आदरणीय साथिओ,
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दोगला
" क्यों ? मजा नही आया ? लगता हैं नीरस हो गया हैं मुझसे तुम्हारा मन " प्रतिदिन के निलय के राग को पुनः सुन विनीता के तनबदन में आग लग गई विक्षिप्त सी बड़बड़ाने लगी:
" ना जाने तुमने भी क्या सोच रखा था ? ब्याह किया तो सारी दुनिया ने तुम्हे सिर पर बैठा लिया। आवश्यक ही नही आरामतलबी के सामान से घर सुसज्जित हो गया।और पढ़ीलिखी मैं , बन कर रह गई माटी की गुड़िया। धीरे धीरे तुम्हारे प्रेम स्नेह के शब्द मुझे गाली लगने लगे क्योकि तुम भी उंगली उठाते थे मगर चाशनी में डुबो के ! " आज उसने फैसला कर लिया दो टूक बात करने का
" निलय, जो तुम हमेशा हमारे अंतरंग क्षण को उस रात के साथ तोलते हो मुझसे बर्दाश्त नही होता।मुझे लगता हैं तुम गाली दे रहे हो।"
" जो मुझे सच लगता हैं, वही कहता हूँ।"
" निलय्य्य !! क्या बक रहे हो ? वो मेरी जिंदगी की स्याह रात थी जिसे अनदेखा कर कर ही तुमने मुझसे ब्याह किया था। "
" नही कर सकता अनदेखा, उस समय मैं भी नारी मुक्ति के झंडे तले नाम कमाना चाहता था जिसका मौका मुझे मिल गया था।"
" ओह ! और नही बर्दाश्त कर सकती तुम जैसे दोगले को। उन पांचों ने मेरा चिरहरण एक बार किया लेकिन तुम हर पल कर रहे हो।"
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदाब। वाह। कम शब्दों में पीड़ित महिलाओं और पत्नियों की पीड़ा और हमारे समाज में व्याप्त पुरुष-मानसिकता को बाख़ूबी उभारा है आपने। हार्दिक बधाई आदरणीया अर्चना त्रिपाठी साहिबा। पोस्ट करने से पहले रचना संपादित कर टंकण और स्पष्टता बेहतर किये जा सकते हैं।
बहुत सुंदर, आदर्शवाद और व्यवहारिक जीवन के बीच के सच और मनुष्य की मानसिकता को दर्शाती बढ़िया रचना. इस सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें अर्चना त्रिपाठी जी.
कैसी विवशता है जो आज भी जारी है।सहनशीलता की हद होती है ।संदेशप्रद कथा के लिये बधाई आद० अर्चना त्रिपाठी जी ।
बहुत बढ़िया। आधुनिकता की कितनी भी दुहाई दी जाय पुरुष का अहम् उसे इस तरह की परिस्थितियों को सहजत से लेने ही नहीं देता। बधाई आदरणीय अर्चना जी
वाह, कम शब्दों में बहुत गंभीर विषय उठती बढ़िया लघुकथा. अक्सर जोश में आदर्शवादी नवयुवक ऐसे कदम उठा तो लेते हैं लेकिन अंत में उनकी असली मानसिकता बाहर आ जाती है. बहुत बहुत बधाई इस सटीक रचना के लिए आ अर्चना त्रिपाठी जी
पुरुष मानसिकता पर कटाक्ष करती बढ़िया लघुकथा कही है आपने आदरणीया अर्चना जी. वैसे संवाद अभी और तीख़े हो सकते हैं और शीर्षक थोड़ा और बेहतर. टंकण त्रुटियों पर आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ने कह ही दिया है. मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
वाह..।बहुत शानदार रचना अर्चना जी ।नारी के अस्तित्व का सटीक चित्रण..।
मुहतरमा अर्चना त्रिपाठी जी आदाब,बहुत अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
वक्त बदल चुका है़ आज नारी दोगलेपन को नकारने की सामर्थ्य रखती है़ .अच्छी शिक्षाप्रद लघु कथा अर्चना जी बधाई
आदरनीया, बहुत ही अच्छे से कही लघुकथा के लिए बधाई हो ।
कम शब्दों में प्रभावी रचना के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आपको ।
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