For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'स्वावलंबन, भारतीयता या आज़ादी' (लघुकथा)

अपने इस मुकाम पर वह अब अपनी डायरी और फोटो-एलबम के पन्ने पलट कर आत्मावलोकन कर रही थी।

"सांस्कृतिक परंपरागत रस्म-ओ-रिवाज़ों को निबाहती हुई मैं सलवार-कुर्ते-दुपट्टे से जींस-टॉप के फैशन की चपेट में आई और फिर आधुनिक कसी पोशाकों को अपनाती हुई वाटर-पार्क व स्वीमिंगपूलों के लुत्फ़ लेती हुई अत्याधुनिक स्वीमिंग सूट तक पहुंच ही गई!" तारीख़ों पर नज़रें दौड़ाती हुई एक आह सी भरती हुई उसने अपनी आपबीती पर ग़ौर फ़रमाते हुए अपने आप से कहा - "ओह, धन-दौलत और नाम कमाने की लालच में फैशनों का अंधानुकरण करती हुई आख़िर साथियों की तरह मैंने भी थोड़ा-थोड़ा करके शरीर के मुख्य भागों से वस्त्र कम करते हुए वहां फैशनेबल टैटू गुदवा लिए!" फिर अपने साथियों के टैटूमय फोटो देख कर उनके नग्न-अर्द्धनग्न शरीर याद करते हुए उसने अपने गंजे सिर और पूर्ण-नग्न शरीर पर बने जंज़ीरनुमा टैटूज़ को निहारते हुए अपने मन से कहा - "लेकिन.. लेकिन यह सब मैंने केवल अपनी क्षणिक ख़ुशी के लिए किया या हाई-प्रोफाइल समाज और उसके पुरुषों की ख़ुशी के लिए? आज़ादी के नाम शरीर सार्वजनिक करने के लिए या बेचने के लिये? अपने संस्कारों व अपने शुभचिंतकों से धोखा, छल किया या मात्र अपनी और पुरुषों की यौन-संतुष्टि परिलक्षित हुई?"


"नहीं, मुझे अब निगेटिविटी छोड़नी होगी! कितने मज़े कर लिए इतनी सी ज़िन्दगी में! ...एक अविवाहित युवती को अब और क्या चाहिए?" सहसा वह दूसरी तरह से सोचने लगी।


"अभी तू अधूरी है, मां बने बिना! ममता की असली अनुभूति के बिना! पति और घर-परिवार के बिना! एक बार अपने 'सम्पूर्ण भारतीय महिला' का रूप भी तो अपना कर देख! असली मज़ा और सुख-संतुष्टि चख के तो देख स्वावलंबन के साथ!" उसकी सुसंस्कृत अंतर्आत्मा ने उसे झकझोरते हुए कहा।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 562

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 18, 2018 at 11:10pm

मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर इसके मर्म तक जाकर अपने विचार सांझा करते हुए मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरमा जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, जनाब समर कबीर साहिब,जनाब विजय निकोरे साहिब, जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब, जनाब सुशील सरना साहिब,मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा और मुहतरमा बबीता गुप्ता साहिबा।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 18, 2018 at 10:07pm

जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आ दाब , उम्दा लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l 

Comment by Sushil Sarna on July 17, 2018 at 5:30pm

आदरणीय उस्मानी साहिब , आदाब .... वर्तमान को जीती इस बेहतरीन लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by vijay nikore on July 17, 2018 at 2:18pm

अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई

Comment by babitagupta on July 16, 2018 at 9:12pm

आधुनिकता की दौड़ में चाहे जितनी संतुष्टि करले लेकिन सही आत्म संतुष्टि माँ बनने पर ही मिलती हैं.बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।

Comment by Neelam Upadhyaya on July 16, 2018 at 10:33am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी , सच कहा।  स्त्री की परिपूर्णता तभी होती है जब माँ बनती है।  अच्छी लघु कथा की पेशकश।  बधाई स्वीकार करें । 

Comment by Samar kabeer on July 15, 2018 at 8:11pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on July 15, 2018 at 5:21pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                       स्त्री होने की चरम पराकाष्ठा उसका माँ बनना है ।आजकल देखने में यह आ रहा है कि हम कितने फैशनेबल हैं । फैशन की अंधी दौड़ में धर्म और नैतिकता को ताक में रख दिया है जबकि यह होना नहीं चाहिए । बहुत ही उम्दा लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service