आदरणीय साथिओ,
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फ़र्क़
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चरर्रर्रर्रर.....चरर्रर्रर्रर.....चर्रर्रर।
सुमित ने कार का ब्रेक पैडल दबा कर छोड़ा, फिर दबाया, छोड़ा और दबाया। गाड़ी चरचरा कर आवाज़ करती हुई रुक गई। एक क्षण को उसके और उसके साथ वाली सीट पर बैठी पत्नी मानसी के होश फ़ाख्ता हो गए।
अभी कुछ क्षण पहले वो देख रहे थे कि एक छोटा सा बच्चा सड़क किनारे खेल रहा था जो अचानक सड़क के बीच में आ गया था। और अचानक ब्रेक लगाने पड़े।बच्चा बाल-बाल बचा। पर सुमित के मुँह से गालियां निकलने लगी।
"इनके बाप की सड़क है क्या? साले बच्चे पैदा करके सड़क पर छोड़ देते हैं मरने के लिए। इन्हें क्या है। और पैदा कर लेंगें।
और हम इनके पैर पकड़ कर इन्हें पैसे भी देंगें और कोर्ट-कचहरी भी भुगतेंगे।
संभाल नहीं सकते तो घर में बांध कर क्यों नहीं रखते।"
मानसी अवाक सी देख रही थी। अनायास ही बोली, "क्या जानवर और इंसान के बच्चे में कुछ फ़र्क़ होता है!"
"मतलब"।
"3-4 दिन पहले अपनी गाड़ी के सामने ऐसे ही एक पिल्ला बाल-बाल बचा था। तब तुमने मुड़ कर देखा था कि वो ठीक है। फिर भगवान का शुक्र किया था कि पाप होने से बच गया। और आज ये सब!!!"
सुमित को लगा कि उसके मस्तिष्क में ध्वनि तरंगें सी प्रवाहित हुई हों जिन्होंने उसे सोते से जगा दिया है।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
आदाब। आसपास के ही दोहराये जाने वाले सहज कथनोपकथन पर विषयांतर्गत बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई इदआदर अजय गुप्ता साहिब।
आदरणीय अजय जी, प्रदत्त विषय पर बढ़िया लघुकथा कही है आपने. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
1. //चरर्रर्रर्रर.....चरर्रर्रर्रर.....चर्रर्रर। सुमित ने कार का ब्रेक पैडल दबा कर छोड़ा, फिर दबाया, छोड़ा और दबाया। गाड़ी चरचरा कर आवाज़ करती हुई रुक गई।// मुझे लगता है कि यदि ये बात साधारण तरीके से कही जाए तो लघुकथा ज़्यादा प्रभावी होगी.
2. कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं उन्हें देख लीजिएगा, जैसे : //सुमित के मुँह से गालियां निकलने लगीं।// //और पैदा कर लेंगे।// //इन्हें पैसे भी देंगे//
3. और साथ ही प्रश्नवाचक चिह्न भी : //घर में बांध कर क्यों नहीं रखते?// //"मतलब?"//
सादर.
प्रदत्त विषय पर एक अच्छी रचना। बधाई।
आदरणीय अजय गुप्ता जी , बहुत ही सशक्त लघु-कथा , बधाई , सादर।
ओह, इंसान के बच्चे की कीमत पिल्ले से भी कमतर, थोड़ा आश्चर्यजनक व्यवहार लगता है. बहरहाल विषय बढ़िया है, बधाई इस प्रस्तुति के लिए आ अजय गुप्ता जी
गुस्सा शायद ,बच्चा अगर मर जाता तो वो सब भुगतना पड़ता,जो उसके मुंह से निकला,क्योकि आज के वातावरण में यह लहर बह हैं,कर भला,हो बुरा ,और अगर पिल्ला मर जाता,तो कौन जबाव-तलब करने आ रहा.
फिर भी जान किसी की भी जाये,मानवीयता तो होनी ही चाहिए।बेहतरीन रचना,बधाई,आदरणीय अजय सरजी।
अच्छी कथा हुई है जिसके लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय अजय गुप्ता जी|
अपने संस्कार-- “कितना मना किया था कि पैसे मत जमा कराओ लेकिन मेरी कभी सुनी हो तब तो. अब देखो, सबका कर्जा माफ होने जा रहा है और यह ईमानदारी का तमगा लटकाकर घूमेंगे”, बेटे की चुभती आवाज़ घर में गूंज रही थी. मंगलू एक तरफ खटिया पर बैठा बीड़ी पी रहा था और उसकी मेहरारू आँगन में एक किनारे चूल्हे पर दाल चढ़ाकर बैठी थी. बेटे को अनदेखा करते हुए मंगलू ने मेहरारू से पूछा “रोटी थोड़ी मोटी ही बनाना, बहुत दिन से मन कर रहा है”.
मेहरारू ने सर हिलाते हुए उसकी तरफ देखा और कुछ सोचकर कहा “कभी बचवा की भी सुन लिया करो, आखिर सरकार ही करजा माफ कर रही थी तो फाइदा लेने में बुराई का है”.
बेटे को थोड़ा और बल मिल गया, वह अब मंगलू और माई के बीच आकर खड़ा हो गया. मंगलू को लग गया कि आज यह माँ बेटे मिलकर उसको कोसेंगे तो वह उठने का उपक्रम करने लगा. तभी बेटे ने फिर कहा “आखिर आपने बीस हजार बर्बाद कर दिये, मुझे दे देते तो कुछ बिगड़ जाता. अपने गाँव का ही किसुना आजकल ज़मीनों का कारबार करने लगा है, मेरे लिए तो बस यही खेत और गोबर ही रखा है”.
मंगलू को याद आया, बेटा पिछले कई महीने से उससे पैसे मांग रहा था. वह कस्बे के कुछ छुटभैये टाइप के नेता लोगों के साथ घूमने लगा था और वह एक फटफटी के लिए कई बार कह चुका था. लेकिन मंगलू को उसका इन लफंगों के साथ घूमना फिरना पसंद नहीं था. उसने बेटे को कई बार समझाया भी कि दो ही पैसे मिलें लेकिन सुकून और ईमानदारी के मिलें तो ठीक है.
“इस बार थोड़ी और मेहनत करेंगे तो शायद कुछ पैसे और बच जाएँगे. अब हम जानबूझकर तो डिफ़ाल्टर नहीं बन सकते, बाकी तुम्हारी मर्जी. लेकिन किसी को धोखा देकर दो पैसे कमाना गलत है बेटा”, मंगलू ने बेटे के कंधे पर हाथ रखा और बाहर निकल गया.
मेहरारू को भी मंगलू की यह बात ठीक लगी, उसने बेटे को समझाते हुए कहा “बचवा, अपने बाबू का कहना मानो, गलत रस्ता जाने की मत सोचो. कम से कम उसके जीते जी तो कुछ गलत मत करो”.
बाहर दालान में बैठे मंगलू के कान में भी मेहरारू की बात पड़ी, वह मुस्कुरा दिया. बेटा भुनभुनाते हुए बाहर निकल गया, मंगलू कल की जुताई के बारे में सोचने लगा.
मौलिक एवम अप्रकाशित
आदाब। विषयांतर्गत ग्रामीण कृषक परिवार की हक़ीक़त और मानसिकताओं को उभारती सकारात्मक संदेश वाहक बेहतरीन रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार साहिब।
इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद उस्मानी साहब
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