हिंदी की 50 सर्वश्रेष्ठ कह-मुकरियाँ
"कह-मुकरी" एक बहुत ही पुरातन और लुप्तप्राय: काव्य विधा है! हज़रत अमीर खुसरो द्वारा विकसित इस विधा पर भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी स्तरीय काव्य-सृजन किया है. मगर बरसों से इस विधा पर कोई सार्थक काम नहीं हुआ है. "कह-मुकरी" अर्थात ’कह कर मुकर जाना’ ! इस अत्यंत लालित्यपूर्ण और चुलबुली लोकविधा 'कह-मुकरी' को पुनर्जीवित कर मुख्य धारा में लाने का श्रेय ओपन बुक्स ऑनलाइन को ही प्राप्त है. साथ ही इस लालित्यपूर्ण विधा के सममात्रिक समतुकांत स्वरुप को ओबीओ द्वारा ही स्पष्टतः स्थापित किया गया है.
वास्तव में इस विधा में दो सखियों के बीच का संवाद निहित होता है, जहाँ एक सखी अपने प्रियतम को याद करते हुए कुछ कहती है, जिसपर दूसरी सखी बूझती हुई पूछती है कि क्या वह अपने साजन की बात कर रही है तो पहली सखी बड़ी चालाकी से इनकार कर (अपने इशारों से मुकर कर) किसी अन्य सामान्य सी चीज़ की तरफ इशारा कर देती है.
ध्यातव्य है, कि साजन के वर्णित गुणों का बुझवायी हुई सामान्य या अन्य चीज़ के गुण में लगभग साम्यता होती है. तभी तो काव्य-कौतुक उत्पन्न होता है. और, दूसरी सखी को पहली सखी के उत्तर से संतुष्ट हो जाना पड़ता है यानि पाठक इस काव्य-वार्तालाप का मज़ा लेते हैं.
सद्य-समाप्त ओबीओ लाइव महा-उत्सव अंक-42 के सफल आयोजन में कुल मिलाकर 326 कह-मुकरियाँ प्रस्तुत की गईं. अधिकांश रचनाएँ बेहद उच्च-स्तरीय थीं, कथ्य और शिल्प की ऊँचाई देखते ही बनती थी. यह आयोजन भी वस्तुत: ओ.बी.ओ के ताज को अपने आलोक से जगमग करता एक अन्य बेशक़ीमती हीरे की हैसियत से शुमार हो गया है.
इस आयोजन में प्रस्तुत सर्वश्रेष्ठ कह-मुकरियों का संकलन आप सब के समक्ष प्रस्तुत है...
(1)
उसके कारण तन-मन गद्-गद्
विस्तृत उर का धर्म-विषारद
उसके प्रति मनभाव विशेष
क्या सखि साजन ? ना सखि देश !
(2)
छन में तोला छन में माशा
किन्तु बँधी उससे ही आशा
भरूँ उसीके कारण मैं दम
क्या सखि साजन ? ना सखि मौसम
(3)
रौद्र सूर्य की कांति प्रखर में
ओजपूर्ण है तेजस स्वर में
होती तेवर में कुछ नर्मी
क्या सखि साजन ? ना सखि गर्मी (सौरभ पाण्डेय)
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(4)
अंबर बौना उसके आगे
सागर उथला उसको लागे
रहबर, शाकिर, साबिर, दिलबर
ऐ सखि साजन ? न सखी शायर
(5)
लिपट लिपट पाँवों को चूमे
छूने भर से तनमन झूमे
चंचल चपल निरंकुश पागल
ऐ सखि साजन ? न सखी पायल
(6)
ऊँचा लम्बा, बे-नखरा है
नस नस में मकरंद भरा है
सीधा सादा रहता बन्ना
ऐ सखि साजन ? न सखी गन्ना
(7)
सीने में बारूद छुपाये
धधके जब कोई भड़काये
लेवे फिर ना शोले वापिस
ऐ सखि साजन ? न सखी माचिस
(8)
छेड़छाड़ करने की आदत
बरजोरी की करता जुरअत
हाथ जोड़ भी नहीं पसीजा
ऐ सखि साजन ? न सखी जीजा (योगराज प्रभाकर)
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(9)
दृढ़ निश्चय की ओढ़े चद्दर
