आदरणीय साथिओ,
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आ० कथा तो अच्छी हुई है ढहते किले का दर्द कम माँ का विक्षोभ अधिक है जो ढलती उम्र से पहले भी था जब जब पुत्र उससे दूर जाता रहा है . सादर ,
मुह्तरमा शशि साहिबा ,प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुंदर लघु कथा
के लिए , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ - -
शशी बहुत सुंदर लघुकथा हुई है.संवाद ऐसे मानो सारा घटनाक्रम आँखो के सामने से गुजर रहा है. बस एक बात पुछना चाहती हूँ जब ये उनकी बहुत पुरानी आदत है तो दर्द ढलती उम्र का नही था पुराना था जो विक्षोभ के रु प मे निकल रहा है.आशा है इस बात को अन्यथा ना लेते हुए अपना मत स्पष्ट करोगी.
आदरणीया शशि जी, बहुत शानदार लघुकथा कही है आपने. एक माँ का दर्द, एक माँ ही समझ सकती हैं. लघुकथा सीधे दिल को छूती है. शिव के चरित्र को बहुत बढ़िया उभारा है आपने. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. बाकी गुनीजन कह ही चुके हैं.सादर
मजबूरी
जवानी में शौक शौक में लगी आदत जल्द ही लत बन शरीर को खोखला कर गई। निशक्त जर्जर शरीर बिस्तर पर पड़े पड़े अब उन दिनों को याद करता है जब जीने के रंगीन सपने देखे थे। पढाई कर अच्छी नॉकरी शादी अपना घर बच्चे पहाड़ों पर घूमना और फोटोग्राफी करना। दोस्तों के साथ मौज मस्ती में पहले धुंए के छल्ले उड़ाए फिर गिलास थाम लिया। जल्दी ही जिंदगी धुंए सी तीखी हो गई और गिलास ने हाथ छोड़ने से इनकार कर दिया।
नशा मुक्ति केंद्र माँ के आँसू कसमें पिता की बेबसी भाई की तटस्थता कुछ भी तो उसे नियंत्रण में नहीं कर पाई। अब तो डॉक्टर्स ने भी जवाब दे दिया है। जीने के लिए जिगर सिर्फ दस प्रतिशत बचा है खून की कमी बनी रहती है शुगर का स्तर लगातार घटता बढ़ता रहता है। हफ्ते दस दिन में हॉस्पिटल में भर्ती होने की नोबत आ ही जाती है लेकिन लत फिर भी नहीं छूटती। घर के किसी कोने में छत पर या बाथरूम में जाकर वह सारी बंदिशे तोड़ देता है।
उस दिन बचपन का दोस्त उससे मिलने आया तो वह भी उसकी हालत देख द्रवित हो गया। "ये क्या हाल बना रखा है तूने तू तो इतना कमजोर ना था और अब जब हालत इतनी कमजोर है तब तो सुधर जा।"
थोड़ी देर वह अपने दोस्त को देखता रहा फिर धीरे से बोला "बहुत तकलीफ दी है मम्मी पापा को अब यह शरीर खोखला हो गया है लाख दवा इलाज भी इसे ठीक नहीं कर सकते। मुझसे भी अब यह तकलीफ सही नहीं जाती बस इसीलिये इसे सुधारने और छुटकारा पाने के लिए सब कर रहा हूँ।"
कविता वर्मा
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