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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 92 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-93

विषय - "मृगतृष्णा"

आयोजन की अवधि- 13 जुलाई 2018, दिन शुक्रवार से 14 जुलाई 2018, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 13 जुलाई, 2018, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

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मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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मुह तरमा राजेश कुमारी साहिबा , प्रदत्तविषय पर सुंदर गीत हुआ है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर, प्रदत्त विषय को परिभाषित करते गीत के सभी अंतरे अच्छे रचे गए हैं. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर. 

बहना राजेश कुमारी जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करता सुंदर गीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

प्रदत्त विषय पर बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीया राजेश दी.

आदरणीया राजेश कुमारी जी, क्या कहने रचना के। हर पंक्ति को बार-बार पढ़ कर भी मन नहीं भरता। प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

वाह ! वाह! वाह! वाह!  मन खिल उठा ऐसा गीत पढ़कर । मज़ा आ गया ।  हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी ।

आदरणीया राजेशजी

प्रकृति इतनी  सुंदर है,   प्राकृतिक जीवन जियें,  सुख अंदर है  और मानव काल्पनिक एवं सांसारिक सुख की चाह में मृग [पशु] की तरह भटकता फिरता है। सुंदर प्रस्तुति हार्दिक बधाई

नाभी ....... नाभि

बहुत सुन्दर गीत आदरणीया राजेश जी, हार्दिक बधाई प्रेषित है

नवगीत

*जाने कैसा प्यासा बादल*


प्यास बुझाने  भटक रहा है

जाने कैसा प्यासा बादल?


भरे पड़े भंडार बहुत हैं

सागर को मिलते कब मोती

दीप उजाला ढूँढ रहा है

माथे पर रखता जो जोती


लाल कईं पाले हैं जिसने

सूना उस ममता का आँचल।


प्रीत बसी है हिय के अंदर

खोज प्रेम की प्रेमी करता

कस्तूरी को खोज-खोज कर

मृग बेचारा थक कर मरता


जान लिया है जिसने सच को

वो होता दर-दर का पागल।


गीत छंद शब्दों की क्यारी

भाव पिरोये बनती कविता

आज प्रेरणा चाह रही है

औरों से यह मन की सविता


समझ सकेंगे खुद से ‘उस’ को

भूलें बाहर की हर हलचल।


मौौौलिक अप्रकाशित

सुंदर एवं आकर्षक पंक्तियाँ आदरणीय राणा जी बधाई हो

लाल कई पाले हैं जिसने सूना उस ममता का आँचल ...बहुत खूब प्रदत्त विषय को सार्थक करता नवगीत 

हार्दिक बधाई आद० सतविंदर कुमार भैया 

जनाब सतविंदर कुमार साहिब  , प्रदत्त विषय पर सुंदर नव गीत हुआ है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |

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