गढ़ते अपना स्वयं मुकद्दर
हमदम मेरे, बिलकुल अपने
ऐ सखि साजन? ना सखि सपने
(10)
तन्हा देख मुझे वो घेरें
लाख चिढूं पर मुख ना फेरें
मंद-मंद दिल में मुस्का दें
ऐ सखि साजन? ना सखि यादें
(11)
भाग्यवान जो उनको पाया
शब्द-शब्द उनका अपनाया
तप्त मरू में शीतल तरुवर
ऐ सखि साजन? न सखि गुरुवर
(12)
रंग रूप फूलों सा पाया
पर ज़ालिम नें बहुत सताया
उससे खुदा बचाए दैया
क्या सखि साजन? नहिं ततैया (डॉ प्राची सिंह)
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(13)
भोर भये हर दिन वो आये
मीठे सुर में मुझे जगाये
उसके बिन सूनी हैं रतियाँ
हे सखि साजन, ना सखि चिड़ियाँ (अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव)
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(14)
बिन उसके सिंगार अधूरा
उसे देख ही होता पूरा
तन मन सब उस पर है अर्पण
क्या सखि साजन ? न सखि दर्पण (अन्नपूर्णा बाजपेयी)
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(15)
दिल को भाये बहुत सुहाए
जेठ में भी पावस बन जाए
पतझड़ में जैसे हरियाली
ऐ सखि सजनी ! न सखि साली (सतीश मापतपुरी)
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(16)
रातों को वह सदा जगाता
कभी कान में कुछ कह जाता
साँझ पड़े वो आता अक्सर
क्या सखि साजन ?ना वो मच्छर
(17)
धीरे से मुखड़ा सहलाये
चुनरी और लटें उलझाये
छूकर शीतल कर दे तन -मन
क्या सखि साजन ?नहीँ वो पवन
(18)
गालों को जब मर्ज़ी चूमे
मस्ती में हरदम वह झूमे
रुचता जैसे उसको ठुमका
क्या सखि साजन ?नहिं री झुमका
(19)
इंतज़ार हर रात उसी का
और न रहता ध्यान किसी का
सुख सपनों की एक उम्मीद
क्या सखि साजन ?नहीँ री नींद (ज्योतिर्मयी पन्त जी)
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(20)
मित्र न कोई उनसे बढ़कर
प्रेम भाव रखे हृदय तल पर
सीधे दिल पर देते दस्तक
क्या सखि साजन ?ना सखि पुस्तक (रमेश चौहान)
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(21)
बिस्तर से तन पर चढ़ आये
काटे और झुरझुरी मचाये
तन-मन में कर दे वो हलचल
क्या सखि साजन ?ना री, खटमल
(22)
उछल-कूद में सबसे आगे
शैतानी कर-कर के भागे
बड़ी अक़्ल है उसके अन्दर
क्या सखि साजन ?ना सखि बन्दर (अजीत शर्मा आकाश)
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(23)
रंग गेहुँवा अंग कठोरा,
मधुर भाव मन लेत हिलोरा,
सहज तरल वह दिल का दरियल,
ऐ सखि साजन ? नहीं नारियल (सत्यनारायण सिंह)
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(24)
उसके बिन मैं रह ना पाऊँ
साथ चले जब बाहर जाऊँ
बिन उसके ये जीवन कैसा
क्या सखि साजन? ना सखि पैसा
(25)
हर पल उसके साथ बिताऊँ
ना देखूं तो चैन न पाऊँ
मिलकर चुमूँ उसका मस्तक
क्या सखि साजन?ना सखि पुस्तक
(26)
घर आँगन को जो महकाए
साँस-साँस में घुल-मिल जाए
कली-कली मन ही मन हुलसी
क्या सखि साजन?ना सखि तुलसी
(27)
हवा चले मस्ती में आये
तन से मेरे चिपटा जाये
