परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 117वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब जलील ’आली’ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"एक दिन में कहाँ अंदाज़-ए-नज़र बनता है "
2122 1122 1122 22
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन मख्बून मक्तुअ )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आपका बहुत बहुत शुक्रिया मेहरबानी
आदरणीय अशफाक जी, सुंदर ग़'ज़ल के लिए बधाई .
मोहन जी आप का बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi) साहिब, आदाब अर्ज़ है. मुशायरे का आगाज़ करने के लिए ढेरों बधाइयां. बहुत बढ़िया प्रयास. सादर
जनाब गुलशन साहिब, अच्छी गज़ल हुई है मुबारकबाद कुबूल फरमाएं
वाह बढ़िया निभाया है
आदरणीय सूबे सिंह सुजान जी हौसला अफ़ज़ाई के लिए दिली शुक्रिया
आ. अंजलि जी, उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी ,हौसला अफ़ज़ाई के लिए दिली शुक्रिया
मुहतरमा अंजलि गुप्ता जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय समर कबीर sir, ग़ज़ल को समय देने और हौसला अफ़ज़ाई करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया
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