आदरणीय साथिओ,
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आ० सतविंदर जी , नए विषय पर अच्छी कथा आत्मग्लानि दर्शाती .
आदरणीय सतविन्द्र भैया अच्छी लघुकथा लिखी आपने. बधाई स्वीकार करे
मगर एक बात समझ नही आई ए.टी.एम का उपयोग करने वालो को बैंक बार-बार आगाह करता है कि किसी को कोई जानकारी ना दि जावे. बैंक फ़ोन पर किसी से कोई जानकारी नही लेता.
स्वयं की लाठी स्वयं ही के सिर पर, बहुत ही अच्छी रचना कही है आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी, सशक्त और सन्देशप्रद, सादर बधाई स्वीकार करें|
आदरणीय सुनील वर्मा जी, कथनी-करनी में अंतर को स्वच्छता अभियान से जोड़ते हुए बढ़िया कथानक बुना है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. एक विचार मन में आ रहा है कि विदेशी धरती से आरम्भ हुई कथा, देशी जमीन और जमीनी हकीकत तक आते आते कालखंड दोष से तो प्रभावित नहीं हुई? गुनीजनों से मार्गदर्शन निवेदित है. सादर|
दो अलग-अलग घटनाओं को बताया है। काल खंड तो है ही...लेकिन काल खंड में रचना के भाव नहीं बदले हैं। एअरपोर्ट की जगह हवाई अड्डा शब्द बेहतर है...मेरे कुछ संदेह हैं... आजकल अधिकतर लोग जो हवाई जहाज में सफर करते हैं... हवाई जहाज के अंदर ही नहीं तो कम से कम हवाई अड्डे के शौचालय का ज़रूर ही प्रयोग करते हैं... संस्कारों भरा पेकेट हैण्डबैग में ही कैसे रह गया..?? क्योंकि हवाई अड्डे पर जगह जगह कचरे के डिब्बे भी होते हैं.. और अंदर भी विमान परिचारक/परिचारिका विमान में कचरा मांगने आते हैं... उन्हें क्यों नहीं दिया... उलटी वाली घटना अच्छी लगी... अंतिम पंक्ति के लिए sheikh जी ने जो कहा सहमत हूँ उससे भी..
आदरणीय सुनील जी, मेरे कहे को मान देने के लिए आभार. वैसे गोष्ठी में शामिल होने के मोह ही ऐसा होता है. मैं इस विधा का बिलकुल नया अभ्यासी हूँ. वैसे मैंने भी प्रयास किया था लेकिन पूरे महीने में भी एक भी लघुकथा नहीं लिख पाया, वास्तव में लघुकथा हो जाती है लिखी नहीं जाती. मेरी लघुकथा नहीं हो पाई तो आयोजन में सहभागिता का मोह त्यागकर केवल टिप्पणियाँ करना ही उचित समझा. क्योकि इससे भी बहुत सीखने मिल जाता है. सादर
कथनी और करनी में अंतर के बेहद पुराने विषय पर अच्छी लघुकथा कही है भाई सुनील कुमार जीI लेकिन यह कथा उस पाये की नहीं बन पाई जिस पाये की उम्मीद मुझे आपसे रहती हैI ऊपर से कालखंड दोष भी है, मगर मुझे आशा है कि आप इस कर काबू पा लेंगेI बहरहाल, आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करेंI
विदेश में रह रहे भारतीय उस देश के बहुत अच्छे नागरिक होते हैं सारे कायदे क़ानून मानते हुए अपना जीवन भरपूर खुशहाल बनाये रखते हैं पीढ़ी दर पीढ़ी ...वो ही लोग अपने देश में आकर सब अच्छी आदतें कायदे क़ानून ताक पर रख देते हैं ..आपकी कथा का मर्म हमारी इसी मानसिकता की पोल खोल रहा है . और बहुत ही प्रभावी है ..हार्दिक बधाई .. आपको
इस कथा के माध्यम से इंसान की दोहरी मानसिकता को दर्शाया है अपने आदरणीय सुनील जी | कालखंड दोष भी दिखाई दे रहा है | वरिष्ठजनों से मैं भी सहमत हूँ | सादर |
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