कंठ लिपटता बनके पट्टा
क्या सखि साजन ?नहीं दुपट्टा (राजेश कुमारी जी)
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(28)
मंद मंद चलता मुस्काता
सुरभित वो सब जग कर जाता
आने से खिल खिल जाता मन
का सखि साजन ? ना सखि पवन
(29)
तपित हृदय जब मेरा तरसे
नेह बूँद बन झर झर बरसे
देख मेरा मन चातक हर्षा
का सखि साजन ? ना सखि वर्षा (माहेश्वरी कनेरी जी)
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(30)
साथ हमेशा मेरे आता
अंधकार से डर छुप जाता
देखो उसकी अद्भुत माया
क्यों सखि साजन ?ना सखि साया
(31)
प्रेम बांटता प्रेम दिखाता
सुख दुख में है साथ निभाता
धड़काता वो मेरा जिया
क्या सखि साजन ?नहीं डाकिया (सरिता भाटिया जी)
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(32)
मीठी मीठी बात बनाता
स्वपन लोक की सैर कराता
बातों से मन को हर लेता
ऐ सखी साजन ? न सखी नेता
(33)
दिन भर रहता जो मंडराता
गुनगुन गुनगुन गीत सुनाता
ना ये तोरा ना ये मोरा
ऐ सखि साजन ? न सखी भौंरा
(34)
छवि मोहिनी मन भरमाता
रास रचैय्या रास रचाता
चंचल मन को वश कर लेता
ऐ सखि साजन ? न सखि अभिनेता
(35)
रीत प्रेम की सदा निभाता
मधुर मिलन को जान लुटाता
प्रेम रंग मैं जो है रंगा
ऐ सखि साजन ? न सखि पतंगा (सचिन देव)
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(36)
करुणा का सागर लहराता
नतमस्तक हों स्वयं विधाता
दुर्लभ है परिभाषा लिखनी
क्या सखि साजन ? न सखि जननी
(37)
सागर से ज्यादा गहराई
कितनी दुनिया भांप न पाई
अधिक विधाता से है क्षमता
क्या सखि साजन ? न सखि ममता
(38)
बिन बोले हर बात समझता
सुख दुख का वो कर्ता धर्ता
प्रातः संध्या और दोपहर
क्या सखि साजन ? न सखि ईश्वर
(39)
जीवन खातिर बहुत जरुरी
उससे सही न जाये दूरी
उसकी आवश्यकता प्रतिपल
क्या सखि साजन ? न सखि जल (अरुण शर्मा ‘अनंत’)
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(40)
जब वो गालों को छू जाये
मन मेरा पुलकित हो जाये
शर्म से हो जाऊं मै लाल
क्या सखी साजन ?ना री गुलाल
(41)
खुशबू उसकी मन को भाये
अधर चूमता उसको जाये
झंझट बहुत कराये रसिया
क्या सखी साजन ?ना सखी गुझिया (मीना पाठक जी)
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(42)
जब भी हो तो मेल कराये
अच्छा सबसे खेल कराये
बांटे गिन गिन सबको हर्ष
क्या सखि साजन , नही विमर्श
(43)
जब मिल जाये खुश हो जाऊँ
नही मिले तो हँस ना पाऊँ
उसको पाने हाथ मचलता
क्या सखि साजन, नही सफलता (गिरिराज भंडारी)
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(44)
भोर दोपहर साँझ बुलाये
मुझको छप्पन भोग खिलाये
रखती उसको जैसे दूल्हा
क्या सखि साजन? ना सखि चूल्हा
(45)
गोदी में सिर रख सो जाऊँ
कभी रात भर संग बतियाऊँ
रस्ता मेरा देखे दिन भर
क्या सखि साजन? ना सखि बिस्तर
(46)
खोज खबर दुनिया की लाता
जब मैं कह दूँ गीत सुनाता
सबसे मेरा वही करीबी
क्या सखि साजन? ना सखि टीवी
