आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय वीरेंद्र वीर जी का सुझाव मानने योग्य हैं ।
आदाब आदरणीया अनीता शर्मा जी। आदरणीय वीरेंद्र वीर मेहता जी की टिप्पणी और सुझाव पर ग़ौर फ़रमाइयेगा। इसे थोड़ी कल्पना के साथ संवादात्मक रुप भी दिया जा सकता है। हालांकि विषय नया नहीं है। लेकिन विसंगति उभारने का शिल्प व प्रस्तुति बढ़िया आप कर ही सकती हैं।
आदरनीया अनीता जी,ऐसी घटनाएँ ज्यादा हो रही हैं, मगर ऐसी घटनाएँ को सतर्कता के साथ अगर मनोविगिआनिक ढ़ंग से समझा जाए तो इस समस्या का हल तलाशना असान होगा।
संवादों के माध्यम से रचना को बेहतर बनाया जा सकता है आदरणीया अनीता जी. शीर्षक में भी सुधार अपेक्षित है. कृपया गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.
मुहतरमा अमिता शर्मा जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।
मुहतरमा अनिता साहिबा, सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
बढिया कथा , आसपास के माहौल के प्रति सजग रहना अति आवश्यक हैं इसी बात पर रोशनी डाल रही हैं आपकी रचना , लेकिन समाप्त आपने जल्द कर दिया।
अच्छी लघुकथा के लिए बधाई अनीता जी
संदेशात्मक रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय अनीता दी।
'बदलती परिभाषा'
"कुछ कहने से पहले मैं आपसी मतभेद की वजह जानना चाहूँगा।
"जी कहिए।"
. . . वह अपनी पत्नी से डिवोर्स लेने के विषय में सलाह लेने के लिए वकील के पास बैठा था।
"क्या वह सुंदर नहीं है?"
"जी ऐसा तो नहीं, वह तो अपने कॉलेज की मिस ब्यूटी रही है।"
"यानि शिक्षित भी है!"
"जी हाँ, और प्रथम श्रेणी की अधिकारी भी।"
"क्या परिवार या रिश्तेदारी में उसका व्यवहार संतोषजनक नहीं है।
"असंतोषजनक तो नहीं लेकिन औपचारिक ही होता है, ऐसा कह सकते हैं।"
"बाहर किसी से कोई रिश्ता?"
"नहीं नहीं! तीन वर्ष में तो ऐसा नहीं लगा।"
"आपसी संबंध, आई मीन 'बेड रिलेशन'!"
"है।. . . 'बट ऑलमोस्ट मिनिमम'!"
"ओ के, लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा कि आखिर क्या वजह है जो आप अपनी पत्नि से डिवोर्स लेना चाहते हैं।"
"हद दर्जे की पोसेसिव है वह, और अपनी इच्छा से ही सब कुछ करती है यहां तक कि हाल ही में न चाहते हुए 'प्रेगनेंट' होने की स्थिति में अबॉर्शन भी। बस, इसलिए मैं उससे 'टॉर्चर बेस' (प्रताड़ना) पर डिवोर्स चाहता हूं।" एक ही सांस में कह गया वह सब कुछ।
"लेकिन क्या इन सब बातों को 'टॉर्चर' माना जाए?"
"पता नहीं! लेकिन..." उसकी आवाज एकाएक अपनी शक्ति खो बैठी थी। "... यदि यही सब पति करे तो?" कहते हुए वह उठ खड़ा हुआ था।
(मौलिक व अप्रसारित/अप्रकाशित)
आदाब। पुरुष/ या पति प्रताड़ना का यह रूप उच्च वर्ग से लेकर मध्यम स्तर के मध्यमवर्गीय दांपत्यजीवन तक में भी बढ़ता ही जा रहा है। आपसे सहमत हूँ। बहुत बढ़िया मुद्दा उठाया है। हार्दिक बधाई जनाब वीरेंद्र वीर मेहता साहिब। अंत के संवाद //यदि यही सब पति करे तो?// से एक विचारोत्तेजक ट्विस्ट है। हमारे समाज में पुरूष तो कई तरह से महिलाओं या पत्नियों को प्रताड़ित करता ही है,कोई नई बात नहीं। नई बात तो पुरुष विमर्श की है। महिला सशक्तिकरण के नाम पर पुरुषों के साथ बौद्धिक, मानसिक, आर्थिक व शारिरिक (यौन) प्रताड़ना पर मैं विशेष विमर्श की अपेक्षा करता हूँ लघुकथा विधा से।
रचना पर प्रथम और सुंदर टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार भाई शहजाद उस्मानी जी, सादर
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