परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 98 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब दाग़ देहलवी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं "
2122 1122 1122 112/22
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फइलुन/फेलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 अगस्त दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 अगस्त दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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मोहतरम मिर्जा साहब मुशायरे में पहली मर्तिबा आपकी कोई ग़ज़ल पढ़ रही हूँ बहुत अच्छी लगी सभी शेर उम्दा हैं दिल से दाद कुबूलें
मोहतरमा राजेश कुमारी जी आदाब
आपकी दाद मिली मेरी ख़ुशनसीबी है ।
मुझे फ़ख्र है कि मैंने आपको रू बरू सुना है ।
आपका नाम पढ़ते ही मुझे भी कुछ ऐसा लगा था शायद हम भोपाल में मिले थे
भोपाल में नहीं बहना, उज्जैन में मेरे ग़रीब ख़ाने पर मिलीं थीं आप इन से ।
आदरणीय मिर्जा जावेद साहब शेर दर शेर कमाल की लेखनी चली बधाई हो
मोहतरम डा० छोटेलाल जी आदाब आपने मेरी ग़ज़ल की अदना सी कोशिश पर दादो तहसीन से नवाज़ा तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूं जनाब ।
आ. जावेद जी, अच्छी गजल के लिए हार्दिक बधाई ।
जनाब लक्ष्मण जी आदाब
सुख़न नवाज़ी के लिए दिली शुक्रिया ।
गम छुपाते हैं सरेआम बताते भी नहीं
मुस्कुराते हैं कभी दर्द दिखाते भी नहीं
हाले दिल उनसे किस तरह से बताया जाए
इश्क़ की राह में जो कदम बढ़ाते भी नहीं
ऐसे अंदाज़ पे क़ुर्बान क्यूँ न हो जाएँ
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं
उनसे मिलने की जुस्तजू मिरे दिल में ही रही
मुझसे मिलने का इरादा वो जताते भी नहीं
हर समय रिश्ते निभाते हैं उफ़ नहीं करते
दिल में इज़्ज़त हो तो किसी से छुपाते भी नहीं
करे रौशन सबको दूर करे अँधियारा
आजकल ऐसी शमा लोग जलाते भी नहीं
मौलिक एवम अप्रकाशित
बहुतअच्छी गज़ल बधाई जी
बहुत बहुत शुक्रिया आ मुनीश तनहा जी
आदरणीय विनय कुमार जी आदाब,
बहुत अच्छा प्रयास । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
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