आदरणीय साथिओ,
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बेहतरीन लघुकथा ।एक अपमान का दंश जीवन भर चुभता रहता है । बधाई ।
आदरणीय सुकुल जी बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई
बेहतरीन सकारात्मक समापन के साथ विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय त्रैलोक्य शुक्ल जी। मुझे ऐसा लगा कि यह कहानी का कथानक भी हो सकता है और यहां मुझे कालखण्ड का भी संशय है। सादर।
वर्ग भेद और उससे उपजते दंश पर बहुत प्रभावशाली रचना कही है आपने आदरणीय कथा का शिल्प और चरित्र चित्रण कथानक के अनुकूल है हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको सादर
वाह, वाह, गज़ब का कथानक चुना है आपने और बहुत बढ़िया लेखन हुआ है प्रदत्त विषय पर, दिल को छू लेने वाला. लेकिन यह रचना कहानी के लिए ज्यादा मुफीद है और इसमें कालखंड दोष भी नजर आ रहा है. बहरहाल बहुत बहुत बधाई आ इस बेहतरीन रचना के लिए
वर्ग भेद पर प्रभावशाली रचना बनी है आदरणीय... कथा का शिल्प और चरित्र चित्रण सुंदर हुआ है, मेरी ओर से बधाई प्रेषित है भाई जी. सादर..
बहुत सही कहा आपने।
कभी मजाक भारी पड़ जाता है।
खुशबू - लघुकथा –
"मेरे तो भाग्य ही फ़ूट गये, पता नहीं कौनसी बुरी घड़ी में, इस कलमुँही खुशबू को साठ हज़ार में खरीद लिया"? कोठे की मालकिन शब्बो बड़बड़ा रही थी।
“मैंने तो तुम्हें मना भी किया था कि यह लड़की हमारे धंधे के मतलब की नहीं है"? शब्बो के पति ने याद दिलाया।
"तुम क्या मुझसे ज्यादा जानते हो कि मर्द औरत में क्या ढूंढता है"?
"वाह, एक मर्द से पूछ रही हो यह बात"?
"मुझे मत बताओ कि तुम कितने मर्द हो ? तुम्हारे कारण ही मैं इस धंधे के दलदल में फ़ंसी हूँ"?
"बात को कहाँ से कहाँ ले जा रही हो शब्बो? बात तो उस लड़की की हो रही है"?
"चलो उसी की बात करो। क्या कमी है उसमें। साँचे में ढला हुआ जिस्म है"?
"केवल जिस्म ही सब कुछ नहीं होता। पंद्रह दिन हो गये। एक भी ग्राहक ने पसंद नहीं किया। ना मुस्कुराती है, ना ग्राहक की ओर देखती है। रत्ती भर भी सैक्स अपील नहीं है"?
"भले परिवार की लड़की है। संस्कारों की बेड़ियों में जकड़ी हुई है। खुलने में थोड़ा समय लेगी। एक बार खुल गयी तो पूरा बाज़ार उसकी खुशबू से महक उठेगा"?
मौलिक एवम अप्रकाशित
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, प्रदत्त विषय पर बहुत ही बढ़िया लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें।
हार्दिक आभार आदरणीय नीलम जी।
मुहतरम जनाब तेज वीर साहिब, प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।
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