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जीवन साथी ने ही सही मार्ग सुझाया ,सुन्दर रचना हार्दिक बधाई आदरणीय रतन राढौर जी
साथी की परेशानी दूर करने के लिए पत्नी कुछ भी करती है यहाँ तो सिर्फ रिश्वत की बात है यदि सिस्टम सही होता तो ये सलाह देने की नौबत ही नहीं आती बहुत अच्छी लघु कथा .हार्दिक बधाई आपको आ० रतन राठौड़ जी
साथी
रोज की तरह आज भी दरवाजे के बाहर से टकटकी लगाए देखते रहे और जाने लगे सिस्टर से टकरा गए
"ओह सारी बेटा"
"कोई बात नहीं बाबा,वह बोली"|
विनोद आगे जाने लगा तो बोली "बुरा न माने तो एक बात पूछूं बाबा"|
"हाँ ,बोलो|
साथी.....
",ये कौन है क्या रिश्ता है आपका इनसे?
"जहाँ तक इनके परिवार की जानकारी है ,इनके पति है नहीं और इकलौता बेटा जो हर माह अस्पताल की फीस जमा कर फोन पर जानकारी ले लेता है,धीरे धीरे सब रिश्तेदारों का आना भी छूट गया |और फिर करें भी क्या आकर कोमा में है ये तो| "आखिर आज सुधा सिस्टर से रहा न गया एक ही सांस में सब कह गई|
मुस्कुरा कर विनोद ने उसके सिर पर हाथ रखा और आकर आटों में बैठ गए|
आँखों से गिरे आँसुओं में सीता का चेहरा छिलमिला गया "मानों फिर कह रही हो,"अगर में अस्पताल में रहूं और कोई मुझे कोई आए या न देखने ,तुम आओगे न"..
आँसुओं को हाथ में समेटते हुए विनोद बुदबुदाया "देख मैं आ गया एक बार आँख खोल मेरे साथी"|
मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीय Dr.varsha choubey जी बहुत ही उम्दा लघुकथा लिखी है आप ने .
मोहतरमा वर्षा साहिबा , अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आदरणीया वर्षा जी बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर.
//आँखों से गिरे आँसुओं में सीता का चेहरा छिलमिला गया "मानों फिर कह रही हो,"अगर में अस्पताल में रहूं और कोई मुझे कोई आए या न देखने ,तुम आओगे न"..//---------- इन वाक्यों पर पुनर्विचार निवेदित है... सादर
हार्दिक बधाई आदरणीया डॉ वर्षा चौबे जी सार्थक रचना के लिये
बहुत खूब , हार्दिक बधाई आपको आदरणीया डॉ वर्षा चौबे जी ! सादर
रचना के भाव तो समझ आ रहे है आ० डॉ वर्षा चौबे जी, लघुकथा उलझी उलझी सी लग रही है सम्प्रेषण इससे कहीं बेहतर हो सकता थाI बहरहाल, प्रतिभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारेंI
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