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आ० विनोद खनगवाल जी ,लघु कथा पर आपकी समीक्षा ने जहाँ मेरी कलम में नव ऊर्जा को संचारित किया वहीँ अपने लेखन के प्रति आश्वस्त भी किया लघु कथा के मर्म के इस मुखर अनुमोदन हेतु दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ |
जानकी जी ,आपका दिल से शुक्रिया.
प्रिय नीता जी,लघु कथा पर आपका मुखर अनुमोदन मुझे प्रोत्साहित करने के साथ आश्वस्त भी कर रहा है की लघु कथा अपना सही सन्देश छोड़ रही है आपको दिल से बहुत- बहुत बधाई |
बच्चे मन के सच्चे ,खोल देते हैं बड़ों बड़ों के कच्चे चिट्ठे , सार्थक कथा आ० राजकुमारी जी ,बधाई आपको
ओह ! क्या रंग भरा है आपने अपनी प्रस्तुति में आदरणीया राजेश कुमारीजी !
आपकी प्रस्तुति को पढ़ कर अनायास आँखें भर आयीं. हार्दिक धन्यवाद आदरणीया
शुभ-शुभ
एडमिन महोदय , कृप्या मेरी इस लघुकथा को पोस्ट कर दें, मेहरबानी होगी |
रिश्तों की परिभाषा
“मेरे बाप ने मुझे बदतमीज़ और बिगड़े हुए बेटे का ख़िताब दिया होगा और मैनें भी बाप को पुराने ख्यालों वाला और जाहिल इन्सान करार दिया” सौरभ रात भर यही सोचता रहा और ठीक से सो भी न पाया |
कल देर रात तक जिस प्रसंग में सौरभ और रमेश के बीच परिचर्चा चल रही थी उसका केंद्रीय मुद्दा था “हमारे युग में माँ बाप व् बच्चों के दरमियाँ पैदा होती दरार” |
मगर वह समझ नहीं पा रहा था कि इस परिचर्चा में उसने खुद को ऐसी स्थिति में क्यों और कैसे पाया | यहाँ वह ये सोचने की बजाये कि , ये नई पीड़ी में सब कुछ बकवास ही चल रहा है और कैसे हमारे बजुर्ग अच्छे थे और कैसे हम सब बाप की कही हर सही गलत बात को मान लेते थे |
फिर सौरभ ने खुद से व्यंग से कहा ,“क्योंकि हम तो बाप के बंधुआ मजदूर थे उनके कहे मुताबिक काम करते थे, हम अपनी मर्जी तो कर नहीं सकते थे|कभी कोई हक भी नहीं जतलाते और क्या कहें कि अरमानों को दिल की कबर में ही दफन कर लेते थे ” |
हमारे माँ बाप सर उठा कर कहते थे “हमारे बच्चों ने ‘न’ कहना तो सीखा ही नहीं ” "हमारी बेटी तो गाय है". इत्यादि इत्यादि |
तब हमें भी समझ नही आता था कि बाप कि इन शब्दों को ‘इज्जत’ के खाते में रखे या ‘गुलामी’ के,और यह कैसे संभव हो जाता था कि ‘न’ कहना तो हमने सीखा ही नहीं | ”
तब उसे रमेश की कही यह बात याद आई “कल को हमीं लोग बज़ुर्ग होंगे , हमें भी उन हालातों के साथ जूझना पड़ेगा | तब शायद बजुर्गों के थमाए वो हथियार हमारे काम न आए और हमें नये बनाने पड़े.” |
रमेश ने सौरभ के कहे मुताबिक पीढीयों के दरमियाँ बनते नए रिश्तो की परिभाषा लिख दी “हम आप की इज्जत तो करते, दिखाते नहीं,हमारे दिल की बात जुबान पे होती है,हम छुपाते नहीं” तब उस ने ये लिख कर ‘रिश्ते जरूरत से बनते हैं,खून वाले रिश्ते भी तो …..,” फिर दोनों ने साथ साथ इसको पढ़ा और दोनों एक दुसरे की तरफ देखने लगे |
संशोधन हेतु आयोजन के बाद संकलन आ जाने पर ही निवेदन करें आ० मोहन बेगोवाल जी I
नारद के हाथ वीणा के तारों से छिटक गए उन्होंने भय और आश्चर्य से देखा एक सवर्ण मंदिर के बाहर से भगवान का दर्शन पाने की चेष्टा कर रहा है और पंडित के दलित पुजारी उसे लाठी दिखा रहा है –‘ख़बरदार जो मंदिर की सीढ़ी पर पैर रखा, साल्ले --सवर्ण कही के -’
ब्रह्मर्षि नारद का सवर्णत्व काँप उठा I मृत्यु लोक में यह अनाचार I नारद सीधे बैकुंठ पहुंचे –‘प्रभो, आपको पता ही नहीं मृत्यु लोक में कैसा अंधेर मचा है, दलित सवर्ण पर अत्याचार कर रहे हैं I’
‘तो इसमें आश्चर्य कैसा नारद ! समय के साथ सब कुछ बदलता है i कल तक जहां तुम थे वहीं पर आज वे हैं I अंतर केवल अपनी-अपनी बारी का है I आप तो ब्रह्मवेत्ता है, जानते हैं कि परिभाषा युगानुसार बदलती है I’
(मौलिक व् अप्रकाशित)
आ० डॉ गोपाल नरायण श्रीवास्तव जी, इस लघुकथा ने मुझे चकित किया है I प्रदत्त विषय पर एक विशेष लीक पर लिखना शायद आसान होता है, किन्तु आपने रिस्क लेने की हिम्मत दिखाई और लीक से बिलकुल हटकर कल्पना की उड़ान भरी I इसी कारण रचना न केवल दिल और दिमाग में उतर जाने वाली ही हुई है बल्कि अन्य रचनाकारों के लिए एक उदाहरण भी प्रस्तुत कर रही है कि किसी प्रदत्त विषय को किस प्रकार ३६० डिग्री के कोण से देखा परखा जा सकता है I अनुज का सादर नमन स्वीकार करें आदरणीय I
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