परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 132वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब जोश मलिहाबादी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"आदमी पैदा हुआ है काम करने के लिए "
2122 2122 2122 212
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
बह्र: रमल मुसम्मन महज़ूफ़
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 जून दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 जून दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आ. रचना बहन, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर भाई,हौसला बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
सादर प्रणाम आ रचना जी
अच्छी ग़ज़ल हुई है
बधाई
आदरणीय आज़ी तमाम जी, हौसला बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
आदरणीया रचना जी,नमस्कार
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिये
सादर
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'आश्ना दिल ज़ुल्फ़े बिखरी मुस्कुराहट लब प ले'
इस मिसरे में 'आशना दिल' भर्ती का है,और अंत में 'ले' शब्द भी खटकता है, मिसरा बदलने का प्रयास करें ।
'सोचते हैं देखकर तेरा रवैया हम सनम'
इस मिसरे में 'हम' की जगह "ऐ" कर लें ।
'क्यों यूँ ही मैं मुस्कुराऊँ क्यों छिपाऊँ अश्क मैं
क्यों समेटूँ ख़ुद को मैं फिर से बिखरने के लिए'
इस शैर में तीन बार 'मैं' शब्द आया है,शैर साफ़ करें ।
'रौशनी में शम्स की सर-ए-चाक करने के लिए'
इस मिसरे में 'सर-ए-चाक' क्या है?
आदरणीय समर कबीर सर् आदाब।सर् ग़ज़ल तक आने तथा इस्लाह करने के लिए बेहद शुक्रिय: ।
सर् ,आशना दिल पर आपने बिल्कुल सहीह कहा है।पूरा शेर लिख लिया था यहीं कुछ समझ नहीं आ रहा था। पहले आँख बोझिल लिखा था। फिर इसे लिखा। अब कुछ और सोचती हूँ।
आपकी पारख़ी नज़र को सलाम।
जी, मूल शेर में 'ए' रवैया कर लेती हूँ।
सर् , सर-ए-चाक को हटा देती हूँ।
सानी मिसरअ इस तरह कर दूँ क्या
रौशनी में शम्स की हर पल निखरने के लिए
सादर।
// मूल शेर में 'ए' रवैया कर लेती हूँ//
'ए' नहीं "ऎ" ।
'रौशनी में शम्स की हर पल निखरने के लिए'
ये मिसरा ठीक है ।
सर् जी,
मूल शेर में ठीक कर लेती हूँ।
आभार।
सर्
बार बार तंग कर रही हूँ।क्षमा चाहती हूँ
चाल बहकी ज़ुल्फ़ें बिखरी सुर्ख़ी होंठों पर सजा
देखिए वो चल पङे हैं क़त्ल करने के लिए।
अब ठीक है क्या
सादर
ऊला यूँ कहें:-
'लब नशीले ज़ुल्फ़ खोले इक ख़िराम-ए-नाज़ से'
तक़ाबुल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ करें ।
जी सर्,
बहुत ख़ूबसूरत ऊला कर दिया आपने।
बेहद शुक्रियः सर्। मूल शेर में सुधार कर लेती हूँ
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