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मोहतरमा अर्चना त्रिपाठी साहिबा , आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी| अर्चना जी मुझे की बोर्ड की ज़्यादा जानकारी नहीं है । आगे टाइप करते वक़्त ध्यान रखूँगा। ..... शुक्रिया
साथी
दसवी कक्षा में साथ साथ पढ़े कुछ साथिओं ने इक दिन शाम साथ गुजारने की सलाह बनाई । बीते चालीस वर्षों में कुछ ही लोग इक दुसरे को मिले थे, मगर इक साथ आज ही इकठ्ठे हुए । अब तक कुछ लोग अपनी अपनी नौकरी से रिटायर हो चुके थे और कुछ रिटायर होने जा रहे थे । इन में से ज्यादातर लोग शहरों में आ कर रहने लगे थे ।
जो जगह मिलने के लिए निश्चित की गई थी, वहाँ पर इक फंक्शन चल रहा था । बाहर लगी होर्डिंग में दिखाया गया था कि किसी नई छपी किताब का विमोचन होने जा रहा है ।
जब हम लोग बैठे बीते दिनों की बातें कर रहे थे ,तो गुरमीत ने आते ही कहा, “पता है, यहाँ किस की किताब का विमोचन हो रहा है”,
“अपने रजिंदर की किताब का”, पर वह तो बाहर चला गया था।
हाँ, अब तो वह बहुत बड़ा आदमी हो गया है, शहर के कुछ लोगों के नाम होर्डिंग पर हैं, जो इस फंक्शन में आ रहें हैं ।
बातों बातों के बीच किसी ने कहा, हमें भी उसे मिलना चाहिए, आखर तो हमारा क्लास फेलो रहा है । फैसला ये हुआ कि सुरिन्दर उस के सब से करीब रहा है,वह उसको पहचान जायेगा ।
इस लिए पहले सुरिन्दर को मिलने के लिए कहा गया, तभी हम सभी को फंक्शन में हाजिर होना चाहिए । मगर जब सुरिन्दर हाल के गेट पर आया तो,गेट कीपर ने कार्ड दिखाने के लिए कहा, हाल में एंट्री कार्ड के साथ ही होगी । तो उसे लगा, मगर हम तो........... सुरिन्दर ने फिर कहा । आप कार्ड बिना अंदर नहीं जा सकते, गेटकीपर ने फिर कहा क्यूंकि जिन के पास कार्ड हैं , वही लोग अंदर जा सकते, सुरिन्दर ने अंदर देखा, वहाँ तो...... और रजिंदर को पहचानने की असफल कोशिश के बाद, वह मुड़ा और सभी साथिओं को इशारा किया और सभी धीरे धीरे बाहर की तरफ चल पड़े।
"मौलिक व अप्रकाशित"
सुन्दर ! बिना पहचान पत्र के भी कहीं पहचान सुनिश्चित होती है.
जनाब मोहन बेगोवाल साहिब ,आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
आदरणीय मोहन बेगोवाल सर, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
आ,बेगोवाल जी हार्दिक बधाई इस रचना के लिये
आदरणीय मोहन बेगोवाल जी , उत्कृष्ट प्रस्तुति है, हार्दिक बधाई ! सादर
बढ़िया लघुकथा कही है आ० मोहन बेगोवाल जीI बधाई स्वीकारेंI
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