॅं सब खाए जा रहे हैं’’ कहते हुए सुलोचना ने लम्बा सा बाॅंस उठाया और आॅंगन में लगे पेड़ पर कई बार ठोकर देकर सभी तोते और गिलहरियों को भगा दिया। पास में खड़ी उसकी चार पाॅंच साल की बेटी बोल पड़ी,
‘‘ माॅं ! तोते को क्यों भगा दिया, गिलहरी भी चली गईं, वे सब कितने अच्छे हैं, मैं उनके साथ खेल रही थी ...’’
‘‘ अरे! ये सब आम खा जाएंगे, हमें कुछ न बचेगा, इन्हें देखते ही भगा दिया करो’’
‘‘ तो अब वे क्या खाएंगे?’’
सुलोचना इसका उत्तर सोच ही न पाई कि बेटी बोल पड़ी,
‘‘ कोई बात नहीं, अब मैं अपने स्कूल के लंचवाक्स से उनको खिलाया करूंगी ’’
‘‘ नहीं नहीं... .. ’’ बोलते हुए सुलोचना कुछ और कह पाती कि एक पका आम टूट कर बेटी के पास गिरते हुए बोला,
‘‘ बेटी! जब तुम्हारी माॅं तुम्हारी तरह छोटी थी, वह भी ऐसा ही कहा करती थी , अब वह बड़ी हो गई है न ! इसलिए कुछ स्वार्थी हो गई है।’’
‘‘ बड़ा होने पर मैं भी स्वार्थी हो जाऊॅंगी क्या?’’
‘‘ हो सकता है पर, नहीं, तुम स्वार्थी बिलकुल न होना, हम पेड़ों की तरह सबका हित चाहना, किसी को उनके अधिकार से वंचित न करना, सभी पेड़ पौधों, पशु पक्षियों को अपना मित्र बनाए रखना’’
झट से सुलोचना वह पका आम लपकते हुए बोली,
‘‘ बहुत गर्मी है, अन्दर चल, होमवर्क नहीं करना क्या? छुट्टियाॅं खत्म होने वाली हैं। ...’’
मौलिक व अप्रकाशित
मासूमियत से लबरेज़ मानवेतर लघुकथा , साथ में पर्यावरण संरक्षण की नसीहत भी , बहुत बहुत बधाई।
अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय शुकुल जी ।
बालमन में उठते निःस्वार्थ भावों को तथा प्रकृति सम अपना आचार-विचार बनाये रखने का संदेश देती लघुकथा.हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी.
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