आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय विनय कुमार जी, रचना की तारीफ के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
सही है नीलम जी। सबका अपना नजरिया है हर दृश्य पर
हार्दिक बधाई आदरणीय नीलम जी। कुछ लोगों की मानसिकता अपने से छोटे लोगों के प्रति बेहद उदासीन और नकारात्मक होती है। बेहतरीन लघुकथा।
बढ़िया शीर्षक के साथ कुछ हटकर, घटना पर दृष्टि डालते हुए पात्रों के दृष्टिकोण उभारती बढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया नीलम उपाध्याय साहिबा। मेरे विचार से यह रचना वर्तमान शब्द संख्या से लगभग आधे शब्दों में अनावश्यक विवरण व दोहराव कम करते हुए भी आप कह सकती हैं लघुकथा संदर्भ में। लघुकथा यहां से भी शुरु की जा सकती है आगे तनिक फ्लैशबैक का उपयोग करते हुए : // "ओह ! ये तो बहुत ही हृदय विदारक वाकया हो गया ।" "हाँ । आज सुबह रंजन ने बताया तो बहुत दु:ख हुआ .....//
प्रस्तुत लघुकथा मात्र एक घटना का विवरण सा बन कर रह गई आदरणीय नीलम जी अभी इस पर कुछ परिश्रम करने की आवश्यकता है । लघुकथा की भाषा में भी सहज दिखाई नहीं देती यथा- उद्विग्नता, परिलक्षित, यद्यपि उसे तुरत ही पास इत्यादि । और गोबिन्द बाबू का संवाद , '"हाँ-हाँ, वही । आज उसकी सोसाइटी में बड़ी........ तब तक बच्चे ने दम तोड़ दिया ।' बहुत लंबा है जो ऊबाउ लग रहा है। इसे चुस्त करने की जरूरत है । सादर
मुह तरमा नीलम साहिबा, प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
आदरणीया नीलम उपाध्याय जी आदाब,
प्रदत्त विषय पर अच्छा प्रयास रहा। गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
ेसंवेदनहीनता समाज में आम होती जा रही है इस तथ्य को उजागर करती बढ़िया कथा हार्दिक बधाई नीलम जी शिल्प में थोड़ी कसावट की गुंजाइश है
फ़ैसला
सुरेश अपनी पत्नी रमा से बोले “शर्मा जी को क्या जवाब देना है ,उनकी बेटी तुम्हें और संजू को कैसी लगी ।मुझे तो लड़की अच्छी लगी।”
“पापा मुझे भी लड़की पसंद है ।माँ आप भी तो बताए आपको शर्मा अंकल की बेटी कैसी लगी ।”वही बैठे संजू ने कहा ।
“जहाँ तक लड़की का सवाल है ,वो बहुत अच्छी है ,पर मुझे एक बात खटक रही है ।”अब तक चुप बैठी रमा बोली ।
“कौन सी बात ।” सुरेश ने पूछा ।
“वो उस दिन जब मैं शर्मा जी के घर अंदर टॉयलेट गयी थी ,तो एक कमरे के सामने से निकलते हुए बड़ी तेज़ बदबू आयी और न चाहते हुए भी मेरी नज़र उस कमरे पर चली गयी ,वहाँ शर्मा जी की माताजी बहुत बुरी हालत में लेटी थी । “रमा ने बताया ।
“हाँ उन्होंने बताया तो था उनकी माँ बीमार है ।”सुरेश बोले ।
“उस कमरे व उनकी हालत देख कर ऐसा लगा कि उनकी कोई देखभाल नहीं होती ।”रमा बोली ।
“अब इस बात के पीछे इतना अच्छा रिश्ता ठुकरा तो नहीं सकते । “ सुरेश बोले ।
“पापा , आप शर्मा अंकल को मना कर दे ,जिस घर में बुज़ुर्गों की सेवा नहीं की जाती ,उस घर की लड़की एक अच्छी बहू कैसे बन पायेगी ।”संजू बोला ।
“मुझे पता था ,तुम्हारा फ़ैसला यही होगा ।”रमा बोली
मौलिक व अप्रकाशित
प्रद्दत विषय को सकार करती और बुजुर्गो के प्रति परिवार की दृष्टि और उसके आंकलन को स्पष्ट सामने रखती अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें आद : बरखा शुक्ल जी .सादर
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय वीरेंद्र वीर जी ,रचना को समय देने के लिए आभार ,सादर
मुहतरमा बरखा जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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