आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
शिक्षा जैसे विषय को लेकर आपने बहुत बढ़िया कथा रची है , बधाई आपको ।
" साहस "
(विषय -धारा के विपरीत )
रचना ," ये बार-बार , तुम्हारा सर-सर करना मुझे पसन्द नहीं।"
जब हमारा डिजिगनेशन एक है ,हम एक ही तरह का काम करते हैं तो फिर .... ?
नहीं,-विमल सर ,
रचना , "तुम्हारी , अाज एनर्जी कहां गायब हो गई ?
" कुछ नहीं सर। "
" कुछ तो है. ?"
" है तो बहुत कुछ "
लेकिन अाप सुन कर क्या करेंगे। अाप को भी दुख होगा।
अरे... ,ऐसा क्या है ?
- सर, मे्रे लिये अाज बहुत बड़ा दिन है। "कोर्ट ने अाज मुझे डिवोर्स दे दी।"
मैं तो ग़ैर हाज़िर थी।
दरअसल,चाहती, मैं भी यही थी।
फिर उसने भावना मेंं बहकर विमल को अपने पति के अवैध रिश्ते से लेकर उस पर् होने वाले हर अत्याचार का चिट्ठा खोल कर रख दिया।
- "सो सॉरी ",रचना
- "नो "- सर ,
" ये तो मेरी किस्मत मेंं तय था। इसे होना ही था। इसे मैं अपनी ज़िन्दगी की एक दुर्घटना मानती हूँ । जिसमें, मेरी अपेक्षाओं,आकांक्षाओं,परिकल्पओं या यूँ कहें कि हर वह चीज़ जो मेरी ज़िन्दगी को चलाय मान बना सकती थी , उसका खून हुआ है ।
" केवल मैं बची हूँ ।"
" विडम्बना ये है कि मुझे जीना है।"
ठीक उस विकलांग की तरह जिसके हाथ पैर कट चुके होते हैं
और वह जीता है,....... ज़िन्दगी, कभी बैसाखियों के सहारे तो कभी ...
" लेकिन, मैं तो उससे भी बदतर हूँ क्योंकि उसके पास तो केवल हाथ पैर नहीं हैं। उसकी आशाएँ , अपेक्षाएं तो ज़िन्दा हैं ।"
" एक मैं हूँ ",
" मेरे पास सब कुछ है लेकिन उस दुर्घटना ने मेरे सपने चकना चूर कर दिये । जिनके सहारे जीवन गतिमान होता है।
फिर भी मैं ज़िन्दा रहूंगी। मैं कायर नहीं हूँ कि डर जाऊं।"
मुझे देखना है ,एक इंसान बिना आशाओं के कैसे जी सकता है ?"
विमल के दिल के किसी कोने मेंं रचना की व्यथा ने एक जगह बना ली थी। उसने पूरे विश्वास से कहा।
- तुम जी सकती हो , रचना ।
बेशक ... , तुम जी सकती हो।
क्योंकि , "तुम्हारा साहस अभी ज़िंदा है ।"
(मौलिक व अप्रकाशित)
अपनी ही रचना का यह स्वरूप देखें आ० मुज़फ्फर इकबाल सिद्दीक़ी भाई जी, और देखकर बताएँ कि सम्प्रेष्ण कुछ बेहतर हुआ या नहीं? रचना पर बात बाद में करूंगा:
------------
“रचना ये बार-बार तुम्हारा सर-सर करना मुझे पसन्द नहीं। जब हमारा डेजिगनेशन एक है, हम एक ही तरह का काम करते हैं तो फिर?
“नहीं विमल सरI”
“रचना तुम्हारी आज एनर्जी कहां गायब हो गई?"
"कुछ नहीं सर।"
"कुछ तो है"
“है तो बहुत कुछ, लेकिन आप सुन कर क्या करेंगे। आप को भी दुख होगा।“
“अरे! ऐसा क्या है?”
“सर, मे्रे लिये आज बहुत बड़ा दिन है। कोर्ट ने आज मुझे डिवोर्स दे दी। मैं तो ग़ैर हाज़िर थी। दरअसल, चाहती मैं भी यही थी।“
फिर उसने भावना मेंं बहकर विमल को अपने पति के अवैध रिश्ते से लेकर उस पर् होने वाले हर अत्याचार का चिट्ठा खोल कर रख दिया।
"सो सॉरी रचना”
"नो सर! ये तो मेरी किस्मत में तय था। इसे होना ही था। इसे मैं अपनी ज़िन्दगी की एक दुर्घटना मानती हूँ। जिसमें, मेरी अपेक्षाओं, आकांक्षाओं, परिकल्पओं या यूँ कहें कि हर वह चीज़ जो मेरी ज़िन्दगी को चलाय मान बना सकती थी, उसका खून हुआ है। केवल मैं बची हूँ, विडम्बना ये है कि मुझे जीना है। ठीक उस विकलांग की तरह जिसके हाथ पैर कट चुके होते हैं और वह जीता है, ज़िन्दगी, कभी बैसाखियों के सहारे तो कभी ...लेकिन, मैं तो उससे भी बदतर हूँ क्योंकि उसके पास तो केवल हाथ पैर नहीं हैं। उसकी आशाएँ, अपेक्षाएं तो ज़िन्दा हैं। एक मैं हूँ मेरे पास सब कुछ है लेकिन उस दुर्घटना ने मेरे सपने चकना चूर कर दिये। जिनके सहारे जीवन गतिमान होता है। फिर भी मैं ज़िन्दा रहूंगी। मैं कायर नहीं हूँ कि डर जाऊं। मुझे देखना है एक इंसान बिना आशाओं के कैसे जी सकता है?"
विमल के दिल के किसी कोने में रचना की व्यथा ने एक जगह बना ली थी। उसने पूरे विश्वास से कहा:
“तुम जी सकती हो रचना, बेशक तुम जी सकती हो। क्योंकि तुम्हारा साहस अभी ज़िंदा है।"
आदरनीय सर जी, बहुत सुंदर ही लघुकथा बन गई है
बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है आपने जनाब मुजफ्फर इकबाल जी बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
बढ़िया रचना विषय पर, थोड़ी कसावट की जरुरत है इसमें| बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय मुज़फ्फर इकबाल जी, बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. आदरणीय योगराज सर के परिमार्जन के बाद सम्प्रेष्ण स्पष्ट हो गया है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
आ0 मुजफ्फर सिद्दकी जी बहुत बढ़िया लघु कथा , सशक्त वार्तालाप ।
मेरे पास सब कुछ है लेकिन उस दुर्घटना ने मेरे सपने चकना चूर कर दिये । जिनके सहारे जीवन गतिमान होता है।
फिर भी मैं ज़िन्दा रहूंगी। मैं कायर नहीं हूँ कि डर जाऊं।"
मुझे देखना है ,एक इंसान बिना आशाओं के कैसे जी सकता है ?"
बधाई इस लघु कथा हेतु ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |