आदरणीय साथिओ,
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वाह अक्सर पूजा स्थलों पर महसूस की जाने वाली बात को आपने बड़े सुलझे हुए अंदाज में लघुकथा का बाना पहना दिया है। हार्दिक बधाई आदरणीय अजय जी।
आदाब। बेहतरीन समापन पंक्ति के साथ हम सब के अनुभवों पर केंद्रित विषयांतर्गत बढ़िया भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई जनाब अजय गुप्ता साहिब।
बहुत खूबसूरत और सुखद लघुकथा लिखी है आपने प्रदत्त विषय पर, बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए आ अजय गुप्ता जी
हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता जी।बेहतरीन लघुकथा।जब धर्म कर्म ही करना है तो उसके व्यापक असर को ध्यान में रखना भी आवश्यक है।
सच्चाई के दोनों को उजागर करती बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय अजय सरजी।
किस्सा पंडित और तोते का
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" बोल मिट्ठू राम राम" पंडित रामेश्वर ने तोते के पिंजरे को थपथपाया और सामने बैठी हुई माँ बेटी की तरफ घूम गये।
माँ पैंतीस चालीस के आसपास लग रही थी और बेटी सत्रह अठारह से ज्यादा की नहीं थी।
" महाराज ये मेरी छोरी है। शादी के तीन साल में दो छोरियाँ जन दीं। अबकी बार लल्ला आ जाय। कुछ उपाय बताओ।" माँ ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
तोता चीखते हुए पिंजरे में गोल गोल घूमने लगा।
" क्यों चीख रहा है ये?" बेटी की आँखों में बच्चों जैसा कौतुहल था।
"उसे छोड़। हाँ तो तुम्हे लल्ला का उपाय चाहिये । पैसे लगेंगे।" पंडित ने आँखों आँखों में माँ को टटोला।
" हाँ हाँ कित्ते? मेरे पे सौ हैं।" माँ ब्लाउज से छोटा मुड़ा पर्स निकाल कर पैसे गिनने लगी।
"तोते को बाहर निकालकर पर्ची खुलवाओगे ना?" लड़की उत्सुकता से तोते के पिंजरे को देख रही थी।
" बड़ा बोलती है तू। ये खास तोता है। और पंडितों जैसा नहीं।" छोरी को घूरते हुए पंडित ने अपने झोले से एक पुड़िया निकाल कर माँ को दी।
" कैसे खिलाऊँ?" माँ ने झिझकते हुए पूछा।
"खिलाना नहीं है।इसके माथे पर रोज सुबह लगाना एक महिने तक
दोनों के वहाँ से जाते ही पंडित ने तोते का पिंजरा खोल तोते को प्यार से हाथ में उठा लिया।
" क्यों चीख रहा था? बता मैने क्या गल्ती की ? मुझे भी तो अपना पेट भरना है और तेरा भी।"
" राम राम राम" तोता चीखने लगा।
हाँ !हाँ !हाँ! चुप हो जा। उस बच्ची की हालत देखी मैने। शरीर में खून नहीं था। छोरा जनने तक पीसते रहेंगे उसे। पैंतीस चालीस तक बूढी हो जायगी जैसे उसकी माँ हो ग्ई है।" तोते को जमीन पर रखकर पंडित ने भर आई आँखों को पोछा।
" राम राम राम" तोता फिर गोद में चढ़ गया। इस बार वो चीख नहीं रहा था।
"मुझे समझ आ जाती उस समय तो घरवाली कमजोर होकर छोटी उमर मे मरती नहीं। अब न बेटी पूछे न बेटा। मैं अकेले का अकेला।" पंडित की आँखें फिर भर आईं।
" राम राम राम" तोता चीखने लगा।
" हाँ हाँ गुस्सा मत हो। अकेला नहीं हूँ। तू है ना मेरा बाप मेरी औलाद सब कुछ। बस छोड़ कर मत जाना।
मौलिक व अप्रकाशित
आ० प्रतिभा पाण्डेय जी, बाकमाल लघुकथा हुई है, सरस और संदेशपरक. इस सुगठित लघुकथा हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
हार्दिक आभार आदरणीय योगराज जी। आपका रचना पर आना और सराहना करना बहुत बड़ा पारितोषिक है हम सब लघुकथा प्रयासियों के लिये।
बहुत अच्छी रोचक कहानी और बहुत महत्वपूर्ण संदेश को पिरोए हुए
रचना पसन्द करने के लिये हार्दिक आभार आदरणीय अजय जी।
आ. प्रतिभा बहन, बेहतरीन कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
रचना पसन्द करने के लिये हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई
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