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आदरणीय नीलेश जी, उम्दा गजल कही। अंतिम शेर के लिए खास मुबारकबाद।
शुक्रिया आ. अरुण कुमार जी
जनाब निलेशजी ग़ज़ल के हर शेर असरदार है ,बहुत बहुत बधाई |
शुक्रिया आ. मो. अनीस शेख साहब
आदरणीय निलेश नूर साहब, सादर अभिवादन।
ख़ूबसूरत अशआर निकाले हैं आपने । बहूत ख़ूब। यूंही जगमगाते रहें।
मेरी शुभकामनाएँ और बधाई स्वीकार करें।
धन्यवाद आ. गजेंद्र जी
वाह, वाह, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने आ नीलेश जी, शेर दर शेर मुबारकवाद फरमाएं. //ऐब मुझ में सभी उसी के हैं
जिस के हाथों घड़ा गया है मुझे.// यह शेर बहुत कमाल का है
शुक्रिया आ विनय जी
शानदार ग़ज़ल आ निलेश जी |
जब ज़रूरत नहीं किसी को मेरी
फिर यहाँ क्यूँ रखा गया है मुझे?
.
कितने अहसान उस के मुझ पर हैं
चारागर फिर जता गया है मुझे.
.
और अब इम्तिहान क्या होगा
“सब्र करना तो आ गया है मुझे”
.
यूँ ही कुन्दन कोई नहीं होता
हर कसौटी कसा गया है मुझे.
बहुत खूब |
शुक्रिया आ. कल्पना जी
आदरणीय निलेश जी, खूबसूरत अशआर हुए है. आपका अपना ख़ास लहज़ा हर शेर में नुमाया है. हार्दिक बधाई.
शुक्रिया आ. अजय जी
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