आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय बरखा जी।बेहतरीन लघुकथा।नारी मानोविज्ञान पर एक सुंदर लघुकथा।आजकल यह प्रायः हर परिवार में देखा जाने वाला परिदृश्य है।
बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय तेज़ वीर जी ,सादर
आदाब। बहुत ही महत्वपूर्ण व मार्गदर्शक विषय व कथानक लिया है आपने। समझदार बहुएँ और सास इसी तरह की पूछ-परख व आदर-सम्मान-परम्पराओं को निभाते हुए एक-दूसरे व बुज़ुर्गों के वजूद को बाख़ूबी बरकरार रखते हैं। हार्दिक बधाई इस ख़ूबसूरत रचना के लिए आदरणीया बरखा शुक्ला जी। दो शब्दों के बीच की स्पेसिंग बाद में संशोधन में सही कर दीजिएगा।
बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय उस्मानी जी ,स्पेस देकर टाइप किया था ,काँपी पेस्ट करने पर ऐसा हो गया ,सादर
आदरणीय बरखा जी,लघुकथा अच्छी हुई। बधाई। अगर यही बात बहू के द्वारा कही जाती कि उनसे पूछकर मैं उनके वजूद को मज़बूत करती हूँ तो शायद अधिक प्रभावी होती। ख़याल मात्र। क्षमा याचना सहित। सादर
बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय अंजली जी ,पहले मैंने भी यही सोचा था ,आपकी सलाह पर ध्यान दूँगी ,धन्यवाद ,सादर
बहुत खूबसूरत रचना विषय पर, शब्दों के बीच गैप देना रह गया है. बहरहाल बधाई इस रचना के लिए आ बरखा शुक्ल जी
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय विनय सर ,सादर
बहुत अच्छी लघुकथा।बधाई स्वीकार करें ।
बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय रचना जी ,सादर
सही कहा स्त्री की छोटी छोटी खुशियों को पुरुष समझ नही पाते हैं। बहुत महीन कथ्य के साथ बुनी बढिया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया बरखा शुक्ला जी
बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय प्रतिभा जी ,सादर
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