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बहुत ही सुन्दर अनोखा मिट्टी की बुनियाद और चरित्र के बीज! बहुत ही बेहतरीन पेशकश!
जिसमे में चरित्र के बीज डालूँगा जो बौने हो फर फलकर समाज और मेरे घर को महकाएं।" चरित्र के बीज बौने होकर ???
आपने बोंजाई का अद्द्भुत बिम्ब लिया वो तो ठीक है बबिता जी किन्तु ये समझ नहीं आया की चरित्र के बीज बौने होकर घर समाज को कैसे मह्कायेंगे बौना शब्द का तात्पर्य छोटे से लिया जाता है यहाँ तो चरित्र के बीज से विशालकाय दरख़्त की बात होनी चाहिए थी ...आप तो पहले ही उन्हें छोटा कर रही हैं थोडा स्पष्ट करें तो समझ आएगा .
आ. बबिता जी आपकी इस अच्छी लघु कथा पर हार्दिक बधाई आपको !
आ० बबिता चौबे जी, आपकी रचना में कथ्य तथ्यानुरूप नहीं है। बोनसाई बनाने में मिट्टी का कोई ज़्यादा योगदान नहीं होता, वैसे भी उसमे मिट्टी की मात्रा बेहद कम होती है। बोनसाई मूल पौधे की जड़ों को कुशलता एवं सावधानी से नियंत्रण (काटने) में रखने तथा बाद में उसकी सही कटाई-छटाई करने की कला का नाम है।
अंतिम पंक्ति में "चरित्र के बीज बौने हो फर फलकर समाज और घर को मह्कायेंगे" लगता है लिखने में त्रुटी हुई है - मेरे विचार से आप इस मिटटी में चरित्र के बीज बो कर समाज और घर को महकाने की बात कर रहे है | अगर ऐसा है तो लघुकथा अच्छी बन पड़ी है |
बोन्साई - मिटटी की महत्ता - बौने चरित्र का निर्माण और इनसब में बुनियाद ,ये बात कुछ हजम नहीं हो रही आदरणीय बबिता जी .माफ़ कीजियेगा ये घाल -मेल मुझे स्पष्ट नहीं हो रहा है . वैसे प्रतीकों के माध्यम से आपने अवश्य एक गूढ़ रचना का निर्माण किया है ,मैं मूढ़ मति समझ नहीं पा रही हूँ .उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेगी .
अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीया बबीता जी। कथा की आख़िरी पंक्ति में यक ब यक तुमने से तू पर उतर आना खटक रहा है।
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