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अच्छी लघुकथा हुई है आ० मनन कुमार सिंह जीI बधाई स्वीकारें
जनाब मनन कुमार जी ,सन्देश देती सुन्दर रचना के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
//एक ही आदमी कई-कई दामों में बिकता है यहाँ।// आपकी पंचलाइन बहुत बढ़िया है और पूरी रचना का सार भी| हार्दिक बधाई आपको इस रचना के सृजन हेतु|
आदरणीय मनन जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
प्रकृति के रंग
गंभीर बिमारी से पति की मृत्यु के पश्चात रिया पन्द्रह वर्षीय पुत्र के साथ मायके में रह रही थी ।वक्त के साथ साथ चिडचिडी हो सदैव लड़ने को तत्पर रहती।आज उसकी भाभी भी खुद पर से संयम खो बैठी मगर समझाते हुए कहा-
" रिया, आपका मन नहीं लगता तो मत करो घर के काम , लेकिन घर के बाहर निकलो लोगो से मिलो जुलो, हँसो बोलो "
" भाभी , मेरा मन नहीं करता "
" क्यों रिया ?क्या प्रकृति मात्र एक ही रंग और रिश्ते से सजी हैं ?कम-से-कम पतझड़ के बदरगों के साथ ही बहारो में खूबसूरत और रंगीन हो जाती हैं उसे देखो।गर्मी की चिलचिलाती धुप बेशक तपिश देती हैं लेकिन सर्दियों में उसकी गुनगुनाहट कितने खुशगवार रंग बिखेर प्रकृति की तपिश सुहानी कर देती हैं यह सोचो और उतार फेकों यह हिमालय सी सफेदी "
मौलिक एवम् अप्रकाशित
सुन्दर कथा ,और शिल्प ,प्रदत्त विषय को पूरी तरह परिभाषित करता हुआ ,हार्दिक बधाई आदरणीया आपको
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