आदरणीय साथिओ,
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जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
सुकरात के बहाने बहुत सुंदर रचना लिखी हैं. हार्दिक बधाई आदरणीय
आ. महेन्द्र कुमार जी ।बेहतरीन रचना के लिए बधाई ।
वाह, वाह, क्या गज़ब की कल्पना की है आपने इस विषय पर, एकदम अनूठा विषय चुना है आपने लिखने के लिए. और लघुकथा अपना सन्देश छोड़ने में पूरी तरह से सक्षम है, बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए आ महेंद्र कुमार जी
आदरणीय महेंद्र कुमार जी, प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा की रचना पर बधाई स्वीकार करें।
वाह। क्या बात।
दार्शनिकों के माध्यम से दर्शन प्रस्तुत करवाने ने प्रभाव कईं गुणा कर दिया
आदाब। एक सच को बताने, उसे बाख़ूबी उभारने के लिये बेहतरीन परिकल्पना के साथ बेहतरीन पंचपंक्तियां युक्त सृजन के लिए हार्दिक बधाइयां जनाब महेंद्र कुमार साहिब। शीर्षक जिज्ञासा बढ़ाता है। व्यर्थ की भौतिकता/तरक़्क़ी के नशे मेंं सक्षम मानव अपनी नैैसर्गिक क्षमताओं को भूूूल चुका है।
मुझे लगता है कि शराब/पैग का ज़िक्र कुछ ज़्यादा ही हो गया है; कसावट की गुंजाइश है।
हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी।प्रदत्त विषय पर बढ़िया लघुकथा।
आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब,
प्रदत्त विषय को सार्थक करती लाजवाब कथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
जनाब महेंद्र कुमार साहिब , प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
रचना पर उपस्थित हो कर अपनी टिप्पणी से उसे मान देने के लिए सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया। व्यस्तता के कारण न तो मैं सभी रचनाओं पर उपस्थित हो पा रहा हूँ और न ही अपनी रचनाओं पर आयी टिप्पणियों पर। इस हेतु मैं सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ। एक-दो बात में इस रचना के संदर्भ में कहना चाहूँगा कि
1. सुकरात जब भी शराब पीता था छक कर पीता था। इसी चीज़ (कुछ विशिष्ट उद्देश्यों के साथ) को इस लघुकथा में दर्शाने की कोशिश की गयी है।
2. "प्लेटो की गुफ़ा" का रूपक हमें प्लेटो की कालजयी रचना "रिपब्लिक" में मिलता है। मैंने इसी रूपक को समकालीन संदर्भों में अपने ढंग से व्यक्त करने की कोशिश की है।
कृतिमता में डूबे तथाकथित जागररूक बुद्धिजीवी लोग सच्चाई से दूर बढ़िया कथानक हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र जी
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