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आदरणीया बबिता जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
आ० बबिता जी,, प्रतीकों के माध्यम से आपने अच्छी कथा कही है , बधाई आपको
आदरणीया बबिताजी
चरित्र का संबंध मिट्टी से नहीं परिवार माता पिता गुरुजन द्वारा दिये संस्कारों से है। विषय को छूते हुए कथा बीच में ही भटक गई। प्रयास के लिए हार्दिक बधाई
अच्छा प्रयास लघुकथा का प्रदत्त विषय पर , बधाई आपको..
अंगूठा छाप (बुनियाद) –
दीनू अपने नौ साल के बेटे को घसीटते हुए और पीटते हुए स्कूल ले जा रहा था!
स्कूल के मुख्य द्वार पर खडे हैड मास्टर जी ने दीनू को टोकते हुए कहा,"क्या हुआ दीनू, इसे क्यों पीट रहे हो"!
"क्या बताऊं गुरूजी, ये ससुरा स्कूल के नाम से ऐसा बिदकता है जैसे बकरा कट्टीखाने के नाम से"!
"अच्छा एक बात बताओ दीनू,तुम्हारे परिवार में कौन कौन पढा लिखा है"!
"सब अंगूठाछाप हैं ,गुरूजी"!
"और जिस जगह तुम रहते हो, उस मोहल्ले में कितने लोग पढे लिखे हैं"!
"वहां भी सभी लगभग अनपढ ही हैं"!
"अब तुम ही सोचो, इस छोटे से बच्चे का क्या कसूर है!तुम्हारे परिवार की तो शिक्षा की बुनियाद ही कमज़ोर है, मैं तो कहता हूं कि कमज़ोर क्या, बुनियाद रखी ही नहीं गयी"!
"तो क्या गुरूजी,यह ऐसे ही अंगूठाछाप रहेगा"!
"नहीं दीनू,तुम अपने आपको मज़बूत करो तो इसकी शिक्षा की बुनियाद मज़बूत करने की जिम्मेवारी मैं ले सकता हूं"!
"मुझे क्या करना होगा,गुरूजी"!
"इस बालक को यहीं छात्रावास में छोडना होगा"!
"उसका खर्चा तो बहुत आयेगा"!
"तुम उसकी चिंता मत करो, सब सरकार देगी,तुम केवल एक कागज(फ़ार्म) पर अपना अंगूठा लगा देना ताकि तुम्हारा बेटा आगे चल कर हस्ताक्षर करने लायक बन सके"!
मौलिक व अप्रकाशित
वाह बेहतरीन प्रस्तुति! सकारात्मक सोच के साथ एक गुरूजी का उदाहरण ! बच्चों को बुरे माहौल से निकालना ही होगा तभी वह अच्छा बन सकेगा.
बड़ी सकारात्मकता के साथ गुरूजी ने दीनू को समझाया कि वातावरण का कितना प्रभाव पड़ता है और वातावरण बदलने से व्यवहार में बदलाव आना ही है| रचना के सृजन हेतु हार्दिक बधाई आपको आदरणीय तेजवीर सिंह जी|
आदरणीय जवाहर जी,चंद्रेश जी,कांता जी,बबिता जी, लघुकथा के लिए समय निकाला,उसे सराहा!आप सभी का हार्दिक आभार!
बहुत सुन्दर संदेश देती लघुकथा आ. तेजवीर जी। बहुत बहुत बधाई।
वाह बहुत ही बेहतरीन लघु कथा हुई है आदरणीय तेज वीर सिंह जी, हार्दिक बधाई आपको !
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