आदरणीय साथिओ,
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आदरणीया बबिता जी, ईमानदारी और अपनी अल्प समझ से कहूँ तो आपकी रचना में मुझे कई कमियाँ नज़र आयीं।
1. आपने लघुकथा में कथ्य हेतु जो विषय उठाया है वो कमज़ोर है। क्या बुजुर्गों की दुआ मात्र से किसी को सफलता मिल सकती है? यह मात्र आस्था का विषय है इस हेतु यह प्रदत्त विषय से संगत है पर इसे (प्रदत्त विषय को) किसी अन्य कथ्य के साथ भी कहा जा सकता था।
2. लघुकथा में आपका संदेश भी अस्पष्ट है। आपने गाड़ी की चर्चा की है पर न तो कपिल के पास गाड़ी दिखायी और न ही उसकी बहन के पास बल्कि वो तो टैक्सी से उसके पास जाती है। पाठक सिर्फ़ "कपिल के हॉस्पिटल" से ही अन्दाज़ा लगा सकता है कि उसके पास अस्पताल है पर यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। साथ ही, इसका दूसरा अर्थ भी निकल सकता है जैसे कपिल का उस अस्पताल में काम करना।
3. शीर्षक, जो लघुकथा का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग होता है, साधारण है।
4. वाक्य संयोजन देख कर लगता है कि लघुकथा को उचित समय नहीं दिया गया है।
थोड़े से संपादन से यह एक बढ़िया लघुकथा बन सकती है। आयोजन में सहभागिता के लिए मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
बढ़िया प्रयास हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता जी। कृपया गुरुजन और वरिष्ठजन की इस्लाह पर ग़ौर फ़रमाइयेगा।
बढ़िया प्रयास हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता जी। कृपया गुरुजन और वरिष्ठजन की इस्लाह पर ग़ौर फ़रमाइयेगा।
आदरणीया बबीता जी आदाब,
लघुकथा के अच्छे प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें तथा गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।
आस्था की संपूर्णता
पुलिस जिसकी तलाश में आई थी वह नहीं मिला, लिहाजा जरूरी कार्यवाही के बाद पुलिस वापस लौट गयी। आश्रम के बाहर भक्तों में शिकायत करने वाले के प्रति आक्रोश तो था लेकिन 'कलीन चिट' मिलने की संतुष्टि भी थी।
अंदर,आश्रम के निजि कक्ष में आचार्य के सामने वह अपराधी बना खड़ा था। "ये तुमने अच्छा नहीं किया कृष्णा।"
"मैं जानता हूँ आचार्य कि मैंने आपसे बात किए बिना पुलिस को खबर करके सही नहीं किया लेकिन....." उसकी नजरें आचार्य की ओर प्रश्नमुद्रा में उठी हुयी थी। ".......क्या ये सच नहीं कि आपने उस हत्यारे को यहां आश्रय दिया। हां, यह बात अलग है कि पुलिस कार्यवाही में वह नहीं मिला।"
"ये सही है कृष्णा कि हमने उसे यहां आश्रय दिया। वह घायल था और मानव धर्म के नाते उसकी मदद करना हमारा कर्तव्य था।"
"अर्थात आपने न केवल एक हत्यारे के लिये झूठ बोल कर कानूनन अपराध किया, बल्कि बाहर उपस्थित श्रदालुओं की आस्था से भी खेला।" कृष्णा के चेहरे पर व्यंग्य भरी मुस्कान थी।"
"नहीं ऐसा नहीं है, हमने केवल सच को छुपाया।" आचार्य सहज ही गंभीर हो गए। "आस्था एक पवित्र जल की तरह होती है कृष्णा, यदि इसमें विषरूपी अविश्वास की एक बूंद भी पड़ जाए तो वह संपूर्ण जल को नष्ट कर देती है। बस, यही हम नहीं चाहते थे क्यूंकि इस आश्रम से न केवल अनगिनित लोगों का विश्वास बल्कि मेरे पूर्ववर्ती गुरुओं की आस्था भी जुड़ी हुयी है।"
"लेकिन आपने उस अपराधी को बचाकर मेरा बरसों का जो विश्वास भंग किया है, उसका क्या आचार्य....?"
"कृष्णा! मेरे प्रति तुम्हारी सम्पूर्ण आस्था तो शायद पहले भी नहीं थी वरना एक बार तुम मुझसे वास्तविक स्थिति अवश्य जान लेना चाहते।" आचार्य के मुख पर एक अर्थमिश्रित मुस्कान आ गयी। "बरहाल जिस अपराधी की तुम बात कर रहे हो पुत्र; कभी वह मिले तो उससे आस्था के मायने अवश्य पूछना, क्यूंकि फिलहाल तो वह पुलिस के यहां पहुँचने से पहले ही जा चुका है और अब तक तो वह स्वेच्छा से आत्मसमर्पण भी कर चुका होगा।"
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(मौलिक व अप्रसारित)
वाह वाह।
चिरपरिचित विषय किन्तु एकदम भिन्न कथानक।
आश्रम केवल नकारात्मकता के स्रोत नहीं अपितु व्यक्ति सुधार के केंद्र भी हो सकते हैं।
बहुत अच्छे। बधाई ।
रचना पर सुंदर और प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार भाई अजय गुप्ता जी। सादर।
जनाब वीरेन्द्र वीर साहिब, प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
कथा पर आपकी प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार आदरणीय भाई जी।
रचना पर आपकी सुंदर टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार आदरणीय इक़बाल सिद्दकी भाई जी। सादर।
बढिया सकारात्मक कथा के लिए हार्दिक बधाई ,
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