आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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अचानक से पसली की हड्डियों में फिर से दर्द जाग उठा -अंतिम वाक्य से स्तब्ध -सा करती कथा.अत्यंत सम्वेदनशील सृज़न.
लघुकथा पसंदगी के लिए तहेदिल से आभार आपको आदरणीया महिमा जी .
रचना के अंत में जो चौंका देने वाला मोड़ आप लाई हैं ,उससे कोई भी पाठक एकदम से उबर नहीं पायेगा ,एक आक्रोश से भरे युवा की माँ की पीड़ा ,इस दुःख को न उगल सके और ना हीं निगल सके ,अपने बेटे के लिए सुख भी चाह रही है और डर भी रही है और तभी इतना अजीब सा प्रस्ताव रख रही है उसकी प्रेमिका के आगे , एक बात और जो ये कथा इंगित कर रही है कि क्या बाहर से सीधे और प्रेम से भरे प्रतीत होते लोग क्या सच में वैसे ही हैं , इस स्तब्ध कर देने वाली प्रस्तुति के लिए बधाई प्रेषित है आपको आदरणीया कांता जी ,
जी ,आदरणीया प्रतिभा जी ,होते है ऐसे लोग भी जो हर बार इस तरह की हरकत करने के बाद बार -बार पैरों पर गिर कर माफ़ी भी माँगते है ,कभी फिर से ऐसा ना करने का वादा भी करते है लेकिन वक्त आने पर फिर से पूर्ववत व्यवहार कर बैठते है . ये अच्छे बच्चे होते है पर आदत से मजबूर ! मैंने अपने आस-पास छह घरों में से दो घरों में ये दृश्य देखा है . उस माँ के आक्रोश ने मुझे इस कथा के लिए प्रेरित किया है . दरअसल इस घटना ने मुझे निजी तौर पर बहुत प्रभावित किया है इसलिए मैंने सोचा कि जो दुःख ये भोग रही है वही कल एक दूसरी लड़की आकर भोगेगी .अच्छा हो कि माँ अपने होने वाली बहू को सच बताकर ही लाये ताकि स्त्री का स्त्रीत्व मुखर हो . दूसरी लड़की बाद में सच्चाई पता लगने के बाद तलाक लेने की स्थिति में आये उससे बेहतर है कि लिव इन में रह ले . क्योकि बंधन से आज़ादी मुश्किल होती है और बेटे को जब लड़की पर सम्पूर्ण अधिकार नहीं रहेगा तो संभवतः वो स्वयं को कंट्रोल भी करे ! कई सम्भावनाओं के मद्देनज़र मैंने ये अंत रोपित किया है कथा में .
आभार आपको एक बार फिर से .
बहुत बढ़िया कथा!!!! आजकल सब सम्भव सादर __/\__
आभार आपको ह्रदय से आदरणीया सविता जी कथा पर सकारात्मक भाव के लिए .
रचना पर मेरा उत्साह बढाने के लिए बहुत-बहुत आभार आपको आदरणीय समर कबीर जी
आदरणीय विजय जी , ये कथा नारी -विमर्श पर एक चिंतन के सन्दर्भ में लिखा है मैंने . यहाँ सिर्फ स्त्री-पक्ष को देखिये कि वो क्या चाहती है ? वो अपनी होने वाली बहु को बंधन से परे ,विवशता से दूर की जिंदगी देना चाहती है .बंधन रहित संबंध बेटे को मनमानी करने पर रोक लगा सकती है . प्यार को खोने का डर हो सकता है बेटे को संयमित रहना सीखा दे ! " मेरी है ,चाहे उससे कैसा भी व्यवहार करूँ " ....ये पुरुष प्रवृत्ति के प्रति ही माँ का आक्रोश है . कथा को आपने संस्कार और संस्कृति के हिसाब से ही आकलन किया है जो सामान्यत सभी किया करते है .आप फिर से सोचियेगा इस परिस्थिति पर एक बार . सादर .
मोहतरमा कान्ता साहिबा , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --- मोहतरमा कान्ता साहिबा , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
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