आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीया नीता कसर जी, आपकी इस प्रस्तुति से आयोजन समृद्ध हुआ है. लघुकथाओं के विन्यास यदि ऐसी परिस्थितियों को भी शाब्दिक करें तो अनावश्यक विद्रूप क्षणों के पीछे अनावश्यक घिसटते फिरने की आवाश्यकता नहीं होगी.
सादर धन्यवाद और शुभकामनाएँ
आदरणीया नीता जी, रचना तो आपने बेहद अच्छी कही है, पढ़ कर बहुत अच्छा लगा| गुरुजनों और सुधीजनों के कहे अनुसार बदलाव कर देंगी तो बेहतरीन हो जायेगी| सादर बधाई आपको इस सृजन के लिये|
"तमाशबीन
छोटा सा मजमा लगा था. सड़क के किनारे सफ़ेद चादर से ढकी लाश पडी थी . चादर पर तरह-तरह के कुछ नोट व चंद सिक्के पड़े थे . एक गन्दा सा आदमी लाश के सिरहाने घुटनों के बल बैठा जार-जार रो रहा था –‘माई –बाप यह मेरा जवान बेटा था . इसे किसी काली बीमारी ने खा लिया . सारे पैसे इसके इलाज मे फुंक गये . आज मैं इस हालत में नही हूँ कि इसकी माटी को आग लगा सकूं . माई-बाप आपका ही सहारा है.
लोग आते कुछ पैसे डालते और चले जाते .कोई देर तक न रुकता. पर एक तमाशबीन टलने का नाम नही ले रहा था . वह गंदा आदमी उसे बार-बार देखता और सहम जाता. आखिर उससे रहा नहीं गया . उसने सन्नाटा देखकर तमाशबीन से तल्ख़ लहजे में कहा –‘यहाँ कोई तमाशा नहीं हो रहा है, तुझसे एक चवन्नी तो निकली नहीं और यहाँ धूनी रमा कर बैठ गया. चल जा अपना काम कर.’
तमाशबीन व्यंग्य से मुस्कराया –‘कल सरोजिनीनगर के चौराहे पर तुम अपनी माँ की लाश के साथ थे. वह भी लम्बी बीमारी से मरी थी और तुम्हारे पास पैसे नही थे.’
गंदा सा आदमी सकते में आ गया . उसने घबरा कर पूंछा –‘आप कौन हैं भाई, पुलिस तो नहीं--- और तुम्हे यह सब कैसे पता है ?’
तमाशबीन मुस्कराया –‘मेडिकल कालेज से चंद पैसो में लावारिस लाश खरीदकर ऐसा ढोंग करना आसान धंधा है . कल से ट्रांस गोमती में तुम्हारी सूरत नहीं दिखनी चाहिए. समझे’
गंदा सा आदमी हाथ जोड़कर खड़ा हो गया – ‘सरकार जब आप इतना जानते है तो क्यों मेरी रोजी-रोटी पर लात मार रहे हैं ?’
‘मैं तुम्हारी रोजी रोटी पर लात नही मार रहा.’-तमाशबीन ने फुंकारते हुए कहा- ‘पर यह इलाका मेरा है .’
(मौलिक व् अप्रकाशित )
बहुत बढ़ीया आदरणीय श्रीवास्तव साहिब, एक नया कथानक , बुनावट में कसावट और स्टीक सम्प्रेषण। हार्दिक शुभकामनाएं। पर मुझे कुछ संदेह है कि यह कथा प्रदत्त विषय से न्याय कर रही है ? सादर
हाहाहा ..दोनों एक ही थाली के चट्टे बट्टे निकले वाह आज कल भिखारियों के भी इलाके बंटे हुए हैं |अच्छी रोचक लघु कथा आ० डॉ. गोपाल भाई जी हार्दिक बधाई किन्तु आ० रवि प्रभाकर जी की बात से मैं भी इत्तेफ़ाक रखती हूँ बाकि तो उस्ताद जी बताएँगे
रचना उत्तम लेकिन प्रदत्त विषय से भटक गई आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी I
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