For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-147

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 147 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा जनाब मीर तक़ी 'मीर' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

"दिल से अपने हमें गिला है ये"
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
2122 1212 22/112
बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस सालिम मख़बून महज़ूफ


रदीफ़ :- है ये

काफिया :-अलिफ़ का (आ स्वर) सज़ा,दुआ,मज़ा,ख़फ़ा, सिलसिला आदि

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 27 सितम्बर दिन मंगलवार को हो जाएगी और दिनांक 28 सितम्बर दिन बुधवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 सितम्बर दिन मंगलवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन

बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह 

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 6496

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

मोहतरम नादिर जी, गजल अच्छी हुई है। बधाइयाँ।  

आदरणीय नादिर ख़ान साहिब, बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने, मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ स्वीकार करें। कुछ सुझाव पेश-ए-ख़िदमत हैं:

/आफ़तों की जो इन्तहा है ये
अपने कर्मों का फ़ल मिला है ये ...1/
भाई जान, 'फ़ल' से नुक़्ता हटा लीजिये।
मेरे ख़्याल से 'इंतिहा' लिखना ज़्यादा मुनासिब होगा।

/ज़िंदगी क्यों(जो) मेरी तबाह हुई
किसकी आहों कि बददुआ है ये ...5/
जनाब 'जो' बहतर लग रहा है।

/ये जो तुझमें गुरूर है इतना
बोल किस बात का नशा है ये ...8/
गुरूर -- ग़ुरूर

/ज़ह्र पीना है मुस्कुराते हुये
हुक़्मरानों का फ़ैसला है ये ...9/
बहुत ख़ूब!
हुक़्मरानों -- हुक्मरानों

आदरणीय  रवि भसीन साहब इस्लाह का बहुत शुक्रिया जनाब... ऑफिस में बैठकर टाइप किए थे इसलिये कुछ ज़ियादा ही टंकण त्रुटियाँ हो गयीं आपका बहुत शुक्रिया ।

आदरणीय नादिर जी नमस्कार

अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये

सादर

आदरणीया रिचा जी हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया...

आदरणीय भाई  नादिर ख़ान जी
सादर अभिवादन
तरही मिसरे पर बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। बधाइयाँ। रवि साहिब की इस्लाह पर ग़ौर करें।

आदरणीय सालिक गणवीर जी बहुत शुक्रिया आपका ..

जनाब नादिर ख़ान साहिब आदाब, तरही मिसरे पर ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। समय बचाने के लिए कुछेक टंकण त्रुटियाँ या एक-आध सुझाव बोल्ड टेक्स्ट में आपकी ग़ज़ल को काॅपी कर के किये हैं, अगर आप को उचित लगें। 

आफ़तों की जो इंतिहा है ये

अपने कर्मों का फल मिला है ये ...1

सबको दुश्मन समझ रहा है ये

सच से कितना डरा हुआ है ये ...2

मुल्क में अम्न-ओ भाई चारा हो

ऐ ख़ुदा तुझसे इल्तिजा है ये ...3

हर किसी पर यक़ीं किया तो क्या

दिल की मेरे कोई ख़ता है ये ...4

ज़िंदगी जो मेरी तबाह हुई

किसकी आहों कि बददुआ है ये ...5

बेहयाई है हर तरफ़ इसकी  

इब्तिदा है कि इंतिहा है ये ...6

 

ये हर-इक पर यक़ीन करता है

"दिल से अपने हमें गिला है ये "...7

 

ये जो तुझमें ग़ुरूर है इतना

बोल किस बात का नशा है ये ...8

ज़ह्र पीना है मुस्कुराते हुये

हुक्मरानों का फ़ैसला है ये ...9

आदरणीय अमीरुद्दीन साहब ग़ज़ल पर समय देने और इस्लाह का बहुत शुक्रिया जनाब ...

आदरणीय नादिर ख़ान जी

अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई एवँ शुभकामनाएँ क़ुबूल करें।

बहुत शुक्रिया आदरणीय अमित जी ...

जनाब नादिर ख़ान साहिब आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का ओर्यास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

आफ़तों की जो इन्तहा है ये

अपने कर्मों का फ़ल मिला है ये .--मतले का सानी यूँ कहें:- 

'अपने आमाल की सज़ा है ये'

दूसरा मतला ठीक है इस पर जबरदस्ती की इस्लाह मुनासिब नहीं I 

तीसरा शे`र भी ठीक है, इसे 'अम्न-ओ-भाई' कहना उचित नहीं क्यों कि 'भाई' हिन्दी का शब्द है , मंच पर इस्लाह देने वाले बहुत हो गये हैं इसलिए , होशियार रहें I 

हर किसी पर यकीं किया तो क्या--इस मिसरे में यकीं को यक़ीं  कर लें I 

/ज़िंदगी क्यों(जो) मेरी तबाह हुई
किसकी आहों कि बददुआ है ये -- इस शे`र के ऊला में 'जो' शब्द ही मुनासिब है, लेकिन सानी में 'आह' अपने आप में ख़ुद एक बद-दुआ होती है,, इसलिये इसे यूँ कहना उचित होगा:-

"दोस्तो किस की बद-दुआ है ये"

इब्तदा है कि इन्तहा है ये -- 'इब्तिदा'--'इंतिहा'

गिरः उम्द: है I 

शे`र नम्बर 8  और 9 के बारे में रवि जी बता चुके हैं I 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

वीनस केसरी and Rajesh Jaiswara 'राज जौनपुरी' are now friends
yesterday
Dayaram Methani commented on मिथिलेश वामनकर's blog post बालगीत : मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर बाल गीत। रिबन के विभिन्न रंगो के चमत्कार आपने बता दिए। बहुत खूब आदरणीय।"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, क्या ही खूब ग़ज़ल कही हैं। एक से बढ़कर एक अशआर हुए हैं। इस…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार "
Jul 1

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"मेरे कहे को मान देने के लिए आपका आभार।"
Jul 1

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आशा है अवश्य ही शीर्षक पर विचार करेंगे आदरणीय उस्मानी जी।"
Jul 1

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"गुत्थी आदरणीय मनन जी ही खोल पाएंगे।"
Jul 1

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"धन्यवाद आदरणीय उस्मानी जी, अवश्य प्रयास करूंगा।"
Jul 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी।"
Jun 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"नमस्कार। प्रदत्त विषय पर एक महत्वपूर्ण समसामयिक आम अनुभव को बढ़िया लघुकथा के माध्यम से साझा करने…"
Jun 30

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीया प्रतिभा जी आपने रचना के मूल भाव को खूब पकड़ा है। हार्दिक बधाई। फिर भी आदरणीय मनन जी से…"
Jun 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service