(47)
मीठी करता रहता बातें
उसके बिन तपती हैं रातें
तन मन शीतल करता छूकर
क्या सखि साजन? ना सखि कूलर (संजय मिश्रा ‘हबीब’)
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(48)
हरदम उनके दिल में रहती
बिन उनके तो अँखियाँ बहती
प्यार करें ज्यों खोये आपा
क्या सखि साजन ? ना सखि पापा
(49)
मुख चूमें तो मैं इतराऊँ
दिल की सारी उन्हें बताऊँ
मन्दिर मस्जिद वो ही काबा
क्या सखि साजन ? ना सखि बाबा
(50)
मुझसे सह ना पाएं दूरी
ख्वाहिश भी हर करते पूरी
हरदम मेरी खातिर रैडी
क्या सखि साजन ? ना सखि डैडी (अशोक कुमार रक्ताले)
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सर्व प्रथम तो टीम एडमिन को बहुत- बहुत बधाई इस कहमुकरियों के इस सार्थक , न्यायसंगत संकलन के लिए| जैसा कि इस संकलन का उद्देश्य भी होगा कि सीखने वालों के लिए ये एक विशेष पोस्ट है एक कार्यशाला कि भांति|इन कहमुकरियों को ध्यान से पढ़ते हुए अपनी कमियों का भान होगा तथा बेहतर लिखने की प्रेरणा मिलेगी. कहमुकरियों का बेसिक/सार अधिक स्पष्ट होगा ,इस लिए ये पोस्ट मुझे बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण लगी जिसके लिए टीम एडमिन बहुत- बहुत बधाई के पात्र है|इस पोस्ट में अपनी कहमुकरियों को देखकर उत्साहित हूँ और जो पांचवी छूट गई उसकी खबर तो बाद में लूँगी पहले हार्दिक आभार लीजिये|
टीम एडमिन को मेरी तरफ से भी बहुत- बहुत बधाई
निस्संदेह ये पचास बहुत अच्छी हैं. यूँ तो सबने अच्छा लिखा है पर योगराज जी ने बहुत प्रभावित किया. प्रस्तावना में जैसा बताया गया है वैसा ही अंदाज़.
कहमुकरियों को पहली बार पढ़ा और जाना..पढ़कर अच्छा लगा. मैं भी लिखने का प्रयास करूँगा
सभी लिखने वालों को मेरी तरफ से हार्दिक मुबारकबाद
एडमिन टीम को इस सार्थक प्रयास के लिए हार्दिक आभार उसमें मेरी भी दो कह मुकरियां शामिल की गईं उसके लिए पुनः आभारी हूँ कुछ दिन पहले तक समझ नहीं आ रहा था कि इस विषय में लिखने को कुछ है ही नहीं to क्या लिखें देखते देखते यह विषय इतना विशाल रूप लेकर सामने आएगा सोचा नहीं था इतना कुछ पढने को सीखने को मिला इस बारे में ,मैं इस के लिए ओ बी ओ मंच की हमेशा आभारी रहूंगी आपके सामने केवल 50 चुनने में अवश्य ही कोई दिक्कत रही होगी नहीं तो मेरी सिर्फ दो ही इस लायक थी ऐसा मैं नहीं मान सकती | बहुत बधाइयाँ |
एडमिन टीम को इस सार्थक प्रयास के लिए हार्दिक बधाई और आभार उसमें मेरी भी दो कह मुकरियां शामिल करने के लिए..,देख कर बहुत अच्छा लगा..कहमुकरियाँ मेरे लिए नई विधा है जिसे मैने आप के ही मंच से सीखने का प्रयास किया. . इस के लिए मैं ओपन बुक्स ऑनलाइन की भी आभारी हूँ । पुन: धन्यवाद और बधाई।
बहुत सुन्दर सभी ....
आदरनीय टीम एडमिन महोदय,
यकीनन ये 50 कह-मुकरियाँ कथ्य, शिल्प, लालित्य सभी मायनों में उत्कृष्ट हैं... इन कह-मुकरियों में अपनी भी 4 कह-मुकरियों को देखकर मैं हर्षित अनुभव कर रही हूँ..
