आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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सादर धन्यवाद जानकी सखी ।
तमाशबीन विषय को सार्थक करती लघुकथा के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें, आदरणीया कल्पना भट्ट जी|
आदरनीय जी, बहुत ही अर्थ भरपूर लघुकथा से आगाज़ करने के लिए बधाई कुबूल करें
सादर धन्यवाद आदरणीय मोहन बेगोवाल जी ।
बहुत बढ़िया प्रयास,बधाई आदरणीय कल्पना जी ।
सादर धन्यवाद आदरणीय पवन जी |
सर्वहित सत्यवादी
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राम सिंह और उनके गनिष्ठ मित्र सुग्रीव पड़ोसी भी बहुत अच्छे थे।दोनों की मित्रता और उनके परिवारों में गहन आत्मीय सम्बन्ध पूरे मोहल्ले में मिसाल कायम किए हुए थे।पर जाने क्या हुआ आज दोनों परिवार के सदस्य एक दूसरे पर तंज कस रहे हैं।दोनों तरफ से अच्छी मंदी बातें एक दूसरे को कही जा रही हैं।वे खुल्लमखुल्ला परस्पर इस कदर चिल्ला रहे हैं कि सारे मोहल्ले से पड़ोसी बाहर निकल उन्हें देखने लग पड़े।
उन दोनों के घरों के बिलकुल नजदीक के घर से बाहर निकल उनकी ओर देखते हुए दो शख़्स बतियाना शुरू करते हैं।
"अरे सर्वहित सत्यवादी जी!ये दोनों तो आपके काफी निकट हैं।आपकी घनिष्ठता भी है दोनों संग।आपको तो मालुम होगा क्यों ये सब.......?", एक ने दूसरे से जिज्ञासावश पूछ लिया।
"अरे बच्चों में खेलते-खेलते कोई झगड़ा हुआ होगा।शुरुआत तो यही थी।"
तिल्ली से दाढ़ को कुरेदते हुए सर्वहित सत्यवादी बोले।
"समझदार लोग हैं।ऐसी छोटी सी बात पर तो न झगड़ते।आप ने समझाया नहीं?"
थोड़ा हैरानी के साथ।
"आक थूsss!समझाया दोनों को अलग-अलग।तभी तो सीन बना है।",दाढ़ से निकले तिनके को थूकते हुए।
"मतलब?"
"अरे स्क्रिप्ट अच्छी होगी तभी तो सीन मजेदार होगा।अब लोग तो मनोरंजन के लिए पता नहीं कितना कितना खर्च करते हैं?"
"तो यह सब आपका किया .......!",हतप्रभ सा इतना ही बोल पाया।
"बड़े जिगरी बने फिरते थे। देखो!अब कैसे रोड़ों से फायरिंग हो रही है?"
सत्यवादी जी बड़ी खुशमिजाजी में मनोरंजन का लुत्फ़ उठाते बोल रहे थे कि अचानक एक रोड़ा उनके माथे से टकराया और रक्त का फव्वारा फूट पड़ा।
(मौलिक एवम् अप्रकाशित)
भाई सतविन्द्र कुमार जी, सच पूछें तो आप उन चंद लोगों में से एक हैं जिन्होंने "तमाशबीन" शब्द के मायने को सही तरीके से समझा हैं, जिससे मेरी रूह प्रसन्न हो गई I लघुकथा में एक तमाशबीन का का चरित्र बाकमाल ढंग से उभारा गया हैI रचना का अंत भी दिल को भा गया,
//"बड़े जिगरी बने फिरते थे। देखो!अब कैसे रोड़ों से फायरिंग हो रही है?"//
अगर कोई मेरे जैसा अनाडी होता तो रचना यहाँ ही समाप्त कर देताI (इससे भी लघुकथा का प्रभाव उतना ही सशक्त रहता) लेकिन आपने उस "उभार बिंदु" से आगे जाकर उस तमाशबीन का हश्र भी बता दिया जो आपकी उच्च कल्पनाशीलता का प्रमाण है I इस रचना की जितनी तारीफ करूँ कम होगी, बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें I
गनिष्ठ=घनिष्ठ
मालुम=मालूम
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