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जनाब निलेॆश नूर साहिब आदाब
हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रगुज़ार हूं
और मशवरे के लिए भी
आदरणीय निलेश जी ....वज्न 2 भी हो सकता है ..अगर उससे पहले के हर्फ़ को गिराकर पढ़ा जाय
उदाहरण के लिए
हुए मह्व किस की तमन्ना में ऐसे
कि मुस्तग़नी-ए-मा-सिवा हो गए हम...हसरत मोहानी
क्या कहूँ तारीकी-ए-ज़िन्दान-ए-ग़म अंधेर है
पुम्बा नूर-ए-सुब्ह से कम जिस के रौज़न में नहीं...मिर्ज़ा ग़ालिब
जनाब निलेश जी,इज़ाफ़त से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा वज़्न में, बाक़ी जनाब राणा जी,मिसाल दे ही चुके हैं ।
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय मिर्ज़ा जावेद बैग साहिब। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
जनाब महेंद्र कुमार जी आदाब
सुॆख़न नवाज़ी के लिए मशकूर हूं
उम्दा अशआर कहे हैं मिर्ज़ा साहब !!!
जनाब अजीत ॆशर्मा जी आदाब
सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया
यह दूसरी ग़ज़ल भी अच्छी हुई है.
मैरा मुझमें बचा नहीं कुछ भी!
वो मुकम्मल चुरा गया है मुझे ........... इस शेर के होने पर विशेष दाद बनती है.
हार्दिक शुभकामनाएँ
मुहतरम जनाब सौरभ पांडे जी आदाब,
दूसरी ग़ज़ल पर भी आपकी हौसला बख़्श दाद आ गई
मैरा दोनों ग़ज़लें कहना सफ़ल हो गया
सादर धन्यवाद
आदरणीय मिर्जा जावेद साहब बेहतरीन गजल के लिए बहुत बहुत बधाई
डॉ छोटे लाल जी आदाब
हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया
बहुत बढ़िया जनाब मिर्जा जी----वो मुकम्मल चुरा गया है मुझे।दाद कबूल फ़रमायें।
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