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आ भाई दिनेश जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
हार्दिक आभार आ. लक्ष्मण जी।
आदारणीय दिनेश जी, अच्छी ग़ज़ल कही गयी है, गिरह का शेर मुझे बहुत अच्छा लगा, बधाई इस प्रस्तुति पर.
बहुत शुक्रिया आ.गणेश बागी जी।
उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय दिनेश जी। आख़िरी शेर विशेष तौर पर पसन्द आया। सादर।
बहुत शुक्रिया भाई महेन्द्र कुमार जी।
आ.दिनेश कुमार जी उम्दा ग़ज़ल हुई ,दाद के साथ बधाई स्वीकारें!
आदरणीय दिनेश भाई! खूबसूरत गजल के लिए बधाइयाँ। तीसरे शेर की उला में पुनरावृत्ति वाली बात आ रही है,यथा--कर के।इससे बचने की युक्ति हो,तो और बेहतर हो।
बहुत शानदार ग़ज़ल आदरणीय दिनेश जी एक से बढ़कर एक शेर
भाई दिनेश कुमार जी, आपकी प्रस्तुतियाँ वैसे भी आपकी लगन और अभ्यास का परिणाम हुआ करती हैं, यह प्रस्तुति भी अपवाद नहीं है. ग़ज़ल अच्छी और पठनीय हुई है.
इन दो अश’आर के लिए तो विशेष तौर पर दाद कह रहा हूँ -
मैं हूँ आवाज़ आपके दिल की
ग़ौर से कब सुना गया है मुझे
मुझमें शुहरत की चाह बाक़ी है
क्यों कलन्दर कहा गया है मुझे
दिल से सुभकामनाएँ और बधाइयाँ, दिनेश भाई
शुभ-शुभ
सही कहा सर, शेर कहने के लिये मुझे बहुत समय और मेहनत की दरकार होती है। ग़ज़ल को पसंद करने के लिये आभार आदरणीय।
आदरणीय दिनेश कुमार जी सादर, बहुत खूबसूरत गजल कही है आपने. कोई एक नहीं सारे ही अशआर बहुत उम्दा कहे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर.
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