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जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करता अच्छा गीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें
आद0 आली जनाब समर कबीर साहब सादर प्रणाम। आपकी प्रतिक्रिया का हर रचनाकार को बड़ी बेशब्री से इंतिजार रहता है। आप की टिप्पणी से कुछ अच्छा लिखने को बल मिलता है। बहुत बहुत आभार।
वाहः,आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं,झांकी हिंदुस्तान की..... जैसी ही बानगी नजर आ रही है। अद्भुत विवरण! बहुत बढ़िया बहुत बढ़िया!
हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी। बेहतरीन रचना।
आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। आभार आपका इस प्रतिक्रिया और अनुमोदन के लिए
आद0 सतविंदर भाई जी सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थित होकर हौसलाफजाई के लिए शुक्रिया
भाई सुरेन्द्र जी अपनी प्रतिभा के अनुरूप बहुत शानदार सृजन किया है विषय को सार्थक करती इस रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
आद0 डॉ भैया आभार आपका
आ. भाई सुरेंद्रनाथ जी, सुंदर और सरस गीत रचा है हार्दिक बधाई ।
सुन्दर गीत रचना, हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र जी
तुकांत कविता - फ़रियाद –
मेरे मेहबूब कहीं और मिलाकर मुझसे,
ये खेत ये खलिहान, लहू लुहान पड़े हैं।
खेत हमारे भी थे, हरे भरे, आज सूखे पड़े हैं।
देखा जिन्हें खुशहाल, वे किसान मरे पड़े हैं।
दिया वोट जिन्हें, अपने भले की खातिर,
नेता जी वही , मालामाल हुये पड़े हैं।
किसान मज़दूर के लिये, फ़ुर्सत किसे है,
साहिब हवाई दौरों के चक्कर में पड़े हैं|
खेत खरीदो, व्यापारियों को बेच डालो,
सरकारी नुमाइंदे, इसी धंधे में पड़े हैं|
किसान की मेहनत, जो देती थी रोटी,
उसी के घर, अब रोटी के लाले पड़े हैं|
वे दम भरते थे, अच्छे दिन लाने का,
अच्छे अच्छों को निपटाने में जुटे पड़े हैं।
हसरत जो पालते हैं, ऊँची उड़ानों की,
अकसर देखा उन्हें ही, औँधे मुँह पड़े हैं।
बकरे की माँ, कब तक खैर मनायेगी,
गली मोहल्ले कसाइंयों से भरे पड़े हैं |
हर सिकंदर का निश्चित होता है पतन,
इतिहास ऐसे किस्सों से भरे पड़े हैं |
वक्त देगा सबको, एक माक़ूल ज़वाब,
"तेज" तेरे पीछे , बहुत सारे लोग पड़े हैं|
मौलिक एवम अप्रकाशित
उत्तम सर्जना,किसानी जिंदगी,महाजनी और सियासत सब को अच्छे से छुआ! बधाई आदरणीय तेजवीर जी
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