आदरणीय साथिओ,
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बहुत बहुत आभार आदरणीया।
अस्तित्व
इंटरव्यू चल रही थी। कमरे के बाहर खड़ा मुलाज़िम लिस्ट में लिखे नाम के अनुसार आवाज़ दे कर इक-इक कैंडिडेट को अंदर भेज रहा था। इंटरव्यू लेने वाले लोग, कैंडिडेट से उसकी योग्यता व् काम करने की क्षमता के बारे सवाल पूछ रहे थे।
साथ-साथ इक मैंबर प्राथना पत्र के साथ लगे दस्तावेज़ देख कर उनको कह रहा था रिजल्ट आप को शाम तक बता दिया जायेगा और सिलेक्ट होने वालों की लिस्ट नोटिस बोर्ड पर लगा दी जाएगी।
इस जब दरवाज़े पर खड़े मुलाज़िम ने आवाज़ लगाई तो इक साथ दो लोग कमरे में तेज़ी से दाखल हुए, मर्द और औरत,
दरवाज़े पर खड़े दूसरे मुलाजिम ने उन्हें रोकने की कोशिश की, "देख भाई, आप अपनी बारी पर इक-इक क अंदर आएँ।"
"बीबी, मैंने आप का नाम पुकारा था, ये आप के साथ कौन हैं ?, आप बाहर रहें।", उसको मुलाज़िम ने कहा
"जी, ये मेरे घर वाले हैं।" औरत ने जवाब दिया
"मगर इंटरव्यू तो आप की है।" , सेंटर वाली कुर्सी पर बैठे अफ़सर ने कहा
" भाई साहिब, आप बाहर जाएं।", दरवाज़े पर खड़े मुलाज़िम ने फिर कहा
मगर वह वहीं खड़ा रहा, उसकी औरत भी कह रही थी जी," इस को यहीं रहने दो।", सर जी
इंटरव्यू लेने वालों ने उसका रिकार्ड देखा और उनसे कुछ सवाल किए, उन्होंने उस से भी वही सवाल पूछा के जो औरत केंडिडेट से पूछा जा रहा थ।
अगर आप को हम सिलेक्ट कर लेते हैं, तो तुम वहाँ जा कर नौकरी करने को तैयार हो।
औरत कुछ देर चुप खड़ी सोचती रही, मगर तभी उसका पति बोला।
"जी, में भी तो पढ़ा लिखा हूँ, आप इस सिलेक्ट कर लो, काम तो मैं भी कर दिया करूंगा।"
"नौकरी इस की, ड्यूटी आप कैसे करंगे। "
" क्यों नहीं, सर जी, मेरी भाभी भी तो सरपंच है, उसका सारा काम भी तो मेरा भाई ही करता है , कभी कोई एतराज़ नहीं करता।
हम भी तो आप को अच्छा काम करके दिखाएंगे , कमरे में सभी लोग उस की तरफ हैरान हो कर देखने लगे।"मौलिक व अप्रकाशित"
विषय तो सही चुना है आपने लेकिन कुछ त्रुटियों पर ध्यान देने की जरुरत है. वास्तव में प्रधान हों या पार्षद, महिला की जगह उनके पति ही हर मीटिंग में जाते हैं और सारा काम करते हैं. बधाई इस रचना के लिए आ मोहन बेगोवाल जी
आदरणीय मोहन बेगोवाल जीी बहुत बहुत बधाई सादर
दोस्तों क्या करूं हर काम में तेज़ी करना मेरी बहुत बड़ी कमजोरी है , जो इस लघुकथा में भी झलकती है, काश जिंदगी में ठहरा होता
बहुत सुंदर आदरणीय बेगोवाल सर, अस्तित्व विषय को लक्ष्य करते हुए आपने जो कटाक्ष नाम के सरपंची खेल पर किया है, वह सहज ही आकर्षक बना है. सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें
हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल जी।बेहतरीन लघुकथा।बहुत सुंदर कटाक्ष ।आज की राजनीति का कच्चा चिट्ठा।चारों ओर दलदल ही दलदल।
बहुत खूब। महिला सशक्तिकरण को आईना दिखाती प्रभावी प्रस्तुति। हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल जी।
सुंदर लघुकथा बधाई आपको आदरणीय मोहन जी ,सादर
आदरणीय मोहन बेगोवाल जी , उम्दा लघुकथा। हार्दिक बधाई
अपनी पहचान-
बादल तो कई घंटों से छाये हुए थे लेकिन बूंदें बरसने का नाम ही नहीं ले रही थीं. पूरा महीना बीतने को आया, इस बार धान का बेहन तक नहीं पड़ पाया है, राजन खेत के मेड़ पर बैठा यही सब सोच रहा था. घर में जाने पर घरवाली का चिंतित चेहरा देखकर उसको सहन नहीं होता था. दरअसल वह कुछ कहती नहीं थी, बस ख़ामोशी से उसका मुंह देखती. और उसका कुछ नहीं बोलना ही उसे अंदर तक सालता था. पिछले साल तो फिर भी जुलाई के आखिर में बारिश हो गयी थी और उसने धान का बेहन डाल दिया था.
"तुम भी आ जाओ शहर, गांव में कुछ नहीं रक्खा है. कम से कम यहाँ दिन भर की मेहनत के बाद रोटी तो नसीब हो जाती है, रहने के लिए भले नर्क जैसी जगह है", पिछले हफ्ते भी उसके दोस्त हरी ने फोन पर कहा था. उसने मना कर दिया था, यहाँ उसकी पहचान तो है, वहां कौन पहचानेगा. घरवाली से भी जब उसने बात की तो उसने भी हामी नहीं भरी. वह भी एक किसान की बेटी थी और अब तक के जीवन में उसने खेती बाड़ी के अलावा कुछ नहीं देखा था.
"थोड़ी दिक्कत तो है लेकिन चला लेंगे गृहस्ती किसी तरह. मेरे मामा भी शहर रहते हैं, मैं एक बार कुछ दिनों के लिए वहां गयी थी लेकिन उस बदबू और घुटन में मैं जी नहीं पाउंगी", घरवाली ने धीरे से कहा था.
एक ही तो गाय है घर में और दो लोग, चला लेंगे किसी तरह से, सोचते हुए वह उठा. कुछ कदम ही चला होगा कि बरसात शुरू हो गयी और घर तक पहुँचते पहुँचते जम के बारिश हो रही थी. दरवाजे पर एक तरह उसकी गाय तो दूसरी तरफ घरवाली बरसात में भींग रहे थे, मानो पिछले कई महीने के सूखे को शरीर से निकाल फेंकना चाहते हों. उसने धीरे से घरवाली का हाथ पकड़ा और दोनों देर तक उस बरसात में भीगते रहे.
मौलिक एवम अप्रकाशित
आदरणीय विनय कुमार जी बहुत बहुत बधाई शानदार रचना सादर।
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