कहमुकरी विधा के मानकों पर खरी इन कह-मुकरियों को बतौर उदाहरण हम सभी के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए सादर आभार.
ग़ज़ब !
इस अभिनव विधा की गहनता और इसके लालित्य को रेखांकित करते हुए सद्यः समाप्त आयोजन की तीन सौ से अधिक प्रस्तुतियों में से बेहतरीन पचास कह-मुकरियों का चयन वस्तुतः सचेत वृत्ति और समृद्ध वैचारिकता का धारक होने का परिचायक है. चयनित सभी मुकरियाँ अपनी शैली का बखान हैं. अतः यह संकलन नव-हस्ताक्षरों के साथ-साथ हम सभी के लिए सर्वश्रेष्ठ उदाहरण सदृश हैं. इस महती कार्य के लिए टीम ऐडमिन अवश्य ही बधाई का पात्र है.
एक तथ्य जो मुखर हो कर सामने आया है. उसकी चर्चा न हो तो बात पूर्ण नहीं हो पायेगी.
ओबीओ पर संचालन और सम्पादन सदा से व्यक्तिपरक न हो कर रचनापरक होता रहा है.
ऐसा न होता तो कई रचनाकार ऐसे हैं जिनका इस कह-मुकरिया विधा पर पहला प्रयास हुआ है. लेकिन अपनी प्रस्तुतियों की गहनता और उनके लालित्य के कारण इस सूची में स्थान पा गये हैं. उन्हें हार्दिक बधाई इस कामना के साथ कि वे इसी तरह रचनाकर्म पर ध्यान देते रहेंगे.
कहना न होगा, कि कोई रचनाकार अपनी रचनाओं के कारण ही बड़ा होता है. न कि किसी रचनाकार के कारण कोई रचना बड़ी होती है.
मेरे प्रयास को भी इस मानक-चयन में स्थान मिल पाया इस हेतु मैं टीम ऐडमिन का आभारी हूँ.
सादर
इस सफल आयोजन से ५० श्रेष्ठ कह मुकरियाँ संकलित करना अपने आप मैं काफी मुश्किल कार्य रहा होगा किन्तु टीम एडमिन द्वारा इस दुर्लभ कार्य को सुगमता से किया गया उसके लिए मेरी ओर से हार्दिक बधाई....... और इस आयोजन मैं मैंने भी अपनी प्रस्तुतियाँ दी थीं और चूँकि ये विधा एक दम से नहीं है मेरे लिए पहली बार इस पर लिखने का प्रयास किया था तो काफी पशोपेश मैं था पोस्ट करूँ या नही किन्तु सीखने की जिज्ञासा और अपने लिखे पर पारखियों की समीक्षा और मार्गदर्शन के लिए पोस्ट कर दीं और आज इस संकलन मैं अपनी पांच मैं से चार के मुकरियाँ पाकर एक सुखद आश्चर्य और अपार हर्ष हो है साथ ही ... आगे अच्छा और अच्छा लिखने की आत्म प्रेरणा मिल रही है ...... इसके लिए सभी गुणीजनो का हार्दिक आभार !
आदरणीय एडमीन,
समुद्र से मोती चुनने जैसे कार्य आपके द्वारा किया गया है, इस प्रयास से हमें एक स्थान पर सर्वश्रष्ठ रचना पढ़कर सीखने को बहुत कुछ मिला । विशेषकर मेरे लिये जो मै इस आयोजन में समय नही दे पाया था । इस हेतु प्रबंधन समूह को कोटिशः बधाई
लग रहा है मुकरियों का नया जन्म हुआ है। बधाई ही बधाई।
एक ही स्थान पर बेजोड़ कहमुकरियों का संकलन नए और सीखने वाले सदस्यों के लिए बहुत ही उपयोगी है। शामिल रचनाकारों को हार्दिक बधाई
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