For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-44

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 44  वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का तरही मिसरा साहिर होशियारपुरी की ग़ज़ल से लिया गया है| | पेश है मिसरा-ए -तरह

 

"हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी "

2122       2122       212 

फाइलातुन   फाइलातुन   फाइलुन

(बहरे रमल मुसद्दस महजूफ)

रदीफ़ :- होने लगी 
काफिया :- ई(बेबसी, ख़ुशी, नदी, कमी आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 फरवरी दिन बुधवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 27 फरवरी दिन गुरुवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक  अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल  आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी । 

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 26 फरवरी दिन बुधवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 16958

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

बहुत खूब कहा, शेर की सादगी ही उसे आकर्षक बनाती है।

बादलों ने ख़त समुन्दर के पढ़े ,

बाढ़ से व्याकुल नदी होने लगी |---बहुत सुन्दर शेर 

 

अब हुए बच्चे बड़े उड़ जाएंगे ,

सोचकर माँ भी दुखी होने लगी |----एक दिल छू लेने वाली सच्चाई 

बगावत शब्द मेरे ख्याल से भी स्त्रीलिंग होना चाहिए

बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी दिली दाद कबूलें अभिनव जी  

 

छावनी में रात रानी की महक ,

लश्करों की वापसी होने लगी ..

गहरी बात को रखता हुआ शेर है ... बहुत खूब अभिनव जी ...

बादलों ने ख़त समुन्दर के पढ़े ,

बाढ़ से व्याकुल नदी होने लगी |............वाह, वाटर सायकिल ग्लोबल वार्मिंग की लिखावट :))) वैसे इस शेर की दार्शनिकता पर सोचती रही ..बहुत सुन्दर 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है ..मेरे दिली दाद पेश है , क़ुबूल फरमाएं आ० अभिनव अरुण जी 

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

आशिक़ी से आशिक़ी होने लगी |
ज़िन्दगी यूं ज़िन्दगी होने लगी |... .  इस महीनी पर आपको बार-बार बधाई.. ग़ज़ब का अंदाज़ है !

बादलों ने ख़त समुन्दर के पढ़े ,
बाढ़ से व्याकुल नदी होने लगी |.. ... बहुत खूब.. यह थोड़ा रुमानी हो जायें शैली का शेर हुआ है.. अच्छा लगा..

छावनी में रात रानी की महक ,
लश्करों की वापसी होने लगी |........... कहीं पे निग़ाहें, कहीं पे निशाना.. बहुत खूब !! .. बहुत बढिया..

दर्द की इस इन्तेहां में हाथ दे ,
मौत तुझसे दोस्ती होने लगी |........  ये ख़याल.. ये अंदाज़  आपकी शैली है, भाईजी..

मैंने जब खुद से बग़ावत कर लिया ,
हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी |....... वाह वाह वाह .. बहुत खूब.. अच्छी ग़िरह लगी है.. मैंने जब खुद से बग़ावत कर ही ली 

खाद पानी डालिए इस नस्ल में ,
उर्वरा की भी कमी होने लगी |...........   ह्म्म्म.. शेर ठीक है. मग़र बात एकदम ऐसी नहीं है. 

कई शेर और थे. मग़र ये ज़ियादा आपके लगे. आपकी शैली के लगे. बहुत बहुत बधाई हो..
शुभेच्छाएँ

//मंच पर शाइर की है दरकार क्या ,

मसखरी ही मसखरी होने लगी |//

इस सामयिक शेर पर क्या कहना, झटके से ध्यान खिचता है, अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय अभिनव अरुण जी .

खाद पानी डालिए इस नस्ल में ,

उर्वरा की भी कमी होने लगी |    वाह वाह !!

बादलों ने ख़त समुन्दर के पढ़े ,

बाढ़ से व्याकुल नदी होने लगी |....क्या बात है ...कमाल का शेर है 

छावनी में रात रानी की महक ,

लश्करों की वापसी होने लगी |....वाह लाजवाब...गिरह का शेर भी लाजवाब 

आदरणीय अभिनव जी ख़ूबसूरत कलाम के लिए ढेर सारी दाद कबूलिये 

 

जब मुहब्बत रौशनी होने लगी
कम दिलों की तारिकी होने लगी //१//

बन गए जब तुम हमारी ज़िन्दगी,
खूबसूरत ज़िन्दगी होने लगी.... //२//

यूँ सराहे ग़म हमारे आपने,
हर नये ग़म से ख़ुशी होने लगी.....//३//

हाय उस आँख की वो मस्तियाँ
जिक्र ही से बेखुदी होने लगी …… //४//

याद आई इक अधूरी जुस्तजू,
खुद ब खुद फिर बंदगी होने लगी … //५//

दोस्ती हमने निभाई इस तरह,
गुम जहाँ से दुश्मनी होने लगी …… //६//

इक ग़ज़ल का रूप उसने धर लिया,
फिर तो जम के शायरी होने लगी ...... //७//

Maulik...................... :)

आदरणीय हरजीत सिंह जी सादर, बहुत सुन्दर गजल कही है सादर भरपूर दाद कुबुलें.

आदरणीय हरजीत भाई ,बहुत  उम्दा ग़ज़ल कही है , दिली दाद कुब्प्प्ल करें ॥

याद आई इक अधूरी जुस्तजू,
खुद ब खुद फिर बंदगी होने लगी …

दोस्ती हमने निभाई इस तरह,
गुम जहाँ से दुश्मनी होने लगी … , इन अशआर के लिये बधाइयाँ ॥

आदरणीय निम्न मिसरे को एक बार तक्तीअ और देख लें , बेबह्र हो रहा है ।

हाय उस आँख की वो मस्तियाँ

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
17 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service