आदरणीय साथिओ,
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बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ जी. हार्दिक आभार. सादर.
आद0 महेंद्र जी सादर अभिवादन। बढ़िया लघुकथा कही आपने । बधाई
मैं क़ई बार लघुकथा पढ़ा पर मुझे "नीड़ की ओर" विषय सार्थक होता नजर नहीं आया। हो सकता है मैं गलत हूँ।
हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र जी. उम्मीद है आपकी लघुकथा पर आदरणीय योगराज सर ने जो टिप्पणी की थी उससे आपको आपका उत्तर मिल गया होगा. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब,
शरणार्थी समस्या एक विश्व व्यापी समस्या है । विश्व के अधिकांश देश इससे ग्रसित हैं । उस देश में जहाँ यह समस्या पाती है उनमेंं एक बात समान है और वह यह है कि सभी शरणार्थी जातिगत आधार पर शरणार्थी जीवन जीने पर अभिशप्त है । जाति के आधार पर शिनाख्त की जाती है और इनके साथ अमानवीय बर्ताव किया जाता है ।
शरणार्थी शिविर कैसा होता है , शरणार्थीगण किस प्रकार का जीवन व्यतीत करते हैं यह लघुकथा उसका बेहतरीन दस्तावेज है लेकिन प्रदत्त विषय को कतई परिभाषित नहीं करती है । आयोजन में सहभागिता हेतु बधाई स्वीकार करें ।
सादर आदाब आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी. लघुकथा पर अपनी टिप्पणी के माध्यम से मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ. प्रदत्त विषय से लघुकथा के न्याय कररही है या नहीं, इस सन्दर्भ में आदरणीय योगराज सर ने अपनी टिप्पणी में कह ही दिया है इसलिए उसकी पुनरावृत्ति का कोई अर्थ नहीं है. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
यदि यह कहानी प्रदत्त विषय से किंचित भी न्याय न कर रही होती तो मैं इसे पोस्ट ही न करता। शेष अन्य कहानियों और टिप्पणियों पर पुनः लौटता हूँ।
गृहयुद्ध की मार सह रहे देशों के मासूम नागरिक कैसे बेगानी धरती पर अपनी भूमि की सुगंध को तरस जाते हैं, इस लघुकथा में उस भयावह स्थिति को बहुत ही सटीकता से शब्दांकित किया गया. बहुत से अभागे जान बचाने और सर छुपाने की गरज से जिस अनजान मंजिल पर पाँव रखते हैं दुर्भाग्य वहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ता. धूल-धूसरित कागज पर छपी गुलाबी परियों की कहानी का बिम्ब इस रचना को एक अलग ही शिखर पर ले गया है, सब कुछ जानते बूझते भी घर वापसी की कल्पना और चाहत को जिस प्रकार शब्दों में बाँधा गया है, उसे पढ़कर आह और वाह इकट्ठी ह्रदयतल से निकलती हैं. इस रचना में प्रदत्त विषय के साथ पूर्ण न्याय हुआ है, रचना शिल्प और कथ्य की दृष्टि से उत्कृष्ट है जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई प्रेषित है भी महेंद्र कुमार जी. आप यदि सोशल मीडिया के तिलिस्म से बचे रहे तो इस विधा में बहुत आगे जायेंगे. बहुत बहुत बहुत बधाई है आपको.
आदरणीय योगराज सर, लघुकथा पर की गयी आपकी समीक्षा से मुझे विशेष संबल प्राप्त हुआ है. इस विधा में मैंने जो कुछ भी सीखा है, आप ही से सीखा है. मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि आपके विश्वास पर ख़रा उतरते हुए इस विधा में कुछ अच्छा कर सकूँ. आपने जिस चीज से बचने की सलाह दी है उसका मैं पूरा ख्याल रखूँगा. आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
एक नए विषय पर कथा पढने को मिली और एक बेहतरीन और अद्भभूत अंदाज़ में, जिसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई आ ० महेंद्र जी | गृह युद्ध के बाद का मंज़र कितना भयानक और दुखदायी होता है| सारा आकाश मेरा पर मेरा आकाश !
ढेरों बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं|
बहुत-बहुत शुक्रिया आ. कल्पना मैम. आभारी हूँ आपका. सादर.
विषयांतर्गत बेहतरीन सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी। आदरणीय सर श्री योगराज प्रभाकर जी की टिप्पणी से हमें रचना की विशेषताएं बाख़ूबी स्पष्ट हुई हैं। हार्दिक आभार। इशारों में बहुत कुछ कहा गया है जैसे कि : //बिना पेट वाली वह लड़की //;
//‘‘जी भर गया हो तो मारो इन सालियों की छाती पे गोली। इन्हीं से ये सपोलों को दूध पिलाती हैं।’//; और बेहतरीन समापन पंक्तियां!!
रचना के सूक्ष्म तत्त्वों को पकड़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. हृदय से आभार प्रकट करता हूँ. सादर.
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