आदरणीय साथिओ,
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सधन्यबाद, बरखा दी।
आदाब। विषयांतर्गत बहुत ही भावपूर्ण विचारोत्तेजक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा। अंतिम पंक्ति को भी अंतर्मन के संवाद में बदला जा सकता है बिना 'मोह' शब्द के संबंधित भाव सम्प्रेषित करते हुए मेरे विचार से। टंकण बेहतर किया जा सकता है।
सधन्यबाद, शेख सरजी।
प्रदत्त विषय पर बढ़िया लघुकथा कही है आपने आदरणीया बबिता जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
सधन्यबाद, महेन्द्र सरजी।
आदरनीया बबीता जी,सुंदर लघुकथा के लिए बधाई हो।
'राम काज '
''गुरू जी एक बात कहें ?'' पैर दबाता सेवक धीरे से बोला ।
" हाँ बोल पर हाथ मत ढीले पड़ने दे। " अपनी सिंहासन नुमा गद्दी की पीठ पर सर टिकाये निरंजन गुरु की आँखें आराम की मुद्रा में बंद थीं। एक दिन पहले ही इस गद्दी का फोम बदला गया था और अब ये और भी आरामदायक हो गई थी।
" आज आप सुबह प्रवचन में कैकेयी माता के पुत्र मोह पर बोले थे ना। उसी को लेकर ये बात है। " झिझक को काबू करने की कोशिश में सेवक के हाथ गुरु जी के पैरों पर और जोर से चलने लगे।
" ओहो ! अच्छा ! तुम लोग भी ध्यान से सुनते हो हमारे प्रवचन को। " गुरूजी मुस्कुरा रहे थे।
" वो हम सोचते हैं कि कैकेयी माता को पुत्र मोह नहीं था। " एक साँस में अपनी बात कह गया सेवक।
" अच्छा तो अब आप बताएँ संतोष महाराज कि फिर उन्होंने राम को वनवास क्यों भेजा ?" गुरूजी की बात पर पास में खड़े दूसरे सेवक हँसने लगे। गुरूजी ने अब पैर खींच लिए थे , मुद्रा सजग हो गई थी और आँखें संतोष को घूर रही थीं।
" राम काज के लिए गुरु जी। जैसे बजरंगबली ने किया था " सेवक संतोष ने अब हिम्मत बटोर ली थी " प्रभु वनवास नहीं जाते तो रावण कैसे मरता ? इसीलिए माता ने सबकी बुराई अपने सर ली। " घूर रहे गुरूजी और सेवकों को देखकर सेवक अब आँखें झुकाकर गद्दी की झालर ठीक करने लगा था।
गुरूजी देख रहे थे प्रश्न करते हुए सेवक को। .उनकी आँखों में घूम रहा था चालीस वर्ष पहले का एक युवा शिष्य जो अपने गुरु से प्रश्न करता करता आज उनकी गद्दी पर विराजमान था।
" नहीं " अपने आप से बोल उठे गुरु जी।
" जी ! " गुरु जी की बदली मुख मुद्रा देखकर सेवक अचकचा गया।
" देखो बेटा ये मोह और ,स्वार्थ की बातें बहुत गूढ़ हैं । किसी दिन फुर्सत से तुम्हें समझाऊँगा। अभी तुम सब जाओ। "
गुरु जी के चरणों से उठते हुए संतोष ने देखा गुरू जी की उँगलियों ने गद्दी को जकड़ रखा था।
मौलिक व् अप्रकाशित
बेहतरीन लघुकथा के लिए बहुत - बहुत बधाई आदरणीय प्रतिभा जी ,सादर
वाह वाह वाह. बहुत ही अलग ढंग से प्रदत्त विषय को परिभाषित किया है आ० प्रतिभा पाण्डेय जी. गद्दी के मोह को क्या कुशलता से उभरा है. इस सधी हुई और कसी हुई लघुकथा के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
वाह, वाह, क्या गजब का कथानक चुना है आपने आ प्रतिभा पांडे जी और अंत तो बेहतरीन बन पड़ा है. बहुत बहुत बधाई इस शानदार लघुकथा के लिए
आदाब। गहन अध्ययन से ही ऐसे कथानक और सृजन संभव हैं। हार्दिक बधाई आपको आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय साहिबा।
एक अलग कथानक के साथ प्रदत्त विषय से न्याय करती उम्दा लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीया प्रतिभा जी. सादर.
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